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Road Safety: हाईवे पर इमरजेंसी सेवा के दावों की हकीकत, स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के अभाव में बढ़ रहे मौत के आंकड़ें

Road Safety दुर्घटना में हुई हेड इंजरी का ट्रामा सेंटर में उपचार नहीं होता। रेफर के चक्कर में लोगों की जान जा रहीं। यमुनानगर में 90 दिन में 48 मौत हो चुकी। अधिकारियों का दावा है कि 23 एंबुलेंस में से सात नेशनल व स्टेट हाईवे पर हैं।

By Jagran NewsEdited By: Anurag ShuklaPublished: Fri, 18 Nov 2022 05:55 PM (IST)Updated: Fri, 18 Nov 2022 05:55 PM (IST)
Road Safety: हाईवे पर इमरजेंसी सेवा के दावों की हकीकत, स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के अभाव में बढ़ रहे मौत के आंकड़ें
ट्रामा सेंटर से रेफर के केस से बढ़ रहे मौत के आंकड़ें। जागरण

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। सड़क हादसे में घायल को समय रहते मदद मिल जाए तो उसकी जान बच सकती है। इसमें सबसे अधिक जिम्मेदारी एंबुलेंस की है। नेशनल हाईवे की एक एंबुलेंस कभी- कभी हाईवे पर नजर आती है। जिले की बात करें तो यहां पर 23 एंबुलेंस हैं। इनमें से सात एंबुलेंस नेशनल हाईवे व स्टेट हाईवे पर रहती है। जिससे वह तुरंत घटनास्थल पर पहुंच सके। इसके बावजूद सड़क दुर्घटना में मौतों का ग्राफ कम नहीं हो रहा है।

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ये है वजह

वजह यह है कि दुर्घटना में अधिकतर लोगों को सिर में चोट लगती है। जिले के सरकारी अस्पताल में न्यूरो सर्जन नहीं है। जिसके चलते घायलों को रेफर करना पड़ता है। इसी समय में इलाज मिलने में देरी हो जाती है। जिससे घायल की जान चली जाती है। तीन माह में ट्रामा सेंटर में 77 मरीज सिर में चोट के आए हैं। इन्हें यहां से रेफर किया गया। तीन वर्ष में जिले में 593 लोगों की जान सड़क हादसों में जा चुकी है। जिनका परिवार अभी भी गमजदा है।

यहां सबसे अधिक हादसे

सबसे अधिक दुर्घटनाएं जिले में नेशनल हाईवे 344, पांवटा साहिब हाईवे व स्टेट हाईवे पर होती है। यहां पर वाहनों की स्पीड काफी अधिक होती है। सड़क सुरक्षा के इंतजाम हाईवे पर नहीं है। सबसे अधिक दुर्घटनाएं भी रात के समय होती हैं। इस गोल्डन आवर में ही एंबुलेंस की जरूरत सबसे अधिक पड़ती है, क्योंकि दिन के समय में राहगीर भी घायलों की मदद के लिए आगे आ जाते हैं।

नेशनल हाईवे पर केवल ही एक ही एंबुलेंस

जिले से निकल रहे 32 किलोमीटर लंबे पंचकूला चंडीगढ़ नेशनल हाईवे पर मिल्क माजरा टोल के पास एक एंबुलेंस रहती है। इस दौरान यदि कही पर दो दुर्घटनाएं हो जाए तो एंबुलेंस को पहुंचने में समय लग जाता है। किसी अन्य जगह से एंबुलेंस को भेजा जाता है। जिसमें समय लग जाता है। सहारनपुर कुरुक्षेत्र रोड पर एक भी एंबुलेंस नहीं है। यह हाईवे भी काफी व्यस्त है। इस पर भी दुर्घटनाएं अधिक होती है। दुर्घटना होने पर रादौर या मुख्यालय से ही एंबुलेंस भेजी जाती है। नेशनल हाईवे पर ओवर ब्रिज व अंडरब्रिज न होने से अभी तक बस स्टैंड छप्पर पर 28 दुर्घटनाओं में 15 मौत व 22 घायल हुए। हाईवे पर करेहड़ा खुर्द में 25 दुर्घटनाओं में 18 मौत व 29 घायल हुए, जबकि बाइपास पर ही नौ अन्य जगहों पर हुए 72 हादसों में 44 मौत व 67 घायल हो चुके हैं। यहां पर नौ प्वाइंटों पर ट्रैफिक कंट्रोल डिवाइस की खामी है।

