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बिलासपुर में दीमक 'पढ़' रही किताबें

करीब 60 हजार किताबों की संख्या वाले जिला पुस्तकालय बिलासपुर में अलमारियों की कमी से दीमक पुस्तकों को खा रही है। यहां पर पुस्तकों को दीमक से बचाने के लिए बरसात के मौसम में जर्जर अलमारियों में दवाई डाली जाती है, ताकि पुस्तकें खराब न हो। कईं वर्षो से जर्जर हो चुकी अलमारियों में जुगाड़ तंत्र के सहारे इस्तेमाल किया जा रहा है। कुछ समय पहले ही इस पुस्तकालय में टीन की छत डाली गई, जिससे अब छत

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Nov 2018 07:11 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 07:11 PM (IST)
बिलासपुर में दीमक 'पढ़' रही किताबें
बिलासपुर में दीमक 'पढ़' रही किताबें

संवाद सहयोगी, बिलासपुर : जिला पुस्तकालय बिलासपुर में जर्जर अलमारियों में दीमक पुस्तकों को चट कर रहा है। पुस्तकालय प्रबंधन इन्हें बचाने के लिए दवा का इस्तेमाल कर रहा है। कुछ समय पहले पुस्तकालय में टीन की छत डाली गई थी। इससे पानी टपकना बंद हो गया है। इससे पहले हर बरसात में सैकड़ों पुस्तकें पानी से खराब हो जाती थीं। लेकिन अब इन्हें चट कर रहा है। 60 हजार पुस्तकों को रखने के लिए 100 के करीब अलमारियां हैं। इनमें उपन्यास, आजादी के इतिहास और महान विभूतियों की किताबें रखी गई हैं। हैरानी की बात है पुस्तकालय में बिलासपुर के भौगोलिक इतिहास की एक भी पुस्तक नहीं है। इस कारण इतिहास में रुचि रखने वाले कई लोगों को मायूस होकर लौटना पड़ता है।

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बिलासपुर की रियासतों के दौर की राजनीतिक हलचल को संजोये दो ही किताबें पुस्तकालय में हैं। इसके अलावा बिलासपुर जिला की रियासतों के गढ़ का कोई इतिहास यहां पर नहीं है और न ही कोई लेखा-जोखा है। किताबों में इतिहास को नहीं संजोया जा रहा है। जमीन पर भी राजवंशों के गढ़ों को बचाने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

1960 में बना था पुस्तकालय

जिला पुस्तकालय 1960 में बना था। इसके बाद से यहां पर किताबों की संख्या तो लगातार बढ़ी रही है। लेकिन पुस्तकालय के भवन और पुस्तकों के रखरखाव की ओर ध्यान नहीं दिया गया है। इससे पुस्तकें कभी बरसात की भेंट चढ़ीं तो कभी इन्हें दीमक चट कर गया। पुस्तकों को बचाने के लिए महज दवा छिड़कने तक का ही प्रावधान है। पुस्तकालय प्रबंधन मैग्जीन, अखबार आदि छोटे-मोटे खर्च के लिए अधिकृत है।

वाई-फाई और न ही कैंटीन की सुविधा

पुस्तकालय में न तो वाई-फाई की सुविधा पाठकों को मिली है न ही कैंटीन की सुविधा है। यहां पर 50 के करीब लोगों के बैठने की क्षमता है। इसे अधिक कुर्सियां व टेबल लगाकर बढ़ाया तो जा सकता है। लेकिन बिलासपुर के युवा यहां आने में कम रुचि दिखा रहे हैं। 100 के करीब युवा ही नियमित पुस्तकालय में आ रहे हैं। इनकी इतिहास में कोई रूचि नहीं है। ये प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकें ही यहां ले रहे हैं। शहर के कुछ बुजुर्ग जरूर इतिहास से जुड़ी पुस्तकों को पढ़ने के लिए लेते हैं।

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पुस्तकालय में अलमारियों की कमी है। फिर भी पुस्तकों को दीमक से बचाने के लिए दवा का इस्तेमाल किया जा रहा है।

-विद्या देवी, सहायक अध्यक्ष, जिला पुस्तकालय बिलासपुर


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