निमोनिया पर होगी जीत
अगर निमोनिया का समय रहते समुचित इलाज नहीं किया जाता, तो यह मर्ज गंभीर रूप अख्तियार कर सकता है। कुछ सुझावों पर अमल कर इस रोग का कारगर इलाज संभव है..
अगर निमोनिया का समय रहते समुचित इलाज नहीं किया जाता, तो यह मर्ज गंभीर रूप अख्तियार कर सकता है। कुछ सुझावों पर अमल कर इस रोग का कारगर इलाज संभव है...
फेफड़े में संक्रमण (इंफेक्शन) को निमोनिया कहा जाता है। यह इंफेक्शन ज्यादातर मामलों में जीवाणुओं (बैक्टीरिया) के कारण होता है। इस मर्ज में एक या दोनों फेफड़ों के भागों में सूजन आ जाती है और फेफड़ों में पानी भी भर सकता है।
कारण
न्यूमोकोकस, हीमोफिलस, लेजियोनेला, माइकोप्लाज्मा, क्लेमाइडिया और स्यूडोमोनास आदि जीवाणुओं से निमोनिया होता है। इसके अलावा कई वाइरस (जो इंफ्लूएंजा और स्वाइन फ्लू के वाहक हैं), फंगस और परजीवी रोगाणुओं के कारण भी निमोनिया होता है।
भारत में प्रतिवर्ष संक्रामक रोगों से होने वाली मौतों में से लगभग 20 फीसदी निमोनिया की वजह से होती हैं। इसके अलावा अस्पताल में होने वाले संक्रामक रोगों में यह बीमारी दूसरे स्थान पर है। इन्हें है ज्यादा खतरा वैसे तो यह संक्रमण किसी को भी हो सकता है, पर कुछ बीमारियां और स्थितियां ऐसी हैं, जिसमें निमोनिया होने का खतरा अधिक होता है। जैसे शराब और नशे से पीडि़त मरीज, डाइलिसिस पर रहने वाले मरीज, हृदय,फेफड़े
और लिवर की बीमारियों के गंभीर मरीज। इसी तरह मधुमेह, गंभीर किडनी रोग, वृद्ध, कम उम्र
के बच्चे और नवजात शिशु, कैंसर और एड्स के मरीज। ऐसे मरीजों की रोग प्रतिरोधक
क्षमता कम हो जाती है।
संक्रमण इस तरह से सांस के रास्ते- खांसने या छींकने से। खून के रास्ते- डाइलिसिस के कारण।
अस्पताल में ऐसे मरीज जो लंबे समय से इंट्रा- वीनस फ्लूड पर हैं, या दिल के ऐसे मरीज जो
पेस मेकर पर हैं।
इसके अलावा खाद्य पदार्र्थों के सांस की नली में चले जाने से भी संक्रमण संभव है।
प्रमुख लक्षण
- तेज बुखार (जोड़ों में दर्द के साथ)।
- खांसी और बलगम (जिसमें कई बार खून के छीटें भी हो सकते हैं)।
- सीने में दर्द और सांस फूलना।
- कुछ मरीजों में दस्त, मतली और उल्टी आना।
- व्यवहार में परिवर्तन जैसे मतिभ्रम, चक्कर आना, भूख न लगना, मांशपेशियों में दर्द, सर्दी
लगकर शरीर ठंडा पड़ जाना, सिरदर्द और त्वचा का नीला पडऩा आदि।
जांचें- खून की जांच, सीने का एक्स-रे, बलगम में ग्राम स्टेन और कल्चर की जांच। रक्त की कल्चर जांच आदि।
गंभीर स्थिति के लक्षण- कुछ ऐसे लक्षण हैं, जिनके कारण निमोनिया से पीडि़त व्यक्ति को सघन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में भर्ती होने की जरूरत पड़ सकती है। जैसे...
- कमजोर नब्ज और रक्तचाप का कम होना।
- हाथ और पैरों का ठंडा पड़ जाना।
- सांस लेने की दर प्रति मिनट 30 से अधिक।
- भ्रम की स्थिति।
- श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या 4,000 से कम हो जाए।
- प्लेटलेट्स का एक लाख से कम होना। ऐसी स्थिति में रोगी को वेंटिलेटर की भी जरूरत पड़ सकती है।
प्रमुख इलाज एंटीबॉयटिक्स दवाओं से इलाज होता है। इन दवाओं का इलाज मरीज की बीमारी का कारण बने जीवाणु पर निर्भर करता है। अधिकतर मरीज बाह्य रोगी विभाग द्वारा इलाज करा सकते है, पर अगर यह मर्ज किसी अन्य बीमारी के साथ जुड़ा हुआ है और 60 साल से अधिक की उम्र के व्यक्ति को हुआ है या रोगी गंभीर रूप
से बीमार है, तो अक्सर अस्पताल में भर्ती होकर इलाज कराना पड़ सकता है। एंटीबॉयटिक दवाओं के अतिरिक्त अगर मरीज की सांस तेजी से फूल रही है, तब पीडि़त व्यक्ति को ऑक्सीजन भी दी जाती है।
बचाव
- चूंकि यह बीमारी ठंड के मौसम में ज्यादा होती है। इसलिए ठंड से बचना चाहिए।
- धूम्रपान, शराब और सभी तरह के नशे का पूर्णत: त्याग करना।
- मधुमेह और अन्य बीमारियों को नियंत्रण में रखना। मधुमेह के मरीजों को अपने डॉक्टर से
शुगर की नियमित जांच करवाते रहना चाहिए और शुगर को नियंत्रण में रखना चाहिए।
- निमोनिया का सबसे प्रमुख कारण न्यूमोकोकस नामक जीवाणु है। इससे बचने का वैक्सीन
(टीका) उपलब्ध है, जिसे न्यूमोकोकल वैक्सीन कहते हैं।
डॉ.सूर्यकांत त्रिपाठी
प्रमुख पल्मोनरी मेडिसिन डिपार्टमेंट
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