हेड इंजरी के मरीज किए जाते हैं रेफर

जिले में एक मुकंद लाल सिविल अस्पताल में ट्रामा सेंटर है। यहां पर रात के समय एक मेडिकल आफिसर व तीन स्टाफ नर्स सहित सात कर्मचारी तैनात रहते हैं। यदि रात के समय दुर्घटना में घायल आ जाए तो उसका इलाज किया जाता है। समस्या हेड इंजरी में आती है, क्योंकि ट्रामा सेंटर में न्यूरो सर्जन नहीं है। ऐसे में मरीज को रेफर ही किया जाता है। इसके अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर रात के समय एक चिकित्सक व स्टाफ की ड्यूटी रहती है। बिलासपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, छछरौली रादौर, साढौरा व सरस्वतीनगर में ही घायल के इलाज की सुविधा है। नाहरपुर, अकबरपुर में स्टाफ की पहले से ही कमी है। नाहरपुर व अकबरपुर में पर्याप्त उपकरण भी नहीं है। एेसे में यहां से भी मरीजों को रेफर ही किया जाता है। अकबरपुर नई सीएचसी बनी है। यहां पर अभी एक ही चिकित्सक की तैनाती है।

निजी में इलाज काफी महंगा

यमुनानगर में हेड इंजरी के लिए तीन अस्पतालों में डाक्टर हैं। वहां पर इलाज काफी महंगा पड़ता है। ऐसे में आर्थिक तंगी के चलते स्वजन घायल को पीजीआइ रेफर कराते हैं। वहीं कुछ मामलों में स्वजन समय तक नहीं पहुंच पाते, क्योंकि घायल के बारे में पूरी जानकारी भी नहीं मिल पाती। ऐसे में सरकारी अस्पताल से उसे पीजीआइ के लिए रेफर कर दिया जाता है। इस रेफर करने की अवधि में भी घायल की सांसें टूटने का खतरा अधिक रहता है।

यह है ट्रामा सेंटर में तीन माह का दुर्घटनाओं का आंकड़ा

माह - दुर्घटना - रेफर - मौत

अगस्त - 226 - 29 - 12

सितंबर - 192 - 21 - 17

अक्टूबर - 224 - 27 - 19

70 से 80 काल आती हैं एंबुलेंस कंट्रोल रूम में

एंबुलेंस के लिए कंट्रोल रूम में हर रोज 70 से 75 काल आती है। इसमें से आठ से 10 काल सड़क दुर्घटनाओं की आती है। एंबुलेंस के समय की बात करें तो आठ से दस मिनट का समय घटनास्थल पर पहुंचने का रहता है। यदि किसी मरीज को रेफर किया जाता है तो उसमें 30 से 35 मिनट का समय आता है, क्योंकि यहां से मरीज को पीजीआइ रेफर किया जाता है। वहां पहुंचने में एक घंटे से ज्यादा का समय लगता है। इसके अलावा यदि सड़क दुर्घटना में घायल के स्वजन आ जाए तो वह अपनी मर्जी से मरीज को निजी अस्पताल में भी दाखिल करा लेते हैं। एंबुलेंस चालक उसे मना नहीं कर सकता।

