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हथियारों के बिना लड़े जाने वाला युद्ध है सत्याग्रह : प्रोफेसर शर्मा

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : डीएवी ग‌र्ल्स कालेज में गांधी स्टडी सेंटर द्वारा कॉलेज में विश्व श

By JagranEdited By: Published: Sat, 07 Oct 2017 01:14 AM (IST)Updated: Sat, 07 Oct 2017 01:14 AM (IST)
हथियारों के बिना लड़े जाने वाला युद्ध है सत्याग्रह : प्रोफेसर शर्मा
हथियारों के बिना लड़े जाने वाला युद्ध है सत्याग्रह : प्रोफेसर शर्मा

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : डीएवी ग‌र्ल्स कालेज में गांधी स्टडी सेंटर द्वारा कॉलेज में विश्व शांति और अ¨हसा सप्ताह के अंतिम दिन सत्याग्रह: ए साइंस इन मे¨कग विषय पर एक्सटेंशन लेक्चर का आयोजन किया गया। जिसमें पंजाब यूनिवर्सिटी के गांधी एवं पीस स्टडीज विभाग से सेवानिवृत प्रोफेसर एमएल शर्मा मुख्य वक्ता रहे। कॉलेज की कार्यवाहक ¨प्रसिपल डा. विभा गुप्ता तथा मानवाधिकार विभागाध्यक्ष डॉ. मलकीत ¨सह ने संयुक्त रूप से कार्यक्रम की अध्यक्षता की।

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एमएल शर्मा ने सबसे पहले छात्राओं को सत्याग्रह की परिभाषा के बारे में विस्तार से जानकारी दी। लोग सत्याग्रह का मतलब सही अर्थों में नहीं लेते। गांधी जी ने कहा था कि सत्य और अ¨हसा सत्याग्रह के दो आवश्यक तत्व है। यदि इन दोनों को सत्याग्रह में अनुशरण नहीं किया जाता है, तो वह सत्याग्रह नहीं है। गांधी जी के मुताबिक सत्याग्रह एक युद्ध है, जो बिना हथियारों के लड़ा जाता है। यदि कोई व्यक्ति ¨हसा का प्रयोग करता है, वह सत्याग्रह नहीं है। गांधी जी ने सत्याग्रह शोषण, अन्याय और भेदभाव के विरुद्ध लडऩे के लिए शुरू किया था। 1920 में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया था। लेकिन उन्होंने चोरी-चौरा पुलिस स्टेशन में हुई ¨हसा के कारण वापिस ले लिया था। गांधी जी का मानना था कि जहां ¨हसा है, वहां सत्याग्रह हो ही नहीं सकता। सत्याग्रह को हम विज्ञान के निर्माण के रूप में प्रयोग कर सकते हैं और आज इसको योजना के रूप में भी प्रयोग किया जा रहा है। गांधी जी ने 1930 में डांडी मार्च शुरू की थी, जो ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध थी, जिसमें नमक पर भारी कर लगाया गया था। गांधी जी ने इस कानून को मानने से इंकार कर दिया था। क्योंकि यह जनता के हित में नहंी था। यह लोगों से उनका नमक छीन रहा था।

शर्मा ने गांधी जी के सत्याग्रह के प्रयोगों के बारे में बताया। साथ ही आज के समय में सत्याग्रह की प्रासंगिकता के बारे में समझाया। सत्याग्रह करने से पूर्व स्वयं को परिवर्तित करना पड़ेगा। तभी हम समाज को परिवर्तित कर सकते हैं। डॉ. मलकीत ने प्रोफेसर एमएल शर्मा का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में डा. आशा बजाज, डॉ. शिखा सैनी, साक्षी, नेहा ने सहयोग दिया।


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