मणिमहेश यात्रा: शिव चेलों ने पार की डल झील, भोलेनाथ के जयकारों से गूंज उठे पहाड़
मणिमहेश यात्रा के अंतिम राधाष्टमी स्नान के लिए वीरवार को हजारों श्रद्धालु डल झील पर पहुंच गए हैं।
भरमौर, जेएनएन। मणिमहेश यात्रा के अंतिम राधाष्टमी स्नान के लिए वीरवार को हजारों श्रद्धालु डल झील पर पहुंच गए हैं। यात्रा का मुहूर्त शाम 8.42 बजे से लेकर छह सितंबर रात 8.41 बजे तक जारी रहेगा। यात्रियों ने सोमवार को ही शिव चेलों से अनुमति लेना शुरू कर दिया था व बुधवार सचुंईं के चेले भी मणिमहेश के लिए रवाना हो गए थे। वीरवार बाद दोपहर शिव चेलों के डल पार करने के बाद श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाना शुरू कर दिया। इस दौरान भोलेनाथ के जयकारों से पहाड़ गूंज उठे।
तिरलोचन के वंशज हैं शिव के चेले
शिव के चेले भरमौर मुख्यालय के साथ सटे गांव सचूई के रहने वाले हैं। इनके पूर्वज तिरलोचन थे, जो कि बहुत बड़े शिवभक्त थे। कहा जाता है कि भगवान शिव उनके सम्मुख आकर सीधे बातचीत करते थे। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले तिरलोचन पेशे से दर्जी थे। एक बार भगवान शिव तिरलोचन के परिवार की भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से उनके घर पहुंचे। भगवान शिव भेड़ पालक (गद्दी) के वेश में तिरलोचन की मां के पास भेड़ों के लिए नमक मांगने पहुंचे। चूंकि, परिवार गरीबी में जी रहा था इसलिए तिरलोचन की मां ने कहा कि उनके घर में इतना नमक नहीं है, जिस पर गद्दी के वेश में शिवजी ने कहा कि लकड़ी के बड़े से कंजाल (संदू्क) में बहुत अधिक नमक है। तिरलोचन की मां ने जब उस कंजाल को खोला तो यह नमक से भरा हुआ था।
लेनी पड़ती है शिव चेलों की अनुमति
भगवान शिव ने फिर भेड़पालक के रूप में तिरलोचन की मां को उसी दिन आकर कहा कि तिरलोचन को मैंने अपने पास रख लिया है। अगर और कोई मेरे पास आना चाहे तो उसे आपकी आज्ञा लेनी होगी। माना जाता है कि इस घटना के बाद से ही मणिमहेश जाने वाले श्रद्धालु तिरलोचन के वंशजों से अनुमति लेकर ही यात्रा करते हैं। श्रीराधाष्टमी में सबसे पहले यही शिव चेले स्नान करके इस पर्व की शुरुआत करते हैं। श्रीराधाष्टमी स्नान के दौरान यह चेले डल झील के सबसे गहरे भाग से इसे पार करते हैं।