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काला जीरा, कुठ व केसर से मजबूत करें आर्थिकी

पांगी घाटी में कृषि की अपार संभावनाएं हैं। यहां पर कृषि को बेहतर बनाने के लिए लगातार विभाग द्वारा कार्य किया जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Oct 2019 03:58 PM (IST)Updated: Mon, 21 Oct 2019 06:24 AM (IST)
काला जीरा, कुठ व केसर से मजबूत करें आर्थिकी
काला जीरा, कुठ व केसर से मजबूत करें आर्थिकी

पांगी घाटी में कृषि की अपार संभावनाएं हैं। यहां पर कृषि को बेहतर बनाने के लिए विभाग द्वारा लगातार कार्य किया जा रहा है। लोगों को भी कृषि की नई-नई तकनीकों से अवगत करवाया जा रहा है, ताकि वे इनका लाभ उठा सकें। पहले यहां पर पारंपरिक खेती की जाती थी। धीरे-धीरे यातायात साधनों से घाटी का संपर्क प्रदेश व देश के अन्य भागों से जुड़ने से लोग कृषि की नई तकनीकों से जुड़े और नई तकनीक से खेतीबाड़ी करने लगे। लोगों ने नकदी फसलों को खेतीबाड़ी का अभिन्न अंग बनाया। घाटी में हॉप्स, कुठ, केसर, मीठी पतीश को भी कृषकों ने खेतीबाड़ी में शामिल किया है। पांगी में मात्र पांच फीसद ही रासायनिक खादों और दवाओं का प्रयोग किया जाता है। कृषि विभाग का प्रयास है कि पांगी ऑर्गेनिक जोन बनाना है। कृषि विकास प्रसार अधिकारी भानु प्रताप के साथ दैनिक जागरण के कृष्ण चंद राणा ने बातचीत की। पेश हैं बातचीत के अंश.. -कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार व विभाग ने कौन सी योजनाएं चलाई हैं?

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सरकार और कृषि विभाग ने मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना, राजीव गांधी कृषि सिचाई योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना, आतमा परियोजना, सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती योजना, सौर ऊर्जा सिचाई योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय बीमा योजना, खेती हर मजदूर सुरक्षा योजना किसान पेंशन योजना जैसी कई योजनाएं चलाई हैं।

-पांगी में कितने हेक्टेयर में खेती की जाती है तथा कौन-कौन सी फसलें बोई जाती हैं?

यहां कृषि योग्य भूमि लगभग 2200 हेक्टेयर है, जिसमें गेहूं, मक्की, जौ, कोदरा, भोट जौ जैसे अनाज की खेती की जाती है। सब्जियों में आलू, बंद गोभी, फूलगोभी, देसी मटर, देसी मूली (गुनगुलु), दालों में राजमाह, माह तथा काले मसूर की खेती की जाती है। किसान अकाल आजाद मटर की बिजाई करके आर्थिक स्थिति में सुधार कर रहे हैं। कृषि विभाग लोगों को अच्छी किस्म के गेहूं, मटर तथा आलू सहित अन्य सब्जियों के बीज हर साल उपलब्ध करवा रहा है। इस साल आजाद पंजाब 89 मटर का बीज दिया जा रहा है, जो कि जीएस 10 से ज्यादा फायदेमंद है। आतमा परियोजना के माध्यम से किसानों को 50 प्रतिशत सबसिडी पर बीज उपलब्ध करवाए जाते हैं।

-मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना के तहत किसानों को क्या सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं?

यह योजना किसानों के लिए फसलों को जंगली व पालतू जानवरों से बचने के लिए सबसे लाभकारी सिद्ध हो रही है। इस योजना के माध्यम से सरकार तथा कृषि विभाग फेंसिग के लिए 50, 60 तथा 70 फीसद सबसिडी अलग-अलग योजनाओं के तहत दे रहे हैं। सोलर फेंसिग के लिए 70 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। क्रेटवायर के साथ खेतों में फेंसिग की जाती है। सोलर पैनल के साथ तीन हाउस पवार की बैटरी दी जाती है। इसके साथ करंट की व्यवस्था भी है, अगर खेत घर के पास होगा। इसका फायदा यह भी है अगर गांव में बिजली नहीं रहती है तो रात को इससे लाइट की सुविधा भी ली जा सकती है। सौर सिंचाई, सौर ऊर्जा पेयजल उठाऊ योजना भी शामिल है। लोगों से आग्रह है कि इस योजना का लाभ उठाने के लिए जल्द आवेदन करें।

-शून्य लागत खेती क्या है?

मोटे तौर पर कहा जाए तो शून्य लागत खेती खेतीबाड़ी को रासायनिक उर्वरकों से बचाना है। किसान के घर में गाय होती है। उसके गोबर और मूत्र से तैयार खाद के उपयोग के बारे में किसानों को बताया जा रहा है। पांगी जैसे क्षेत्र में 95 फीसद किसानों के पास गाय तथा बकरी हैं। इसलिए किसान गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं। किसानों तथा बागवानों को सलाह दी जाती है कि कृषि के नई तकनीक के साथ परंपरागत खेती पर ध्यान दें।

-किसानों की उपज बिचौलियों से बचा कर सीधे उपभोक्ता तक पहुंचे, इसके लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती (एनपीएसएफ) ग्रुप बनाया है, जिसके माध्यम से किसान अपने पास उपलब्ध कृषि उत्पाद जिसको वह बेचना चाहता हैं, उसके नाम के साथ कीमत भी डाल सकते हैं। जिसको उस उत्पाद की जरूरत होगी। वह किसान से सीधा या विभाग से संपर्क कर खरीद सकते हैं। आतमा प्रोजेक्ट के तहत 320 किसानों को प्रशिक्षण दिया गया है, जिन्हें इस ग्रुप से जोड़ा गया है। यह खंड स्तर, जिला स्तर, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर बनाए जाएगा। इसमें कृषि से संबंधित पल-पल की जानकारी उपलब्ध रहती है।

-ऐसी कोई प्राकृतिक परंपरागत खेती की जा सके, जिससे किसानों की आय में वृद्धि हो?

किसान काला जीरा, कुठ, मीठी पतीश, हॉप्स, केसर समेत अन्य जड़ी बूटियों की खेती कर सकते हैं। कुछ किसान कर भी रहे हैं। इनका फल देर से जरूर मिलता है, लेकिन यह काफी फायदेमंद है। घाटी में करीब चार बीघा में किसान कश्मीरी केसर का उत्पादन कर रहे हैं। कृषि विभाग समय पर किसानों को कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, सोलन कुकमसेरी तथा इसके साथ में प्रदेश के अन्य स्थानों पर ले जाकर कृषि संबंधी जानकारी देता रहता है।


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