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स्वार्थ से दूर रहने वाला ही सच्चा मित्र

सच्चा मित्र वही होता है जो स्वार्थ से दूर रहकर दोस्ती निभाए। मित्र बनाते समय इस बात का ध्यान रखना

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 05:29 PM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 05:10 AM (IST)
स्वार्थ से दूर रहने वाला ही सच्चा मित्र
स्वार्थ से दूर रहने वाला ही सच्चा मित्र

सच्चा मित्र वही होता है जो स्वार्थ से दूर रहकर दोस्ती निभाए। मित्र बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह मुसीबत के समय मुंह न मोड़े, बल्कि मदद के लिए आगे आए। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में ही जन्म लेता है, पनपता है और अंत में उसमें ही निहित रहता है। स्वजनों, संबंधियों, पड़ोसियों तथा कार्यक्षेत्र में विभिन्न प्रकार के स्वभाव वाले लोगों के संपर्क में रहते हुए हमें हर किसी के व्यवहार का पता चलता है। लेकिन सच्चा व्यक्ति मिल पाना या समझ पाना बड़ा ही मुश्किल होता है। मुसीबत की घड़ी में ही अच्छे व बुरे की पहचान हो सकती है। अच्छे मनुष्य का अर्थ है कि वह व्यक्ति जिसका आचरण निस्वार्थ हो और अच्छे दोस्त की तरह हर किसी का साथ निभाए। जो मनुष्य स्वार्थ से परे होता है, सत्य का पालन करता है और परोपकारी है वहीसच्चे दोस्त की भूमिका निभा सकता है। ऐसे व्यक्ति पर निस्वार्थ मित्र और स्वार्थी मित्र के बीच का अंतर समझ में आ जाता है। ऐसे लोगों के बीच रहने और दोस्ती करने से जीवन आनंदमयी हो जाता है। सतसंगति के परिणामस्वरूप मनुष्य हमेशा स्वार्थ से परे रहकर ही लोगों की मदद करने के लिए तत्पर रहता है और अच्छे चरित्र के गुण उसमें मौजूद रहते हैं। लाखों उपदेश तथा हजारों पुस्तकों के अध्ययन के बाद भी मनुष्य का स्वार्थ भाव नहीं बदलता है, लेकिन निस्वार्थ भाव वाले व्यक्ति की संगति करने पर वह अपने आपको बदल सकता है। आज समाज में स्वार्थ के लिए मीठी-मीठी बातें करने वाले दोस्त सैकड़ों मिल जाएंगे। वे तब ही दोस्त बने रहेंगे जब तक उनका अपना मतलब है और फिर उसके बाद मैं कौन और तू कौन। निस्वार्थ व्यक्ति की संगति करने वाले व्यक्ति का सदगुण उसी प्रकार सिमट-सिमटकर भरने लगता है जैसे बारिश का पानी तालाब में भरने लगता है। अच्छे आचरण वाले व्यक्ति के संपर्क से उसके साथ के लोगों का निस्वार्थ भाव से मदद करने का विकास उसी प्रकार होने लगता है जिस तरह सूर्योदय से कमल अपने आप विकसित होने लगता है। एक कहावत है कि खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलने लगता है। जो व्यक्ति अपने पोषण के लिए सोचता है और जीवों के प्रति निर्दयता दिखाता है वह किसी का सच्चा दोस्त नहीं बन सकता है। नैतिक मूल्यों का आधार हमारी संस्कृति है। निस्वार्थ भावना मनुष्य की अमूल्य निधि है। हमें बिना किसी स्वार्थ के हर किसी की मदद करनी चाहिए। पवित्र आचरण वाले लोगों की हमेशा सराहना की जाती है। स्वार्थ से परे व्यक्ति से ही विश्व में अच्छाइयां सुरक्षित हैं, इसलिए कहा गया है कि दोस्ती करते समय हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सामने वाला व्यक्ति स्वार्थ से परे है या नहीं। स्वयं को भी इसी ढांचे में ढालने की जरूरत है। तभी हमें अच्छे और बुरे की पहचान हो सकती है। जिस तरह किसी वाटिका में खिला हुआ पुष्प सारे वातावरण को सुगंधित कर देता है ठीक उसी तरह निस्वार्थ काम भाव रखने वाला मनुष्य समूचे समाज में नए आयाम स्थापित कर देता है। आइए हम भी ऐसा संकल्प लें कि हर किसी की निस्वार्थ सेवा ही परमोधर्म है ।

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-गिरीश शर्मा, प्रधानाचार्य केंद्रीय विद्यालय योल छावनी


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