सप्ताह का साक्षात्कार ..
पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज केसों में परिवार पर दबाव बनाकर बयान बदलवाए जा रहे हैं।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज केसों में परिवार पर दबाव बनाकर बयान बदलवाए जा रहे हैं। ऐसे गंभीर मामलों में यदि आरोपित बरी हो जाता है, तो भी ऐसे केस में डीए के कमेंट पर हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है। फिलहाल पांच ऐसे मामलों में अपील की गई है। पोक्सो एक्ट और किशोर न्याय अधिनियम के बारे में जिला बाल संरक्षण इकाई के लीगल अधिकारी रंजन शर्मा से दैनिक जागरण संवाददाता अवनीश कुमार ने विशेष बातचीत की। सवाल : किशोर न्याय (देखभाल और सुरक्षा )अधिनियम क्या है।
जवाब : यह अधिनियम बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के मद्देनजर बनाया गया है। इसमें 18 साल से कम बच्चों के केसों को देखा जाता है। इसके तहत किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समिति की कार्यप्रणाली के बारे में बताया गया है। इस कानून में बाल भिक्षावृत्ति, बाल शोषण, बाल श्रम के लिए कानूनी कार्रवाई आती है। इसके साथ ही बाल गृह में बच्चों को दी जाने वाले सुविधा, गोद देने या लेने की प्रक्रिया, स्पॉन्सरशिप, फोस्टर केयर आते हैं। इस कानून की जानकारी के लिए समय-समय पर शिविर लगाए जाते हैं।
सवाल : बाल श्रम कराने वालों पर अकसर कोई कार्रवाई नहीं होती।
जवाब : ऐसा नहीं है। हाल ही में विभिन्न जगहों पर अभियान चलाया गया। तीन बच्चों को मुक्त कराया और बाल श्रम कराने वाले दुकानदार के खिलाफ केस दर्ज हुआ। इस केस में तीन से पांच साल की सजा का प्रावधान है। सवाल : पोक्सो एक्ट के बावजूद कुछ आरोपित बरी हो जाते हैं।
जवाब : हर पोक्सो केस को काफी बारीकी से देखा जाता है। जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला और बाल विकास की ओर से समय-समय पर बैठकों के माध्यम से हर केस का फॉलोअप किया जाता है। हर माह औसतन 10 केस पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज हो रहे हैं। 102 केस कोर्ट में चल रहे हैं। अब यदि किसी केस में आरोपित बरी हो जाता है, तो उस पर भी डीए से कमेंट लेकर डीसी के माध्यम से हाईकोर्ट में अपील की जाती है। इस तरह के पांच केसों में अपील की गई है। सवाल: बाल श्रम की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाए जा रहे है ?
जवाब: जिला बाल संरक्षण इकाई यमुनानगर की ओर समय-समय पर शहर के विभिन इलाकों में रेकी करवाई जाती और डेटाबेस तैयार किया जाता है। इन जगहों पर यदि माता पिता भी बच्चों से जबरन कार्य करा रहे हैं, तो उन्हें रेस्क्यू किया जाता है और फिर बालकुंज छुड़ाया जाता है। अभी तीन बच्चों को रेस्क्यू किया। उनका पिता शराब के नशे में मारपीट करता और बच्चों से चाट की रेहड़ी लगाता था। सवाल: रेस्क्यू ऑपरेशन्स में किन-किन विभागों की सहभागिता रहती है
जवाब: विभिन प्रकार के रेस्क्यू ऑपरेशन्स में जिला बाल कल्याण समिति, पुलिस विभाग, विभाग, लेबर विभाग, चाइल्ड हेल्पलाइन और विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं का सहयोग होता है। इनकी मदद से ही पूरा ऑपरेशन चलता है। केस रिपोर्ट होते ही सबसे पहले एक टीम गठित की जाती, जिसके बाद टीम विभिन्न विभागों के साथ मिलकर मौके पर जाती है। वहां पहले रेकी की जाती है और फिर रेड की जाती है। बच्चे को रेस्क्यू कर बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया जाता है जो बच्चे के हित को ध्यान में रखते हुए फैसला करते है, जिसके बाद बच्चे की मेडिकल जांच कराया जाता है। फिर केस में आगे कानूनी कार्रवाई होती है। सवाल: बतौर लीगल अधिकारी आपकी इस विभाग में क्या भूमिका रहती है।
जवाब: मेरी भूमिका किशोर न्याय बोर्ड के तहत चल रहे केसों में बच्चों की सामाजिक जांच करना, इंडिविजुअल केयर प्लान बनाना, फॉलोअप करना, जागरूकता शिविर लगाना, पोक्सो एक्ट 2012 और किशोर न्याय अधिनियम 2015 को पूरी तरह से लागू करने के लिए प्रयास करना है। सवाल: बच्चों के साथ हो रहे अपराधों की आपको कैसे जानकारी दे सकते हैं।
जवाब: देखिये, बच्चों के साथ हो रहे अपराधों को रोकने के लिए सभी का सहयोग जरूरी है। कहीं पर बच्चे के साथ किसी प्रकार का शोषण हो रहा है तो उसकी सूचना चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर 1098 और जिला बाल सरंक्षण इकाई के कार्यालय में दी जा सकती है। सूचना देने वाले का नाम पूरी तरह से गुप्त रखा जाता है।