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रेनाड्स सिंड्रोम : उंगलियों की करें हिफाजत

रेनाड्स सिंड्रोम नामक रोग का प्रकोप सर्दियों के मौसम में ज्यादा होता है। वैसे तो इस बीमारी की रोकथाम संभव है, लेकिन अगर कोई शख्स किन्हीं कारणों से इस रोग से ग्रस्त हो ही गया, तो इसका समुचित इलाज संभव है। क्या है रेनाड्स सिंड्रोम का इलाज...?

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 29 Jan 2015 10:38 AM (IST)Updated: Thu, 29 Jan 2015 10:51 AM (IST)
रेनाड्स सिंड्रोम : उंगलियों की करें हिफाजत

रेनाड्स सिंड्रोम नामक रोग का प्रकोप सर्दियों के मौसम में ज्यादा होता है। वैसे तो इस बीमारी की रोकथाम संभव है, लेकिन अगर कोई शख्स किन्हीं कारणों से इस रोग से ग्रस्त हो ही गया, तो इसका समुचित इलाज संभव है। क्या है रेनाड्स सिंड्रोम का इलाज...?

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जैसे-जैसे नये व्यवसाय खुलते जा रहे हैं, वैसे-वैसे रेनाड्स रोग फैलता जा रहा है। खाद्य संरक्षण उद्योग से जुडे़ कर्मचारियों में रेनाड्स रोग की संभावना बढ़ रही है। ऐसा इसलिए, के हाथों का ठंडे और गर्म पानी से

जल्दी-जल्दी संपर्क होता रहता है। आइसक्रीम फैक्ट्री में काम करने वाले श्रमिकों में रेनाड्स रोग का खतरा हमेशा मंडराता है।

रेनाड्स रोग की संभावना उन लोगों में भी होती है, जो चक्करदार गतिशील उपकरणों का बहुत इस्तेमाल करते हैं। जैसे ड्रिलिंग मशीन, मिक्सी व ब्यूटी पार्लर में काम आने वाला हेयर ड्रायर। पियानो, हारमोनियम व टाइपिंग मशीन पर ज्यादा समय बिताने वाले लोग भी रेनाड्स रोग से ग्रस्त हो सकते हैं। रेनाड्स सिंड्रोम से ग्रस्त 50 प्रतिशत मरीज आटोइम्यून रोग (शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमजोरी से होने वाले रोग) से पीड़ित होते हैं। इनमें स्क्लीरोडर्मा नामक आटोइम्यून रोग रेनाड्स सिंड्रोम का बहुत बड़ा कारण हैं। इसके अलावा गर्दन की मांसपेशियों पर अनावश्यक रूप से अत्यधिक दबाव पड़ने पर भी रेनाड्स हो सकता है।

रोग का स्वरूप

इस रोग में आमतौर पर हाथ और पैर की अंगुलियों की धमनियां (आर्टरीज) ही प्रभावित होती हैं। ये धमनियां हाथ और पैर को शुद्ध खून और ऑक्सीजन की सप्लाई करती हैं। अधिक ठंड होने या अत्यधिक मानसिक तनाव होने पर हाथ और पैर के निचले हिस्से की धमनियां अचानक थोड़ी देर के लिए सिकुड़ जाती हैं। इससे शुद्ध रक्त का बहाव और ऑक्सीजन की सप्लाई एकाएक रुक जाती है। इसके बाद अशुद्ध और ऑक्सीजन रहित खून के एकत्र हो जाने

की वजह से अंगुलियां धीरे-धीरे नीली पड़ जाती हैं। कुछ देर के बाद धमनियां पूर्वावस्था में लौट आती हैं। अंगुलियों का पीला, फिर नीला और उसके बाद लाल हो जाने की प्रक्रिया बार-बार होती रहती है।

क्या करें

रेनाड्स रोग से ग्रस्त व्यक्तियों को शीघ्र ही किसी वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श करना चाहिए। डॉक्टर की निगरानी में जरूरी जांचें करवाकर अपना इलाज शुरू कराना चाहिए।

