भूस्खलन से चकनाचूर हुए सपने, इस गांव के सात परिवार भविष्य को लेकर चिंतित
रविवार को हुए भूस्खलन के कारण शहाल जिंदगी जी रहे सात परिवारों को भविष्य के अंधेरे में है अभी तो प्रशासन राहत पहुंचा रहा है लेकिन ये मदद कब तक मिलती रहेगी।
घुमारवीं, जेएनएन। पुश्तैनी मकानों में खुशहाल जिंदगी जी रहे सात परिवारों को भविष्य के अंधेरे ने बेचैन कर दिया है। बच्चों को स्कूल भेजने, पूजा पाठ, खेतीबाड़ी व पशुओं के लिए चारा लाने आदि सभी काम रविवार को हुए भूस्खलन ने रोक दिए हैं। बच्चों की किताबें मिट्टी में मिलने से उनके सपने चकनाचूर हो गए हैं। एक पिता पर चार बेटियों के भरण पोषण की जिम्मेदारी है। प्रशासन ने भी एक महीने तक का राशन दिया है।
मदद के लिए बढ़ते हाथ अभी तो प्रभावित परिवारों की पीड़ा को कम कर रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि आखिर कब तक ये लोग इनकी मदद करते रहेंगे। कब तक प्रभावित परिवारों को सराय में सहारा मिलेगा। कैसे बच्चे पढ़ाई पूरी करेंगे। क्या सरकार इन परिवारों को जमीन देने व मकान बनाने के लिए तुरंत कोई ठोस कदम उठाएगी? एसडीएम शशि पाल शर्मा ने कहा प्रशासन का काम राहत व बचाव कार्य करना होता है। बडे़ फैसले सरकार के स्तर पर लिए जाते हैं।
कठलग गांव के बीडीसी सदस्य श्याम धीमान ने कहा वे पुश्तैनी मकान में रहते थे। भूस्खलन से सब खत्म हो गया है। अगर कहीं से मदद न मिले तो परिवार का एक दिन में पालन पोषण करना मुश्किल हो जाएगा। गहने व नकदी आदि मलबे में दब गए हैं। राहत शिविर में श्याम लाल के बच्चों सौरव व शिवानी ने कहा उनकी किताबें, कापियां व वर्दियां मलबे में दब गए हैं। इसके बाद दोनों पिता के गले से लिपट गए। उन्हें उम्मीद है कि पिता फिर मकान मकान बनाएं और उनकी जिंदगी पहले की तरह खुशहाल होगी। लेकिन पिता क्या करे।
लाहुल स्पीति में दो हजार पर्यटक और चार सौ गाड़िया फंसी, जानें क्या है कारण
बलवंत पटियाल के दोनों बच्चे शशांक पटियाल व कनिका घुमारवीं में पढ़ते हैं। बलवंत की जिंदगी में भी भूस्खलन ने तबाही मचाई है। इनके पास भी यादें ही बची हैं। उन्होंने हौसला तो नहीं छोड़ा है लेकिन यही चिंता सता रही है कि खाली हाथ परिवार का पालन पोषण कैसे करेंगे। बलवंत ने कहा मकान बनाने के लिए उसके पास जमीन नहीं बची है। रंजीत सिंह की चार बेटियां अंजलि, मधु बाला, सुमन व शालिनी हैं। इनमें से कुछ कॉलेज में पढ़ती हैं। रंजीत चारों बेटियों को अफसर बनाना चाहता था लेकिन भूस्खलन ने उनके सपने को चकनाचूर कर दिया। राहत शिविर में मौजूद नंद लाल, सुखदेई, जैदेई सहित सभी परिवारों का कहना है कि कुछ दिन तो मदद से निकल जाएंगे लेकिन बाकी जिंदगी कैसे कटेगी। कैसे वे रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करेंगे? बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे और मकान कैसे बनाएंगे।