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हर रात की सुबह होती है

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में सन् 2012 में आठ लाख, चार हजार लोगों ने आत्महत्याएं कीं। इस संदर्भ में चिंताजनक पहलू यह है कि आत्महत्या करने वाले इन लोगों में एक लाख, पैंतीस हजार लोग भारतीय थे। ये आंकड़े आत्महत्या की समस्या की भयावहता को दर्शाते हैं।

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 08 Sep 2015 03:23 PM (IST)Updated: Tue, 08 Sep 2015 03:28 PM (IST)
हर रात की सुबह होती है

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में सन् 2012 में आठ लाख, चार हजार लोगों ने आत्महत्याएं कीं। इस संदर्भ में चिंताजनक पहलू यह है कि आत्महत्या करने वाले इन लोगों में एक लाख, पैंतीस हजार लोग भारतीय थे। ये आंकड़े आत्महत्या की समस्या की भयावहता को दर्शाते हैं। बावजूद इसके, अगर कुछ सजगताएं बरती जाएं, तो आत्महत्या की इस गंभीर समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। वल्र्ड सुसाइड प्रीवेंशन डे (10 सितंबर) पर विशेष...

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आम धारणा के विपरीत अवसाद (डिप्रेशन) और आत्महत्या जैसी मानसिक समस्याएं सिर्फ अशिक्षित व आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों तक ही सीमित नहीं हैं। ये समस्याएं अब शिक्षित, संभ्रान्त व सम्पन्न वर्ग के लोगों में भी तेजी से बढ़ रही हैं।

कारण

आत्महत्या के अनेक कारण हो सकते हैं। जैसे ...पारिवारिक बिखराव पारिवारिक बिखराव और कलह के चलते आत्महत्या की आशंकाएं दोगुने से भी अधिक बढ़ जाती हैं।

नशा- शराब व नींद की गोलियों की लत के चलते अवसाद, हताशा व आत्महत्या करने की मनोदशा उत्पन्न होती है। नशा करने वाला दस में से एक व्यक्ति आत्महत्या कर सकता है।

मानसिक रोग- मानसिक रोग जैसे डिप्रेशन, स्कीजोफ्रेनिया और एबसेशन आदि मनोरोग आत्महत्या के प्रमुख कारणों में शामिल किए जाते हैं।

ऐसे बचा सकते हैं जान

किसी शख्स को आत्महत्या से बचाने के लिए आपका डॉक्टर या विशेषज्ञ होना जरूरी नहीं है। आम आदमी जो रोगी के परिजन हैं या उसके संगी-साथी हैं, वे भी अनेक बार बेहतर रूप से रोगी की सहायता कर सकते हैं और किसी की जान भी बचा सकते हैं। इसके लिए

इन बातों को ध्यान में रखें...

मनोदशा को समझें

आत्महत्या की मंशा रखने वाले व्यक्ति की मनोदशा जीवन और मृत्यु की दुविधा में झूलती रहती है। वह दिल से तो जीना चाहता है, लेकिन उसे तकलीफों का अंत आत्महत्या में ही दिखता है। इस कारण वह मन

के विरुद्ध गलत निर्णय ले बैठता है। ऐसे में परिजन, संगी व साथी यदि भावनात्मक रूप से पीडि़त व्यक्ति के साथ हैं और बिना शर्त रोगी को सुनने के लिए तैयार हैं और उसकी तकलीफ को समझ लें, तो रोगी

सहज रूप से जीवन जीना स्वीकार कर लेता है।

नकारात्मक परिवर्तनों को पहचानें

- मन उदास होना और अलग-थलग रहना।

- बार-बार किसी बात या हादसे को लेकर लंबे समय

तक परेशान होना और अपराध बोध महसूस करना।

यह सोचना कि अब कुछ नहीं हो सकता या सब कुछ

बर्बाद हो गया। इस तरह के नकारात्मक विचारों का

बार-बार आना।

- अत्यधिक गुस्सा आना, हर वक्त मरने जीने की बात करना या आर-पार की लड़ाई की धमकी देना।

- शराब या नशा करना या उसकी मात्रा बढ़ा देना।

- लापरवाही से रहना और खुद को जोखिम में डालना।

- नींद न आना, भूख न लगना व दैनिक कार्र्यों में

अरुचि पैदा होना।

बात करने से निकलेगा समाधान

यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या की बात करता है, तो

उससे इन विषय में बात करने से न हिचकिचाएं...

- रोगी को स्पष्ट शब्दों में बताएं कि वह हम सबके

लिए, परिवार व बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

- परिजन व दोस्त होने के नाते रोगी को इस बात का

विश्वास दिलाएं कि हम उसकी तकलीफ को समझते

हैं और हर वक्त बिना शर्त उसके लिए उपलब्ध हैं।

- रोगी को इस बात का विश्वास दिलाएं कि उसके

कष्ट सीमित समय के लिए हैं और कुछ दिनों में सब

कुछ सामान्य हो जाएगा।

डॉ. उन्नति कुमार

मनोरोग विशेषज्ञ


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