बकरोटा क्षेत्र को मिलेगी नई पहचान
पर्यटन नगरी डलहौजी में अनछुए पर्यटन स्थलों से पर्यटकों को रूबरू करवाने के लिए प्रशासन ने कदमताल शुरू कर दी है।
विशाल सेखड़ी, डलहौजी
पर्यटन नगरी डलहौजी में अनछुए पर्यटन स्थलों से पर्यटकों को रूबरू करवाने के लिए प्रशासन ने कदमताल शुरू कर दी है। एसडीएम जगन ठाकुर ने बताया कि डलहौजी के बकरोटा क्षेत्र को नई पहचान मिलेगी। शनिवार को उपायुक्त डीसी राणा बकरोटा हिल्स में धुपघड़ी नामक स्थान पर हैरिटेज वाक का शुभारंभ करेंगे। साथ ही नोबेल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर के स्मारक स्थल पर उनकी प्रतिमा का अनावरण भी करेंगे।
उन्होंने बताया कि प्रतिमा का निर्माण करवाने सहित डलहौजी हिल टाप स्कूल प्रबंधन की ओर से स्मारक स्थल को भी संवार कर नव स्वरूप प्रदान किया गया है। उन्होंने बताया कि हैरिटेज वाक के दौरान पर्यटक डीपीएस स्कूल से धुपघड़ी व बारह पत्थर से होते हुए कैलाश कोठी के समीप तक देवदार के हरे भरे पेड़ों के बीच से गुजरने वाली सड़क पर सैर करने के साथ करीब 168 वर्ष पुरानी धरोहर इमारतों को भी दूर से निहार सकेंगे।
बकरोटा हिल्स पर्यटन नगरी डलहौजी से करीब दो किलोमीटर दूर है। पूरा क्षेत्र देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ है। इससे मार्ग पर वाहनों का शोर भी कम होता है। अंग्रेजों के समय बकरोटा में कई भव्य इमारतों का निर्माण हुआ था, जो करीब पौने दो सौ साल बाद भी भव्य शैली को कायम रखे हुए हैं। बकरोटा का संबंध रविंद्रनाथ टैगोर से भी रहा है। वह वर्ष 1873 में 12 वर्ष की आयु में पिता महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर के साथ डलहौजी आए थे और स्नोडन नामक कोठी में ठहरे थे। डलहौजी के नैसर्गिक दृश्यों, सौंदर्य व शांति ने उनके हृदय में अमिट छाप छोड़ी थी। इस कारण उन्होंने अपनी कविताओं, पत्रों व आत्मकथा में भी डलहौजी की सुंदरता का उल्लेख किया है। उन्होंने दोस्त को लिखे पत्र में भी डलहौजी की सुंदर पर्वत मालाओं का आभार व्यक्त किया था। कहा जाता है कि अपनी कालजयी रचना गीतांजली लिखने की प्रेरणा भी रविंद्रनाथ टैगोर को डलहौजी में ही मिली थी। ऐसे में बकरोटा क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व भी है। अभी तक बकरोटा क्षेत्र में पर्यटकों का ठहराव ज्यादा दिन नहीं होता था। शहर के पास होने के बावजूद यहां का ट्रैकिग रुट भी लगभग अनछुआ था। अब प्रशासन की पहल से धुपघड़ी व बकरोटा क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से नई पहचान मिलेगी।