पर्यावरण के प्रहरी बने ये किसान, फसल अवशेषों का करते प्रबंधन
फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर जिले के किसान आगे आ रहे हैं। किसान फसल अवशेषों को जलाते नहीं बल्कि जैविक खाद के तौर पर प्रयोग कर रहे हैं। पर्यावरण बचाने का भी संदेश दे रहे हैं और भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ा रहे हैं।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर जिले के किसान आगे आ रहे हैं। किसान फसल अवशेषों को जलाते नहीं बल्कि जैविक खाद के तौर पर प्रयोग कर रहे हैं। पर्यावरण बचाने का भी संदेश दे रहे हैं और भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ा रहे हैं। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग व कृषि विज्ञान केंद्र दामला के विशेषज्ञों ने इन किसानों को प्रेरित किया। इन किसानों ने दैनिक जागरण के साथ अपने अनुभवों को सांझा किया।
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नगला जागीर के किसान जसबीर सिंह बताते हैं कि वे गेहूं व धान की फसल के अवशेषों को जलाते नहीं बल्कि उनको खेत में ही बिछा दिया जाता है। उसमें ही हैप्पी सीडर से गेहूं की बिजाई की जाती है। इसके एक नहीं बल्कि कई फायदे हैं। समय के साथ ही खेत तैयार करने पर आने वाला खर्च बच जाता है। जमीन की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है। मैं तो कहूंगा कि कोई भी किसान खेत में अवशेष न जलाएं और पर्यावरण संरक्षण में सहयोग करें। इनसेट
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रादौरी के किसान सुभाष चंद का कहना है कि वे हर वर्ष धान की रोपाई करते हैं। कंबाइन से ही फसल की कटाई करवाते हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने जब से गांव में किसानों को जागरूक करना शुरू किया और उनको फसल अवशेष प्रबंधन के लिए साधन दिए, तब से हमने अवशेषों को जलाना छोड़ दिया। अवशेषों के बीच में ही गेहूं की बिजाई कर देते हैं। इस विधि से बिजाई गेहूं की पैदावार स्वस्थ रहती है। गिरने की संभावना भी कम होती है। सभी किसान इसी तकनीक को अपनाएं। इनसेट
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रादौरी गांव के किसान रोशन लाल का कहना है कि पांच वर्ष से उन्होंने खेत में अवशेष नहीं जलाए। सरकार फसल अवशेष प्रबंधन पर जोर दे रही है। हमें भी सहयोग करना चाहिए। यह किसान हित में है। क्योंकि आगामी फसल की बिजाई पर होने वाला खर्च भी कम होता है और पर्यावरण में जहरीली गैसें नहीं घुलती। फसल अवशेषों को खेत में दबा दें। इससे फसल को अच्छी खाद मिलेगी और भरपूर पैदावार होगी। फोटो : 9
किसान छवि पंडित का कहना है कि आज के दौर में फसल अवशेष प्रबंधन जरूरी है। ऐसा करने से फसल पर आने वाला खर्च कम होगा। इस दिशा में जब सरकार हमारा सहयोग कर रही है तो हम किसान भाई क्यों पीछे रहें। फसल प्रबंधन बहुत जरूरी है। भूमि के अंदर पोषक तत्वों की कमी नहीं आती। हैप्पी सीडर के माध्यम से फसल अवशेषों के बीच में ही गेहूं की बिजाई की जा सकती है। अब गन्ने की पत्ती में भी गेहूं की बिजाई कर सकते हैं। किसान को अच्छी पैदावार मिलती है और पर्यावरण में जहर नहीं घुलता। किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन पर जरूर ध्यान देना चाहिए।