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जहां दिया जा रहा आश्रय, वहीं दम तोड़ रही गोमाता

गोसेवा आयोग का गठन होने के बाद भी गोमाता की हालत नहीं सुधर रही। न तो गोरक्षकों की टीम काम आ रही और न ही पुलिस महकमे का काउ स्टाफ। शहजादवाला गांव में भूख से गोवंशों की मौत के बाद एक बार फिर से व्यवस्था सवालों के घेरे में है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Apr 2019 02:01 AM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2019 02:01 AM (IST)
जहां दिया जा रहा आश्रय, वहीं दम तोड़ रही गोमाता
जहां दिया जा रहा आश्रय, वहीं दम तोड़ रही गोमाता

जागरण संवाददाता, यमुनानगर :

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गोसेवा आयोग का गठन होने के बाद भी गोमाता की हालत नहीं सुधर रही। न तो गोरक्षकों की टीम काम आ रही और न ही पुलिस महकमे का काउ स्टाफ। शहजादवाला गांव में भूख से गोवंशों की मौत के बाद एक बार फिर से व्यवस्था सवालों के घेरे में है। यहां कई दिनों से गोवंशों के मरने का सिलसिला है। लोग पूजा के लिए पहुंचे तो यह राज खुल गया। छह जगह चल रही गोशाला

जिले में गोवंशों को आश्रय देने के लिए छह जगहों पर गोशालाएं चल रही है। इनमें दामला, शहजादवाला, छछरौली, साढौरा, आदिबद्री और मटका चौक पर गोशालाएं संचालित हैं। इन गोशालाओं में करीब तीन हजार गोवंश हैं, लेकिन सभी जगह पर हालात शहजादवाला की गोशाला की तरह ही हैं। न तो गोवंशों के लिए उचित चारे का प्रबंध है और न ही साफ सफाई का। मटका चौक और आदिबद्री में जरूर हालात ठीक कहे जा सकते हैं। यह इसलिए कि मटका चौक पर बनी गोशाला में दुधारू गाय रखी हैं। उनका दूध बेचा जाता है। जो गाय दूध नहीं देती। उन्हें अलग दूसरी गोशाला में रखा गया है। इसी तरह से आदिबद्री में खूब जंगल हैं। जहां पर गोवंश चर लेते हैं। हालांकि आदिबद्री में आश्रम के संचालक विनय स्वरूप कई बार गोमाताओं के चारे के लिए लोगों से सहयोग मांग चुके हैं। कई गोवंश चारे की तलाश में पहाड़ों पर चले जाते हैं। वहां से गिरकर उनकी मौत हो जाती है। संचालक का कहना है कि सभी के सहयोग से ही गोवंश बचेगा, लेकिन उम्मीद के मुताबिक सहयोग नहीं मिल रहा है। गोचरान भूमि पर है कब्जा

गोचरान की भूमि पर लोगों ने कब्जे कर रखे हैं। ऐसे में गोमाताओं के लिए चारे का प्रबंध नहीं हो पाता। जिले में करीब चार हजार एकड़ गोचरान भूमि है। जिस पर पंचायतों का कब्जा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी गोचरान की भूमि को कब्जा मुक्त कराने के आदेश दिए, लेकिन प्रशासन सभी जमीनों को मुक्त नहीं करवा सका। इस वजह से ही गोशालाओं में चारे की कमी है। जो बजट मिलता है, वह भी दूसरे कामों के लिए खर्च कर दिया जाता है। कुछ लोग गोवंशों को गोशाला में छोड़ते हैं, तो उनकी चारे के नाम पर पर्चियां काटी जाती हैं।


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