ईएमटी रहता है साथ में

एंबुलेंस में प्राथमिक चिकित्सा के लिए पट्टी व दवाई, इंजेक्शन सहित आक्सीजन की सुविधा होना अनिवार्य है। इसके साथ ही एंबुलेंस में चालक के साथ ईएमटी (इमरजेंसी मेडिकल ट्रीटमेंट) रहता है। वह फार्मासिस्ट होता है। जो घायल को अस्पताल पहुंचने तक प्राथमिक इलाज देता है।

सात एंबुलेंस हाईवे पर

फ्लीट मैनेजर सचिन कुमार का कहना है कि सात एंबुलेंस नेशनल हाईवे व स्टेट हाईवे पर लगाई गई है। एंबुलेंस के लिए चौक चिहिंत किए गए हैं। इसमें रक्षक विहार नाका, महाराणा प्रताप चौक, अग्रसेन चौक, औरंगाबाद पुल के नीचे, मिल्क माजरा टोल के पास, शिव चौक बिलासपुर व तिकोनी चौक छछरौली पर एंबुलेंस खड़ी रहती है। जिससे किसी भी आपातस्थिति में घटनास्थल तक समय से एंबुलेंस पहुंच सके। हमारा लक्ष्य चंद मिनटों में घायल तक पहुंचना है।

सड़क पर सफेद व पीली पट्टी के भी हैं नियम

हर साल लाखों लोगों की सड़क हादसे में मौत हो जाती है। सरकार की ओर से भी कई नियम बनाए जाते हैं जिससे ऐसी घटनाओं पर रोक लगाई जा सके। इन्हीं में से एक नियम के मुताबिक सड़कों पर सफेद और पीले रंग की लाइन बनाई जाती हैं। ड्राइविंग के दौरान इनसे मदद भी मिलती है, लेकिन ज्यादातर लोगों को इनका मतलब नहीं पता होता।

टूटी हुई सफेद लाइन

सिविल इंजीनियर एसपी चोपड़ा के अनुसार कई बार सड़क पर टूटी हुई सफेद लाइन होती है। इसका मतलब है कि यहां पर आप अगर लेन बदलना चाहते हैं तो आप ऐसा कर सकते हैं। लेन बदलने से पहले आपको पीछे से आ रही कार या अन्य वाहन को देखना होगा और उनके जाने के बाद ही आप इंडीकेटर देकर लेन बदल सकते हैं।

लंबी सफेद लाइन

सड़क पर जिस जगह लंबी एक सफेद लाइन बनाई जाती हैं, वहां पर आपको सिर्फ अपनी ही लेन में चलना होता है। ऐसी जगह पर आप लेन बदल नहीं सकते और सुरक्षा के कारण से आपको ऐसी जगह पर अपनी लेन छोड़कर दूसरी तरफ नहीं जाना चाहिए।

डबल सफेद लाइन

आमतौर पर इस लाइन को वहां बनाया जाता है जहां पर एक ही सड़क पर दोनों ओर से वाहन आते-जाते हैं। ऐसी डबल सफेद लाइन का मतलब होता है कि यहां पर दोनों ओर से वाहन आ सकते हैं इसलिए आपको अपनी ही साइड पर चलना होता है।

लंबी पीली लाइन

जिस सड़क पर लंबी पीली लाइन होती है वहां पर किसी और वाहन को ओवरटेक किया जा सकता है, लेकिन पीली लाइन को पार करने की मनाही होती है। कई राज्यों में इसका अलग मतलब भी हो सकता है। जैसे तेलंगाना में इस लाइन का मतलब है कि राज्य में वाहन को ओवरटेक नहीं किया जा सकता।

डबल लंबी पीली लाइन

डबल लंबी पीली लाइन भी सड़क को दो हिस्सों में बांटती है। इसका मतलब होता है कि एक ही लेन में चलते हुए वाहन इन लाइनों को पार नहीं कर सकता। इस लाइन के ऊपर से या फिर इन्हें क्रास करना गलत होता है।


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