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तीस साल की मेहनत लायी रंग, चंदन वन में बदल गयी बंजर जमीन

हिमाचल के बिलासपुर में पूर्व सैनिक 80 वर्षीय लाल सिंह ठाकुर की 30 साल की मेहनत ने बंजर जमीन को चंदन वन में बदल दिया।

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 19 Feb 2020 07:52 AM (IST)Updated: Wed, 19 Feb 2020 07:52 AM (IST)
तीस साल की मेहनत लायी रंग, चंदन वन में बदल गयी बंजर जमीन
तीस साल की मेहनत लायी रंग, चंदन वन में बदल गयी बंजर जमीन

बिलासपुर, राजेश्वर ठाकुर। हिम्मत, जुनून और मेहनत के पसीने से पूर्व सैनिक ने बंजर जमीन को सींचा और फलदार बगीचे के साथ-साथ करीब ढाई किलोमीटर तक चंदन के पेड़ उगा दिए। अब इनकी खुशबू से क्षेत्र महक रहा है। कहानी हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से है, जहां पूर्व सैनिक 80 वर्षीय लाल सिंह ठाकुर की तारीफ हर कोई कर रहा है।

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लाल सिंह बताते हैं कि उनके पास जमीन तो बहुत थी, लेकिन कृषि योग्य बहुत कम। अधिकांश जमीन चट्टानी और बंजर थी। ऐसे में उनका जुनून था कि इस क्षेत्र में हरियाली लाकर बंजर का दंश मिटा दें। इसके लिए उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद मिली अच्छी नौकरी भी त्याग दी।

बिलासपुर जिला के घुमारवीं उपमंडल स्थित पट्टा पंचायत के गांव बाडी मझेडवा निवासी लाल सिंह ठाकुर ने अपनी जमीन से चट्टानों को छेनी व सब्बल से काटकर इस योग्य बनाया कि इसमें पौधे पनप सकें। फलदार बगीचा लगाने के साथ ही चंदन के हजारों पौधे भी रोपे।

लाल सिंह 1979 में भारतीय सेना की सिग्नल कोर से सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद उन्होंने बीएसएफ में सेवाएं दीं, लेकिन दो वर्ष के बाद ओएनजीसी में नौकरी की। तीन वर्ष बाद इस नौकरी को भी छोड़ दिया। कहते हैं, अपनी 55 बीघा जमीन में कृषि-बागवानी करना चाहता था।

इसमें से महज दस बीघा जमीन ही कृषि योग्य थी। बाकी जमीन में चट्टानें थीं। चट्टानों को काटकर फलदार पौधे रोपे और बगीचा तैयार किया। इसके बाद मैसूर (कर्नाटक) से चंदन के पौधे लाया और रोपना शुरू किया। इसी बीच नौणी स्थित बागवानी विश्वविद्यालय के निदेशक करतार सिंह वर्मा से अपनी बात साझा की और फिर इस बंजर इलाके को हरियाली से भर देने की ठानी...। अब करीब ढाई किलोमीटर क्षेत्र में हजारों चंदन के पेड़ हैं। लाल सिंह अब 80 की उम्र पार कर चुके हैं। कृषि एवं बागवानी के क्षेत्र में राज्य सरकार ने उन्हें कई पुरस्कार प्रदान किए हैं।

ऐ बदली बंजर की तकदीर...

लाल सिंह ठाकुर के बेटे विजय सिंह ठाकुर ने बताया कि पिताजी ने 1990 में चट्टानों को तोड़ना शुरू किया था ताकि इन पर पानी ठहर सके। इसके लिए चट्टानों में सुराख कर छोटे-छोटे गड्ढे बनाए। इन गड्ढों में बारिश का पानी रुकना शुरू हुआ और मिट्टी भी। चट्टानों पर घासफूस उगाने के लिए खास तरह की बेलें भी रोपी, जो खूब फैलीं। खाद डालने और बारिश का पानी रुकने के कारण इनमें फलदार पौधे आम, किन्नू, लीची, कटहल, चीकू इत्यादि लगाना शुरू कर दिया। लगभग 45 बी जमीन में कुछ ही वर्ष में चट्टानों पर समृद्ध बगीचा तैयार हो गया। फिर धीरे-धीरे ढाई किमी के दायरे में बड़ा क्षेत्र हरियाली से भर गया, जो पहले बंजर था।

इससे सभी का भला...

हर किसी को पौधे लगाने चाहिए। जरूरी नहीं कि अपनी ही जमीन में लगाएं, मकसद अपने आसपास हरियाली को बरकरार रखना हो। बंजर पर लगाएं, सड़कों के किनारे लगाएं, खाली पड़ी जमीन पर लगाएं, सरकारी जमीन में भी लगाएं, क्योंकि इससे धरती पर सभी का भला है।

-लाल सिंह ठाकुर, बागवान

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