पांगी घाटी के भाईचारे के त्योहार जुकारू का आगाज
पांगी घाटी का आस्था से जुड़ा जुकारू त्यौहार रविवार से शुरू हो गया है। करीब एक माह तक चलने वाले इस त्यौहार को मनाने के लिए बच्चे बूढ़े जवान सभी वर्ष भर इंतजार करते हैं। इस दौरान घरों में साफ सफाई करने के साथ ही लोग अनेक प्रकार के पकवान बनाते हैं। जुकारू को मनाने के साथ लोगों की अनेक आस्थाएं व मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। अमावस्या की रात को घर की दीवारों पर राजा बलि की चित्र बनाया जाता है। हलवा पूरी मंडे मांस आदि पकवान के साथ शराब राजा बली को भेंट स्वरूप चढ़ाए जाते हैं। अगले दिन भगवान सूर्य को जल और फूल अर्पित करके माता लक्ष्मी को आमंत्रित किया जाता है।
कृष्ण चंद राणा, पांगी
पांगी घाटी का आस्था से जुड़ा जुकारू त्योहार रविवार से शुरू हो गया। करीब एक माह तक चलने वाले इस त्योहार को मनाने के लिए बच्चे, बूढ़े व जवान सभी वर्षभर इंतजार करते हैं। इस दौरान घरों में साफ-सफाई करने के साथ ही लोग अनेक प्रकार के पकवान बनाते हैं। जुकारू को मनाने के साथ लोगों की अनेक आस्थाएं व मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।
अमावस्या की रात को घर की दीवारों पर राजा बलि की चित्र बनाया जाता है। हलवा, पूरी, अंडे व मांस आदि पकवान के साथ शराब राजा बली को भेंट स्वरूप चढ़ाए जाते हैं। अगले दिन भगवान सूर्य को जल और फूल अर्पित करके माता लक्ष्मी को आमंत्रित किया जाता है। जुकारू को भाईचारे तथा लोक संस्कृति का त्योहार भी माना जाता है। बुजुर्ग बताते हैं कि पांगी घाटी में राणाओं और ठाकुरों का एक छत्र राज रहता था। जो सालभर आपस में लड़ते रहते थे। इससे आम लोगों को अपनों से मिलने का मौका नहीं मिलता था। इसके चलते यह निर्णय लिया गया कि साल में एक ऐसा त्योहार मनाया जाए, जिस दिन आपसी भेदभाव को भुलाकर सभी एक-दूसरे के साथ प्यार भाव से मिलें। तब से जुकारू को मनाया जाता है। कुछ जानकारों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश लोक संस्कृति तथा त्योहारों के लिए जाना जाता है। सर्दी में भारी बर्फबारी के चलते पांगी का संपर्क विश्व से कट जाता है। इस दौरान लोगों की आवाजाही बंद हो जाती है। इसको देखते हुए घाटी के लोगों ने आपसी मिलन के लिए जुकारू त्योहार को मनाना शुरू किया। उत्सव करीब एक माह तक चलता है।
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क्या खास होता है जुकारू के दौरान
जुकारू से एक सप्ताह पहले घरों की सफाई की जाती है तथा अनेक प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। अमावस्या की रात को राजा बलि के साथ समस्त देवताओं की पूजा होती है। प्रथम दिन सुबह सूर्य भगवान को जल-फूल अर्पित किए जाते हैं। मवेशियों को जुकारू भेंट की जाती है। सूर्य को जल-फूल अर्पित करने के बाद पुजारी अंदर आते समय शुभ शब्द बोलता है। बुजुर्गों के पांव छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। दूसरे दिन धरती माता की पूजा की जाती है। उसके बाद अन्य रिश्तेदारों का आना शुरू हो जाता है, जो कि वैशाखी तक रहता है।
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पांगी का जुकारू त्योहार अपना अलग महत्व रखता है। इसका हर कोई बेसब्री से इंतजार करता है। राजा बलि की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। अमावस्या की रात उसके नाम रहती है। इससे भूकंप जैसे खतरों से निजात मिलती हैं। इसके साथ में देवी देवताओं और गृह देवत पितरों की पूजा भी जाती है।
-इंद्र प्रकाश, अध्यक्ष पांगी फर्स्ट पंगवाल फर्स्ट