तनवी ने हॉकी से दागे खुशियों के गोल
जिला बिलासपुर के डियारा सेक्टर से संबंध रखने वाली एक साधारण परि
संवाद सहयोगी, घुमारवीं : जिला बिलासपुर के डियारा सेक्टर से संबंध रखने वाली एक साधारण परिवार में दो मार्च, 1995 को जन्मी तनवी आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। अपने बचपन में अपने पापा को हॉकी खेलते देखा तो ऐसा नहीं सोचा कि एक दिन उसका रूझान भी इस खेल की तरफ जाएगा, लेकिन जैसे-जैसे बड़ी हुई हॉकी जिंदगी का हिस्सा बन गई। स्कूल स्तर पर हॉकी खेले पिता की चाहत थी कि बेटी एक दिन बड़ा नाम कमाए।
तीन बार सीनियर वूमन हॉकी नेशनल खेलने वाली तनवी पठान को अब इंतजार है तो भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा बनने का। वर्तमान में एयरटेल कंपनी में काम कर रही तनवी को गर्व और खुशी है कि वह जिला बिलासपुर से चार इंटर यूनिवर्सिटी, दो नेशनल और तीन सीनियर नेशनल खेलने वाली एकमात्र लड़की है। बचपन में तनवी को क्रिकेट खेलना बहुत पसंद था, लेकिन बाद में पापा को घर पर हॉकी से खेलते देख हॉकी में ऐसा मन लगा कि आज हॉकी जिंदगी का जुनून बन गई।
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ऐसी रही शिक्षा-दीक्षा
दसवीं तक की शिक्षा बिलासपुर की कन्या पाठशाला से पास करने के बाद 2011 में साई खेल हॉस्टल धर्मशाला के लिए चुना गया। यहां पांच साल खेल के साथ-साथ स्नातक तक की पढ़ाई भी पूरी की। उनके स्कूल के खेल प्रशिक्षक योधराज द्वारा करवाई गई कड़ी मेहनत का फल प्राप्त हुआ। उसमें बाकी निखार साई हॉस्टल खेल प्रशिक्षक हसीना बानो ने पूरा किया, जिन्होंने उन्हें प्रशिक्षित किया। 2012 में पहला अंतर महाविद्यालय मैच खेला।
बकौल तनवी, 'मुझे आज भी अपना पहला मैच याद है। मैं मैच शुरू होने से पहले घबरा गई थी, लेकिन बाद में कुछ भी नहीं सोच सकी। साई में जब सीनियर्स का साथ मिला तो हौसलों को मानो पंख लग गए। मुझे अब इंतजार है भारतीय नेशनल हॉकी टीम में खेलने का। शायद यह सपना भी जल्द पूरा होगा। अब बस इंतजार है सिलेक्शन कमेटी के बुलावे का। जब मैंने माता-पिता को हॉकी के प्रति अपने प्यार के बारे में बताया, तो उन्होंने पढ़ाई को लेकर चिंता जताई। हॉकी खेलने के लिए वैसे कभी मना नहीं किया। लेकिन बाद में पूरे परिवार ने साथ दिया। अब मेरा परिवार मेरे लिए खुश है। पापा आकाश बाबू लोक निर्माण विभाग में अकाउंटेंट थे। मां गृहिणी है। मैं अभी घुमारवीं में काम करती हूं, लेकिन अगर मुझे सरकार में नौकरी का अवसर मिलता है, तो मैं बच्चों को हॉकी सिखाना पसंद करूंगी। हॉकी में हमेशा भविष्य था, लेकिन मुझे लगता है कि खेल को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है। भारत में पर्याप्त कोच नहीं हैं।'