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कैंसर से अब जीत जाएगी जिंदगी

मुंबई स्थित एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत 45 वर्षीय सुमित माने चिकनाईयुक्त लजीज भोजन और सिगरेट पीने के शौकीन थे। सिगरेट का उनका शौक लत में कब तब्दील हो गया, इसका पता उन्हें नहीं चला। पिछले कई सालों से वह सिगरेट पी रहे थे। पत्नी के समझाने के बावजूद वह यह लत छोड़ नह

By Edited By: Published: Tue, 22 Oct 2013 11:52 AM (IST)Updated: Tue, 22 Oct 2013 11:52 AM (IST)
कैंसर से अब जीत जाएगी जिंदगी

मुंबई स्थित एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत 45 वर्षीय सुमित माने चिकनाईयुक्त लजीज भोजन और सिगरेट पीने के शौकीन थे। सिगरेट का उनका शौक लत में कब तब्दील हो गया, इसका पता उन्हें नहीं चला। पिछले कई सालों से वह सिगरेट पी रहे थे। पत्नी के समझाने के बावजूद वह यह लत छोड़ नहीं पा रहे थे। कुछ महीने पहले उन्हें खांसी की शिकायत हुई, जो कई हफ्तों तक लगातार जारी रही और वह केमिस्ट से पूछकर खांसी की दवा लेते रहे। एक दिन उनके बलगम में रक्त के थक्के भी निकले और उन्हें सांस लेने में भी तकलीफ हुई। तब माने ने अपने रोग की गंभीरता समझी और डॉक्टर से संपर्क साधा। डॉक्टर द्वारा चेकअप करने और फेफड़ों से संबंधित जांचें करने के बाद पता चला कि वह फेफड़ों के कैंसर से ग्रस्त हैं। मेरी देखरेख में उनका कई महीनों तक इलाज हुआ। बहरहाल आज वह स्वस्थ हैं, लेकिन अब वह धूम्रपान की लत छोड़ चुके हैं।''

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यह कहना है नानावती हॉस्पिटल, मुंबई के ंसीनियर ऑनकोलाजिस्ट डॉ. कैलाश चंद्र मिश्रा का। उनके अनुसार कैंसर से अब डरने की नहीं बल्कि इस रोग के प्रति सजग व जागरूक होने की जरूरत है।

रोग का स्वरूप

मैक्स हॉस्पिटल, नई दिल्ली में कैंसर विभाग के चेयरमैन डॉ. हरित कुमार चतुर्वेदी के अनुसार शरीर में विकारग्रस्त कोशिकाओं (एब्नार्मल सेल्स) के अनियंत्रित रूप से विकसित होने की स्थिति को कैंसर कहा जाता है। ये विकारग्रस्त कोशिकाएं शरीर के किसी भी भाग में ट्यूमर का रूप अख्तियार कर सकती हैं। कैंसर शरीर के किसी भी भाग जैसे फेफड़ों, आंत, मुंह और लिवर यहां तक कि ब्लड में भी फैल सकता है। ब्लड कैंसर को ल्यूकीमिया कहते हैं। कुछ मायनों में कैंसरस टयूमर्स में समानता होती है, लेकिन प्रत्येक प्रकार के कैंसर का उत्पन्न होना और उसका फैलाव अलग-अलग तरह से होता है। कैंसर के विभिन्न प्रकारों के लक्षण अलग-अलग होते हैं। जो व्यक्ति फेफड़े के कैंसर से पीड़ित हैं, उनके लक्षण आंतों के कैंसर से अलग होते हैं।

ध्यान दें

-शरीर में बनने वाली हर गांठ कैंसरस नहींहोती।

-यह धारणा गलत हैं कि बॉयोप्सी से कैंसर फैलता है।

-कैंसर का कोई एक विशिष्ट लक्षण नहीं है। जैसे अगर किसी शख्स को फेफड़े का कैंसर है, तो उसे सांस लेने में तकलीफ होने के अलावा बलगम में खून आ सकता है। मुंह के कैंसर (ओरल कैंसर) में मुंह में घाव हो जाते हैं, जो भरते नहीं हैं। महिलाओं में होने वाले स्तन कैंसर व गर्भाशय मुख के कैंसर (सर्विक्स) आदि मंें अलग-अलग लक्षण सामने आते हैं।

