इसरो छोड़ शिक्षा का प्रकाश फैलाएगा सत्य
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.. ये शब्द चुराह घाटी के दो युवाओं पर सटीक बैठते हैं।
सुनैना राजपूत, चुराह (चंबा)
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती..ये शब्द जिला चंबा की चुराह घाटी के दो होनहार युवाओं पर सटीक बैठते हैं। दोनों युवा अनपढ़ता, अनदेखी व पिछड़ेपन का दंश झेल रही चुराह घाटी के लिए उम्मीद की किरण लेकर आए हैं। जियोग्राफी विषय के लिए घाटी के दो युवाओं का असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर चयन हुआ है। गरीब परिवार से निकले ये दोनों होनहार चुराह के युवाओं में नया उत्साह भर गए हैं। दोनों युवाओं की पढ़ाई में न गरीबी बाधा बनी और न ही घाटी में पेश आने वाली मुश्किलें। अपने व परिवार के हौसले से दोनों ने ऐसी उड़ान भरी कि अन्य युवाओं के लिए ये प्रेरणा स्रोत बन गए हैं।
प्रदेश के पिछड़े क्षेत्रों में शुमार चंबा जिला की चुराह घाटी से सत्य प्रकाश व नेमराज शर्मा का हाल ही में जियोग्राफी विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर चयन हुआ है। सत्यप्रकाश इसरो की नौकरी छोड़ अब शिक्षा का प्रकाश फैलाएंगे। ये सफलता सुनने में जितना सुकून देती है उससे भी प्रेरक इसे हासिल करने की कहानी है। नेमराज शर्मा और सत्यप्रकाश दोनों ही गरीब परिवार से संबंधित हैं।
चुराह की चरड़ा पंचायत से नेमराज शर्मा के पिता ने मजदूरी करके अपने बेटे को इस मुकाम पर पहुंचाया, वहीं सत्यप्रकाश के पिता ने भेड़ें पाल कर अपने बेटे को पढ़ाया। पिछड़ी चुराह घाटी में जहां अभी भी कई स्थानों में बेटियों को स्कूल नहीं भेजा जाता है वहां इन दोनों की उपलब्धि सबके लिए प्रेरणा से कम नहीं है। गौरवान्वित करने वाली बात तो ये है कि सामान्य वर्ग से संबंधित इन दोनों ने इस पद के लिए पूरे प्रदेश में पहला व दूसरा स्थान हासिल किया है। सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ती कोशिशों के लिए इन दोनों की सफलता किसी प्रेरणा से कम नहीं। दोनों युवाओं ने पिता के संघर्ष को बेकार नहीं जाने दिया
गरीबी में बचपन गुजारने वाले सत्यप्रकाश के पिता पेशे से भेड़पालक हैं। उन्होंने भेड़ें पालकर व कृषि कर अपने बेटे की हर वह जरूरत पूरी की जिसकी उसे आवश्यकता थी। बेटे ने भी पिता के संघर्ष को बेकार नहीं जाने दिया। वहीं, नेमराज शर्मा के पिता मजदूर हैं। बेटे का सपना था कि वह असिस्टेंट प्रोफेसर बने तो पिता ने भी उसके अरमान को अधूरा नहीं रहने दिया। आसपास मजदूरी नहीं मिली तो लाहुल-स्पीति की चोटियों पर जाकर भी मजदूरी की। घाटी का पिछड़ेपन का कलंक मिटाना चाहते हैं दोनों युवा
सत्यप्रकाश शर्मा इसरो में भी काम कर चुके हैं, लेकिन गांव की माटी से लगाव उन्हें खींचकर वापस ले आया। सत्यप्रकाश अपने क्षेत्र के लिए कुछ ऐसा करना चाहते हैं कि पिछड़ेपन का कलंक यहां के माथे मिट जाए। नेमराज शर्मा को भी चुराह घाटी का पिछड़ापन चुभता है। पढ़ाई से दूर बच्चों में शिक्षा की अलख जगाना उसके सपनों में शामिल है। पिछड़ी चुराह घाटी के लिए इन दोनों की सफलता नई अलख जगाने के लिए कारगर होगी।