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खैर तस्करी का कई राज्यों से जुड़े हैं तार

अमरदीप गुप्ता, यमुनानगर खैर तस्करी के काले कारोबार को रोक पाना वन विभाग के लिए चुनौती से

By Edited By: Published: Sun, 21 Aug 2016 03:04 AM (IST)Updated: Sun, 21 Aug 2016 03:04 AM (IST)
खैर तस्करी का कई राज्यों से जुड़े हैं तार

अमरदीप गुप्ता, यमुनानगर

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खैर तस्करी के काले कारोबार को रोक पाना वन विभाग के लिए चुनौती से कम नहीं। तीन राज्यों से लगती सीमा के कारण यमुनानगर खैर तस्करों के लिए सबसे बड़ा अड्डा बन गया है। यहां बड़े-बड़े माफिया सक्रीय हैं, जिनके तार साथ लगते दूसरे राज्यों के तस्करों से जुड़े हैं। जो इनके इशारों पर ही खैर भेजने का काम करते हैं। सबसे ज्यादा पकड़ी जाने वाली खैर की लकड़ी उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के जंगलों की होती है। तस्करी के इस कारोबार में 90 प्रतिशत लोग एक विशेष समुदाय से ही जुड़े हैं।

कई वर्षो के दौरान यमुनानगर के वन्य क्षेत्र में लगे खैर के पेड़ों को तस्करों ने अफसरों की मिलीभगत से बेच डाले। यमुनानगर में ही एक विशेष समुदाय के लोग पिछले कई दशकों से खैर की तस्करी में जुटे हैं, जो आज एक बड़े नेटवर्क के जरिये लोगों को अपने नीचे जोड़ रहे हैं। जब भी जिले की सीमा में गाड़ी पकड़ी जाती है तो उसमें कोई बाहरी तस्कर नहीं, बल्कि यमुनानगर के ही तस्कर का हाथ सामने आता है। साथ ही पकड़ी जाने वाली गाड़ियों का फर्जी नंबर होता है। जिनका आरटीए मिलान नहीं कर पाते और इन पर कार्रवाई नहीं हो पाती।

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ये हैं तस्करी के रास्ते

मुख्य रूप से सबसे ज्यादा तस्करी हथिनीकुड बैराज के रास्ते या फिर यमुना नदी के कच्चे घाटों के रास्तों हो रही है। एक बार हथिनीकुड बैराज का नाका यदि पार हो जाए तो गांव के कच्चे रास्तों से जगाधरी तक आसानी से पहुंच जाता है। इस बीच पड़ने वाले नाकों का इन्हें सामना नहीं करना पड़ता है। मुख्य रूप से खिजराबाद, छछरौली, बूड़िया, बिलासपुर क्षेत्र ही खैर तस्करी के रास्ते हैं। उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से आने वाली खैर कारों के जरिए यहां तक पहुंचता है। पर्याप्त स्टॉक हो जाने पर इसे ट्रक पर लोड कर आगे बेच दिया जाता है।

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दो हजार का माल 10 हजार बिकता

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ों के अलावा राजाजी नेशनल पार्क, कलेसर नेशनल पार्क के जंगलों से अवैध रूप से काटकर लाई जा रही खैर की लकड़ी से तस्कर खूब मुनाफा बटोर रहे हैं। तस्कर इस लकड़ी को दो से तीन हजार रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से खरीदते हैं और फिर आगे सोनीपत, कैथल व अन्य जिलों में फैक्टरियों में 10 हजार रुपये प्रति क्वींटल के भाव बेच देते हैं।

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एचएसआइआइडीसी के पास नहीं थी सूचना

बुधवार को मैटल फैक्टरी से पकड़ी गई खैर के मामले में एचएसएसआइडीसी ने जो रिपोर्ट वन्य विभाग को दी है, उसमें साफ लिखा हुआ है कि उनके पास इस बात की सूचना नहीं थी कि यह फैक्टरी किराए पर दे दी गई है। इस मामले में एचएसआइआइडीसी भी कार्रवाई कर सकता है।

वर्जन

डीएफओ निवेदिता बी का कहना है कि कई राज्यों की सीमा यमुनानगर से लगने के कारण इस रास्ते से तस्करी की जा रही है। इससे निपटने के लिए वन्य महकमे से जुड़े अधिकारियों को सख्त आदेश दिए गए हैं।


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