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धर्म की अधर्म पर विजय, धू-धू कर जला रावण

न्याय की अन्याय पर सदाचार की दुराचार पर धर्म की अधर्म पर गर्व की अ

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 Oct 2021 08:27 PM (IST)Updated: Fri, 15 Oct 2021 08:27 PM (IST)
धर्म की अधर्म पर विजय, धू-धू कर जला रावण
धर्म की अधर्म पर विजय, धू-धू कर जला रावण

जागरण संवाददाता, चंबा : न्याय की अन्याय पर, सदाचार की दुराचार पर, धर्म की अधर्म पर, गर्व की अहंकार पर, अच्छाई की बुराई पर, सत्य की असत्य और अंधकार पर उजाले की विजय का प्रतीक विजयदशमी का पर्व शुक्रवार को चंबा जिले में हर्षोल्लास से मनाया गया। इस दौरान जगह-जगह रावण के साथ उसके पुत्र मेघनाद और भाई कुंभकरण का पुतला जलाया गया। भगवान श्रीराम के वेश में जैसे ही रावण के पुतला में आग लगाई, पूरा चौगान मैदान जय श्रीराम के जयकारे से गूंज उठा। इसके पहले राम और रावण के बीच हुए भयंकर युद्ध का दर्शकों ने खूब आनंद उठाया।

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इस दौरान सदर के विधायक पवन नैयर, उपायुक्त डीसी राणा, नगर परिषद अध्यक्ष नीलम नैयर, रामलीला क्लब के प्रधान धीरज महाजन समेत अन्य लोग मौजूद रहे। शारीरिक दूरी का पालन करते हुए चौगान में रावण के पुतले का दहन किया गया। कोरोना महामारी के दौरान इस बार रामलीला के आयोजन के साथ शोभायात्रा भी निकाली गई। उपायुक्त ने सभी जिला वासियों को विजयदशमी की शुभकामनाएं देकर कोरोना संक्रमण की लड़ाई में एकजुट रहने का संदेश दिया। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण के मामले अभी लगातार सामने आ रहे हैं ऐसे में लापरवाही की गुंजाइश नहीं है। त्योहारी सीजन में खासकर बाजार में खरीदारी करते हुए शारीरिक दूरी बनाए रखें। भरमौर में नहीं होता पुतला दहन

दशहरा पर्व पर सत्य की जीत के रूप में रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले जलते हैं, लेकिन जिला चंबा के प्रसिद्ध मणिमहेश धाम के चौरासी परिसर में पुतला दहन नहीं होता। यहां रावण को महापंडित और शिव का परम भक्त मानकर पूजने की परंपरा है। भरमौर में स्थित चौरासी परिसर में रामलीला मंचन की परंपरा भी नहीं है। पंडित सुरेश शर्मा ने बताया कि पांच दशक पूर्व से चौरासी में न तो रामलीला का मंचन होता है और न ही यहां रावण, मेघनाद और कुभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं। शिव नगरी भरमौर में स्थित दशमुखी शिला को रावण की प्रतिमूर्ति के रूप में माना जाता है। बुजुर्ग भी रावण को भगवान शिव के प्रिय भक्त के रूप में मानते आए हैं। मान्यता है कि शिवभक्ति के लिए रावण का पवित्र कैलाश में प्रवास होता रहता था।

वर्तमान में चौरासी परिसर के भीतर अर्धगंगा के साथ एक कपिलेशर महादेव का लिग है। उस लिग के पास ही शिला के ऊपर दशमुखी शिला की आकृति अंकित है, जिसे रावण मानकर पूजने की परंपरा है।


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