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नाटकों से समाज को संजीवनी देने वाले प्रो. संजीव नहीं रहे

अपने नाटकों से समाज को दिशा देने वाले ¨हदी के प्रोफेसर डॉ. संजीव चौधरी हमारे बीच नहीं रहे। सोमवार को घर पर उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई। उन्हें शहर के गाबा अस्पताल ले जाया गया, जहां पर डाक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 10:29 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 10:29 PM (IST)
नाटकों से समाज को संजीवनी देने वाले प्रो. संजीव नहीं रहे
नाटकों से समाज को संजीवनी देने वाले प्रो. संजीव नहीं रहे

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : अपने नाटकों से समाज को दिशा देने वाले ¨हदी के प्रोफेसर डॉ. संजीव चौधरी हमारे बीच नहीं रहे। सोमवार को घर पर उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई। उन्हें शहर के गाबा अस्पताल ले जाया गया, जहां पर डाक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। डाक्टरों ने निधन की वजह हार्ट अटैक बताई। उनके अचानक निधन से न केवल मित्रों व रिश्तेदारों बल्कि साहित्य जगत से जुड़े लोगों को भी गहरा अघात पहुंचा है। उनका अंतिम संस्कार आज सुबह साढ़े 10 बजे हुडा सेक्टर-17 स्थित शमशान घाट में होगा। 20 वर्ष पहले किया था प्रोफेसर का सफर शुरू :

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हुडा सेक्टर-17 निवासी 51 वर्षीय डॉ. संजीव चौधरी ने बतौर ¨हदी प्रोफेसर अपना सफर वर्ष 1998 में शहर के मुकंद लाल नेशनल कॉलेज से शुरू किया था। इन दिनों वे कॉलेज में ¨हदी विभागाध्यक्ष थे। छह से 13 नवंबर तक कॉलेज में छुट्टियां हैं। इसलिए सोमवार को वे घर पर थे। दोपहर करीब साढ़े तीन बजे वे घर पर आराम कर रहे थे। इस दौरान उन्हें छाती में दर्द महसूस हुआ। अचानक तबीयत ज्यादा खराब हो गई। परिजन उन्हें तुरंत अस्पताल लेकर गए जहां पर डाक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। उनके निधन के बारे में जिसे भी पता चला वो उनके घर पहुंच गया। उनकी पत्नी डॉ. भावना सेठी इकोनोमिक्स की प्रोफेसर हैं। उनकी दो बेटियां 18 वर्षीय दिव्यांशी व 13 वर्षीय आर्यांशी हैं। 2013 में मिला था साहित्य अकादमी पुरस्कार :

डॉ. संजीव चौधरी एक प्रोफेसर होने के साथ-साथ अच्छे डायरेक्टर, लेखक व वक्ता थे। उन्होंने स्वामी विवेकानंद समेत कई किताबें लिखी। स्वामी विवेकानंद के लिए प्रदेश सरकार ने उन्हें वर्ष 2013 में हरियाणा साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। एमएलएन कॉलेज में होने वाले यूथ फेस्टिवल व सांस्कृतिक कार्यक्रमों की वे पृष्ठ भूमि तैयार करते थे। वे कॉलेज के लिए ड्रामा लिखते थे। ड्रामा के माध्यम से वे समाज को आइना व दिशा देने का काम किया। यदि यूं कहे कि यूथ फेस्टिवल का आयोजन उनके बिना अधूरा था तो गलत नहीं होगा। डॉ. संजीव चौधरी के निधन के बाद तो एमएलएन संस्थाओं के महासचिव डॉ. रमेश कुमार ने तो यहां तक कह दिया कि उनके जाने से शहर व स्टेज गरीब हो गया। संजीव चौधरी ने डॉ. रमेश कुमार की दो पंजाबी पुस्तकों कुंआ के खलां व आवाज के आकार का ¨हदी में अनुवाद किया था। राज्यपाल ने भी किया था सम्मानित :

पिछले दिनों चलो थिएटर राष्ट्रीय नाटक उत्सव में संजीव चौधरी को स्वदेश दीपक रंग लेखन से सम्मान से हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने सम्मानित किया था। आचार्य देवव्रत ने उनकी कृति समाधि सर्प का विमोचन भी किया था। जब वे मंच संभालते थे तो शब्दों के ऐसे बाण चलाते थे कि हर किसी को सोचने के लिए मजबूर कर देते थे। उन्होंने ज्यादातर ड्रामे महिलाओं की स्थिति, दुष्कर्म, गरीबी पर आधारित होते थे। हरियाणा कला परिषद चंडीगढ़ की तरफ से आयोजित अंतरराष्ट्रीय नाट्य महोत्सव में

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने उन्हें हरियाणा के सर्वश्रेष्ठ नाटककार का पुरस्कार प्रदान किया था। नाट्य महोत्सव में पांच देशों के नाट्य-दल शामिल हुए थे, जिसमें उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला। वर्ष 2016 में केंद्र सरकार के इलेक्ट्रानिक एवं सूचना मंत्रालय ने डॉ. चौधरी को नाटक सुन भाई सुन के मंचन पर प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया। उनके पढ़ाए गए छात्र रंगमंच व साहित्य के क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं।


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