जांचें

डॉप्लर स्टडी की विशेष तकनीक, डिजिटल फोटोप्लेथिस्मोग्राफी और ऑक्ल्यूसिव डिजिटल हाइपोथर्मिक चैलेंज टेस्ट आदि आधुनिक जांचों का भी सहारा लेना पड़ता है। कभी-कभी हाथ की एंजियोग्राफी करने की भी आवश्यकता पड़ती है। इसके अलावा एक्स रे और सीटी स्कैन से भी रेनाड्स के कारणों का

पता चलता है।

बचाव

रेनाड्स सिंड्रोम से बचने के लिए लोगों को धूम्रपान और तंबाकू उत्पादों के सेवन से परहेज करना चाहिए। इस रोग से ग्रस्त महिलाओं को गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन और ब्लडप्रेशर के इलाज के लिए प्रयुक्त होने वाली दवा बीटा ब्लाकर का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने के लिए बीटा ब्लाकर की बजाय अन्य दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिए।

हाथों को बार-बार डिटर्र्जेंट, साबुन से नहीं धोना चाहिए और त्वचा को मुलायम रखने के लिए तेल और क्रीम का प्रयोग करना चाहिए। अगर अंगुलियों में घाव हो, तो गुनगुने पानी में हाथ डुबोकर साफ

करें और डॉक्टर के परामर्श से मलहम का प्रयोग करें।

सावधानियां बरतें

1. हर हाल में ठंडे पानी के संपर्क में न आएं। सर्दी के मौसम में हाथों व पैरों में गर्म ऊनी दस्ताने व जुराब का इस्तेमाल करें।

2. रेफ्रिजरेटर में अपना हाथ न डालें। खुले फ्रिज के आगे न खड़े हों। डीप फ्रीजर(बर्फ जमाने वाला फ्रिज का ऊपरी हिस्सा में से अपना हाथ डालकर कोई सामान न निकालें।

3. घर में बर्तन व प्लेट धोने के वक्त या रसोईघर में सिंक में काम करते समय रबर के दस्ताने अवश्य पहनें।

4. घर में कभी नंगे पैर न चलें।

5. डिटर्र्जेंट पाउडर व कपड़े धोने वाले साबुन का हाथों से इस्तेमाल न करें।

इलाज

रेनाड्स सिंड्रोम का इलाज आमतौर पर दवाओं से किया जाता है। इसके अलावा हाथों का तापमान नियंत्रित करने के लिए ‘बॉयो फीडबैक’ की तकनीक का सहारा लिया जाता है। अगर दवाओं से इसके लक्षण निंयत्रित नहीं होते हैं, तो सरवाइकल सिम्पेथेक्टॅमी नामक ऑपरेशन करना पड़ता है। इस ऑपरेशन

से छोटी धमनियों के सिकुड़ने की प्रक्रिया ढीली पड़ जाती है।

लक्षण

-अगर सर्दियों के मौसम में आपके हाथों या पैरों की अंगुलियों की त्वचा का रंग बदलता हो। जैसे पहले पीला फिर हल्का नीला और उसके बाद लाल हो जाता हो।

- अंगुलियों में हल्की सूजन और झनझनाहट रहती हो।

- सुबह के वक्त हाथ या पैर की अंगुलियों में लाल रंग के गोल चकत्ते उभर आते हों।

-अंगुलियों में न भरने वाले घाव हों।

- अंगुलियों में सूजन रहती हो।

उपर्युक्त लक्षण रेनाड्स सिंड्रोम नामक रोग से संबंधित हैं। यह बीमारी आमतौर

पर 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों खासकर 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को

पुरुषों की तुलना में अधिक होती है।

डॉ. के. के. पांडेय

वैस्कुलर एन्ड कार्डियो-थोरेसिक सर्जन इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल, नई दिल्ली


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