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युवा हाथों से दूर हथकरघा

संवाद सहयोगी चंबा सर्दियों में शरीर को गर्म रखने वाला ऊनी कोट हर कोई पहनना चाहता है

By JagranEdited By: Published: Thu, 06 Aug 2020 06:21 PM (IST)Updated: Fri, 07 Aug 2020 06:19 AM (IST)
युवा हाथों से दूर हथकरघा
युवा हाथों से दूर हथकरघा

संवाद सहयोगी, चंबा : सर्दियों में शरीर को गर्म रखने वाला ऊनी कोट हर कोई पहनना चाहता है। जब भी सर्दी का मौसम आता है तो लोगों को इसकी जरूरत महसूस होती है, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति का यह सपना पूरा होना थोड़ा मुश्किल है। ऐसा इसलिए क्योंकि हथकरघा से जुड़े लोग बहुत कम हैं। युवा पीढ़ी भी इसमें खास रुचि नहीं ले रही है। आज का युवा वर्ग पढ़ लिखकर अलग पहचान बनाना चाहता है। ऐसे में हाथों से तैयार किए जाने वाले पारंपरिक उत्पाद भी पहचान खोते जा रहे हैं।

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जिला में पंजीकृत बुनकर करीब 500 हैं। यहां पर हैंडलूम प्रशिक्षण केंद्र सात हैं, जिनमें करीब 70 लोग प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। ऊनी कोट की कीमत करीब पांच हजार से अधिक रहती है। वहीं, चादर की कीमत 1000 से 3000 तथा शॉल की कीमत 1000 से 2500 के बीच में रहती है। चंबा जिला के भरमौर, होली, पांगी व तीसा में हथकरघा की खटखट ही पहचान है।

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ऊनी कोट को तैयार करने में लग जाता है दो माह का समय

ऊनी कोट को पहनना जितना सरल है, उतना ही मुश्किल इसे तैयार करना होता है। इसको बनाने में करीब एक से दो माह तक का समय लग जाता है। यदि ऊनी कोट तैयार करना हो तो पहले भेड़ से ऊन निकाली जाती है। उसके बाद मशीन में इसको तैयार किया जाता है। तैयार ऊन को चरखे में काता जाता है। कोट बनाने से पूर्व ऊन की पानी में पैरों के साथ मंडाई की जाती है, ताकि उसे पक्का किया जा सके। पट्टू तैयार होने के बाद उसे सिला जाता है। इसके बाद एक ऐसा कोट तैयार होता है, जिसमें की पानी की एक भी बूंद नहीं घुस पाती है। जितनी सर्दी होगी, इस कोट को पहनते ही गर्मी का अहसास होता है।

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घर पर ऊनी कोट सहित चादर व शॉल तैयार करना हमारी परंपरा का हिस्सा है। इस कार्य को मेरी हमउम्र पीढ़ी तो बड़े शौक के साथ करती है। लेकिन, युवा पीढ़ी इसमें कछ खास रुचि नहीं दिखा रही है। यही कारण है कि अब इस कला के माहिरों की संख्या कम होती जा रही है।

-चुहड़ू राम, बुनकर

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ऊनी कोट सहित ऊन से बने उत्पादों से हमारा गहरा नाता है, लेकिन इसमें काफी मेहनत व समय लगता है। प्रोत्साहन न मिलने के कारण युवा पीढ़ी इससे दूर होती जा रही है।

-विपन शर्मा, बुनकर परिवार का सदस्य

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पहले हर घर में चरखा व रछ मिलता था, लेकिन आज के समय में यह नाममात्र घरों में ही रह गया है। समय के बदलाव के चलते युवा इससे दूर होते जा रहे हैं।

-केहर सिंह, बुनकर परिवार का सदस्य

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यदि सरकार इस कला को प्रोत्साहन देती है तो निश्चित तौर पर युवा पीढ़ी भी इसमें रुचि दिखाने लगेगी। अच्छे उपकरण मिलते हैं तो इस कार्य को गति मिल सकती है। जो युवा बेरोजगार हैं, वे इससे अच्छी खासी आमदनी कर सकते हैं।

-प्रेम चंद, बुनकर परिवार का सदस्य


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