भाईचारा कायम रखना व दीन दुखियों की सेवा करना ही सच्ची इबादत : नुरुदीन
रोजापीर दरगाह के 448वें उर्स के दौरान मंगलवार को घड़ियों की रस्म अदा की गई। घड़ियों की रस्म में दरगाह के गद्दीनशीन पीरजादा सैय्यद अब्दुल कय्यूम के दोनों बेटों सैय्यद शाह नुरुदीन व सैय्यद शाह अब्दुल कदीर की अगुवाई में विख्यात संत फकीरों ने आवाम की भलाई के लिए दुआ करने की रस्म अदा की गई।
संवाद सहयोगी, साढौरा : रोजापीर दरगाह के 448वें उर्स के दौरान मंगलवार को घड़ियों की रस्म अदा की गई। घड़ियों की रस्म में दरगाह के गद्दीनशीन पीरजादा सैय्यद अब्दुल कय्यूम के दोनों बेटों सैय्यद शाह नुरुदीन व सैय्यद शाह अब्दुल कदीर की अगुवाई में विख्यात संत फकीरों ने आवाम की भलाई के लिए दुआ करने की रस्म अदा की गई। सैय्यद शाह नुरुदीन ने कहा कि आपसी भाईचारा बनाए रखते हुए दीन दुखियों की सेवा करना ही सच्ची इबादत है। अगर हम अल्लाह की कही हुई बातों को मानने लगेंगे तो हमारा जीवन सफल हो सकता है। उन्होंने कहा कि सभी सूफी संतों ने सांप्रदायिकता सदभाव बनाए रखने के लिए अथक प्रयास किए थे। सुफी संत फकीर केवल मुस्लिम समाज की ही नहीं बल्कि संपूर्ण समाज की धरोहर हैं।
किन्नर समाज सैय्यद कादर शाह कुमैशुल आजम को गुरु मान इबादत करता है
किन्नरों की 400 साल पुरानी साढौरा गद्दी के गुरु मीना वालिया ने बताया कि वैसे तो किन्नर समाज की हर धर्म में आस्था है। लेकिन रोजा पीर के नाम से विख्यात ग्याहरवीं के पीर व सूफी संत सैय्यद कादर शाह कुमैशुल आजम की शिक्षाओं से प्रभावित होकर किन्नरों की गद्दी के तत्कालीन गुरू ने इनको अपना गुरू मान लिया था। तब से लेकर आज तक उनके प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले उर्स के मौके पर हरियाणा, पंजाब व हिमाचल के शहरों में बसे इस गद्दी के अनुयायी किन्नर यहां पहुंचते हैं। उर्स के दौरान ग्याहरवीं के दिन सभी किन्नर कस्बे के बाजार से शोभायात्रा निकालकर रोजा पीर दरगाह पहुंचते हैं और वहां चादर चढ़ाकर शहर व वतन के आवाम के अमन चैन, रोजगार व परिवार की सलामती की दुआ मांगते हैं।