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नगर परिषद घुमारवीं : कांग्रेस का पलड़ा रहा हर बार भारी

संजीव शामा घुमारवीं नगर परिषद घुमारवीं में हमेशा कांग्रेस का ही पलड़ा भारी रहा है

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Dec 2020 04:37 PM (IST)Updated: Sat, 19 Dec 2020 04:37 PM (IST)
नगर परिषद घुमारवीं : कांग्रेस का पलड़ा रहा हर बार भारी
नगर परिषद घुमारवीं : कांग्रेस का पलड़ा रहा हर बार भारी

संजीव शामा, घुमारवीं

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नगर परिषद घुमारवीं में हमेशा कांग्रेस का ही पलड़ा भारी रहा है। 1995 में जब पहली बार शहरी निकाय का गठन हुआ था तबसे लेकर 2015 तक हुए 25 वर्ष के पांच चुनावों में ज्यादातर कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों का ही अध्यक्ष पद पर कब्जा रहा है। क्योंकि इन 25 सालों में कुल 10 लोग अध्यक्ष पद की कुर्सी पर विराजमान हुए लेकिन उसमें भाजपा को मात्र पांच साल ही राज करने को मिले।

1995 में पहली बार हुए चुनाव में कांग्रेस समर्थित नेत्री गीता महाजन पहली प्रधान बनी थी परंतु अभी ढाई साल ही पूरे कर पाई क्योंकि उस समय भी राकेश चोपड़ा की वजह से गीता महाजन को कुर्सी छोडनी पड़ी थी और तत्कालीन अंबेडकर वार्ड से जीतकर आई मीरा देवी को अध्यक्ष बना दिया गया था।

2000 के चुनाव में फिर से कांग्रेस समर्थित दयाराम अध्यक्ष पद पर काबिज हुए लेकिन वह भी मात्र एक साल ही रहे। इसके पश्चात भाजपा समर्थित स्व. अशोक कुमार काका को अध्यक्ष पद मिला लेकिन वो भी केवल एक साल ही टिक पाए। इसके बाद कांग्रेस समर्थित विनोद सेठी काबिज हुए जो बाकी बचे ढाई साल लगा गए।

2005 में हुए चुनाव में फिर पांच साल के लिए कुर्सी कांग्रेस के हाथ में आई और उसके दो उम्मीदवार सतपाल व रीता सहगल ढाई-ढाई साल का कार्यकाल पूरा करके गए। बीते वर्षो में हुए पांच चुनावों में 2010 में जब पहली बार प्रदेश सरकार द्वारा पार्टी चुनाव चिह्न पर चुनाव करवाए गए थे उस वक्त भी प्रधान और उपप्रधान का चुनाव क्रमश: रीता सहगल और वर्तमान अध्यक्ष राकेश चोपड़ा द्वारा निर्दलीय जीता था परंतु उसके बाद फिर कमान कांग्रेस के हाथ में आ गई।

इन बीते पांच चुनाव में वर्तमान में यह पहली बार हुआ कि भाजपा समर्थित प्रत्याशी को दो साल अध्यक्ष पद के रूप में कार्य करने को मिले। कुल मिलाकर अगर 2010 में हुए चुनाव में प्रधान और उपप्रधान के लिए सीधे चुनाव में निर्दलीय जीत कर आए रीता सहगल और राकेश चोपड़ा के कार्यकाल को छोड़ दिया जाए तो इतिहास रहा है कि घुमारवीं में कोई भी आज तक पांच साल अध्यक्ष की पद की कुर्सी पर नहीं टिक पाया है।

25 वर्ष में भाजपा समर्थित उम्मीदवारों ने हर बार कोशिश की और हर बार अध्यक्ष पद की कुर्सी पर किसी को पूरी तरह काबिज होने नहीं दिया परंतु बावजूद इसके वे खुद अपने किसी भी पार्षद या उम्मीदवार को अध्यक्ष पद की कुर्सी पर बिठा नहीं पाई।


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