बुजुर्ग महिलाओं ने बनाए पारंपरिक व्यंजन
ोरोना महामारी के कारण इस बार ऐतिहासिक मिंजर मेला सिर्फ रस्मों तक ही सीमित रहा।
संवाद सहयोगी, चंबा : बबरू, मिठड़ू, पतरोडे़ व चरोड़ी.., यह ऐसे पारंपरिक व्यंजन हैं, जिनका नाम सुनते ही जीभ ललचा जाती है, लेकिन आधुनिक युग में यह पारंपरिक व्यंजन अपना अस्तित्व खो रहे हैं। खास मौकों, पर्व व त्योहारों में पकाए जाने वाले इन व्यंजनों के बारे में युवा पीढ़ी बहुत कम जानती है, जानती भी है तो इन्हें बनाने की विधि का पता नहीं।
अपनी लोक संस्कृति से जुड़े इन व्यंजनों के अस्तित्व को बचाए रखने व युवा पीढ़ी को इनसे रूबरू करवाने के लिए चंबा रिडिस्कवर संस्था के तत्वाधान में बुधवार को बुजुर्ग महिलाओं ने जिला के पारंपरिक व्यंजन बनाए। व्यंजन बनाने का कार्य चंबा के चमीनू स्थित एचटूओ हाउस व जंवाल विला होम स्टे में किया गया। बुजुर्ग महिलाओं शांति देवी, ललिता शर्मा, उषा शर्मा, कांता शर्मा तथा प्रोमिला रैणा ने तैयार किया। साथ ही विकास विक्की, शंकर शर्मा, रेणू शर्मा, अनूप शर्मा, तनविंदर शर्मा, रमेश, मन्नत राणा तथा विजय तनु को इन्हें बनाना भी सिखाया। इन लोगों ने एचटूओ हाउस में व्यंजन बनाए। निर्मल जम्वाल द्वारा विला होम स्टे में व्यंजन बनाए गए।
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ये व्यंजन बनाए
चंबा रिडिस्कवर के संयोजक मनुज शर्मा ने कहा बुधवार को जो व्यंजन बनाए गए हैं, उनमें बेआब, पतरोडे़, चरोड़ी, बबरू, चबरू, मिठडू, लहसोड़े, देसी माह की दाल व देसी आलू दही वाले आदि व्यंजन शामिल रहे। कहा इस तरह की नई पहल इस उद्देश्य से की गई है कि युवा पीढ़ी भी इन व्यंजनों से वाकिफ हो सके। ऐसा करने से इन व्यंजनों का वर्चस्व बना रहेगा तथा युवा पीढ़ी भी पुरातन संस्कृति से जुड़ी रहेगी। ये व्यंजन किसी खास मौके या त्योहारों पर बनाए जाते हैं। युवा पीढ़ी में सारंग शर्मा, मैत्रेय, तुषार, मगनदीप तथा नितिज्ञ प्लाह द्वारा इनकी डॉक्यूमेंटेशन की जा रही है। उन्होंने कहा कि लोग चाहे कितने भी मॉर्डन हो जाएं, लेकिन उन्हें हमेशा अपनी संस्कृति से जुड़े रहना चाहिए। चंबा की संस्कृति काफी स्मृद्ध है। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कार्य करें।