जांचें

सीनियर कैंसर विशेषज्ञ डॉ. एन.के. पांडेय बताते हैं कि सबसे पहले रूटीन जाचें करायी जाती हैं। जैसे जिस व्यक्ति को जो लक्षण या शिकायत होती है,पहले उससे संबंधित जांचें करायी जाती हैं। इसके बाद जरूरत पड़ने पर रक्त परीक्षण, अल्ट्रासाउंड, एमआरआई, सी.टी. स्कैन और अंत में 'न्यूक्लियर स्कैनिंग' करायी जाती है।

तब हो जाएं सचेत

जे.के. कैंसर इंस्टीट्यूट, कानपुर के निदेशक डॉ. अवधेश दीक्षित के अनुसार अनुसार निम्न लक्षण कोई जरूरी नहीं है कि कैंसर की पुष्टि करते हों, फिर भी इनके प्रकट होने पर सचेत हो जाना चाहिए और कैंसर विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।

-जब किसी तरह की शारीरिक समस्या लगातार तीन हफ्तों से अधिक समय तक बनी रहे, तब डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।

-शरीर में किसी तिल या मस्से के आकार में परिवर्तन होना।

-शरीर के किसी भाग में गांठ का बनना।

-आवाज में भारीपन या बदलाव।

-पेशाब या शौच जाने की आदतों में बदलाव।

-खाना निगलने में परेशानी।

-शरीर के किसी भी भाग से रक्तस्राव (ब्लीडिंग)।

-वजन का गिरते जाना।

आधुनिक इलाज

डॉ. कैलाश मिश्रा का कहना है कैंसर के उपचार की पद्धतियों में चमत्कारिक प्रगति हो चुकी है। आधुनिक कीमोथेरेपी, पुरानी परंपरागत कीमोथेरेपी से काफी आगे निकल चुकी है। कीमोथेरेपी में नया मेडिकेशन 'मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज' हैं। अब इस नई थेरेपी से रोगी को कहीं ज्यादा राहत मिलती है, जिसे टार्गेटेड कीमोथेरेपी भी कहते हैं। इस थेरेपी का कैंसरग्रस्त भाग के अलावा शरीर के अन्य निकटवर्ती स्वस्थ भाग पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।

रेडियो थेरेपी में साइबर नाइफ

जिस स्थान पर कैंसरस ट्यूमर होता है, उसे 'साइबर नाइफ' से नष्ट कर देते हैं। साइबर नाइफ की खासियत यह है कि यह सर्जरी किए गए बगैर छोटे आकार के कैंसरस ट्यूमर को नष्ट कर देता है। साइबर नाइफ एक तरह की रेडियोथेरेपी है।

आधुनिक रेडियोथेरेपी के अंतर्गत लीनियर एक्सेलेरेटर मशीन के जरिये शरीर के किसी भी भाग में कैंसरस ट्यूमर को नष्ट किया जा सकता है। लीनियर एक्सेलेरेटर का जरूरत पड़ने पर सर्जरी के पहले और बाद भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

इसके अलावा कैंसर के इलाज में तीन प्रमुख थेरेपीज- 3 डी सी आर टी, आईएमआरटी और आईजीआरटी- से ट्यूमर का इलाज सर्जरी से पहले या बाद में किया जा सकता है। जरूरत पड़ने पर कैंसरग्रस्त भाग की सर्जरी की जाती है। वहीं अब कुछ कैसरों में सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती है और पीड़ित व्यक्ति के कुछ अंगों को बचाया जा सकता है। इस संदर्भ में रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी का महत्वपूर्ण योगदान है।

इलाज में नया आयाम

''कैंसर के ऐसे मामले जहां पर कीमोथेरेपी और रेडियो थेरेपी कारगर नहीं होती है या फिर रोगी की जान का खतरा बना रहता है, तब इस स्थिति में विशेषज्ञों ने टी-सेल इम्यूनोथेरेपी को लाभप्रद माना है।'' यह कहना है क्रिटीकेयर हॉस्पिटल, मुंबई से सम्बद्ध सीनियर स्टेम सेल ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. बी.एस. राजपूत का। उनके अनुसार अमेरिका में टी सेल इम्यूनोथेरेपी का इस्तेमाल खासकर प्रोस्टेट कैंसर और ब्रेन कैंसर के इलाज में किया जा रहा है। जबकि इसका प्रयोग किसी भी प्रकार के ठोस कैंसर (जैसे लंग कैंसर आदि) में संभव है।

(प्रस्तुति: विवेक शुक्ला)

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