मत्स्य शोध की धनराशि पर सिर्फ उपयोगिता प्रमाण पत्र
बिलासपुर : राज्य सरकार का मत्स्य विभाग कृषि विवि पालमपुर को पिछले कई वर्ष
जागरण संवादाता, बिलासपुर : राज्य सरकार का मत्स्य विभाग कृषि विवि पालमपुर को पिछले कई वर्ष से लाखों रुपये दे रहा है कि हिमाचल में मछली उत्पादन की संभावनाओं और राज्य में घटते मत्स्य उत्पादन की वजहों पर शोध कर नतीजों से अवगत करवाएं। लेकिन बदले में कृषि विवि सिर्फ हर साल एक उपयोगिता प्रमाण पत्र ही दे रहा है।
लेकिन प्रयोग कहाँ हुआ, इसकी कोई जानकारी नहीं। कौन सा शोध हुआ और इसके नतीजों का मत्स्य उत्पादन में क्या सहयोग हो सकता है, इसकी विभाग को न कोई जानकारी और न कोई पत्राचार। मतलब यह कि शोध हुआ तो विवि की फाइलों में कैद हो गया और अगर नहीं भी हुआ तो पूछता कौन है।
हालांकि राज्य सरकार का बिलासपुर स्थित मत्स्य निदेशालय प्रदेश भर में मछली उत्पादन की संभावनाओं को जानने और सामने आ रही दिक्कतों के समाधान के लिए इस विवि को हर वर्ष तीन लाख रुपये की राशि प्रदान करता है। इस राशि से मत्स्य उत्पादन पर शोध करके वैज्ञानिकों को इसके नतीजों से विभाग को वापस अवगत कराना पड़ता है। लेकिन पिछले कुछ सालों से इस विभाग का कोई भी वैज्ञानिक कृषि विवि के पास नहीं था तो विवि उपयोगिता प्रमाण पत्र कैसे जारी करता रहा। कृषि विवि को अधिकारिक पत्र से क्यों सूचित नहीं किया
कृषि विवि के संयुक्त निदेशक लोक संपर्क विभाग डॉक्टर हृदय पाल ¨सह ने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय को केवल यही एक ही विभाग पैसा नहीं देता है बल्कि राज्य सरकार की ओर से तैयार किए गए नियमों के तहत शोध और विविध कामकाज के लिए बाकी विभाग भी पैसा देते हैं। पिछले कुछ समय से विवि में इस विभाग में कोई भी वैज्ञानिक नहीं था। लेकिन अब हाल ही में भर्ती की गई है। कृषि विश्वविद्यालय में मत्स्य उत्पादन पर कई शोध हुए हैं। लेकिन मत्स्य निदेशक को यह स्पष्ट करना पड़ेगा कि अब तक कौन से शोध के सार नहीं मिल पाए हैं। अगर ऐसा था तो आधिकारिक पत्र के जरिये विवि से अब तक जवाब तलब क्यों नहीं किया गया। विभाग को शोध रिपोर्ट का इंतजार : निदेशक
बिलासपुर स्थित मत्स्य विभाग के निदेशक सतपाल मेहता कहते हैं कि विभाग को इंतजार रहता है कि कृषि विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें कुछ मत्स्य उत्पादन की संभावनाओं व अनेक प्रकार की दिक्कतों के समाधान के लिए शोधकर्ता वैज्ञानिकों की ओर से मदद मिलेगी। लेकिन वर्षो से विवि की ओर से विभाग तक कुछ नहीं पहुंचा है। विश्वविद्यालय को हर साल पैसा दिया जा रहा है लेकिन बदले में सिर्फ यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट ही उनके विभाग तक पहुंचता है।