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बाबू से ताऊ तक की जुबां पर सियासत, जठलाना में शिक्षा-स्वास्थ्य मुद्दा

लोकसभा चुनाव का खुमार खूब है। सरकारी कार्यालयों में बाबू से लेकर गांव के ताऊ तक की जुबां पर बस सियासी चर्चा है। ग्रामीण अंचल का माहौल जांचने के लिए यमुनानगर से दैनिक जागरण संवाददाता संजीव कांबोज ने कुरुक्षेत्र लोकसभा के अंतर्गत आने वाले रादौर ब्लॉक के सबसे बड़ी पंचायत जठलाना की ओर रुख किया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 10 Apr 2019 01:26 AM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2019 07:56 AM (IST)
बाबू से ताऊ तक की जुबां पर सियासत, जठलाना में शिक्षा-स्वास्थ्य मुद्दा
बाबू से ताऊ तक की जुबां पर सियासत, जठलाना में शिक्षा-स्वास्थ्य मुद्दा

लोकसभा चुनाव का खुमार खूब है। सरकारी कार्यालयों में बाबू से लेकर गांव के ताऊ तक की जुबां पर बस सियासी चर्चा है। ग्रामीण अंचल का माहौल जांचने के लिए यमुनानगर से दैनिक जागरण संवाददाता संजीव कांबोज ने कुरुक्षेत्र लोकसभा के अंतर्गत आने वाले रादौर ब्लॉक के सबसे बड़ी पंचायत जठलाना की ओर रुख किया। बाइपास पर जाम से जूझकर हमीदा हेड होते हुए किसी तरह कलानौर-कैल बाइपास तक पहुंचे। ओवरब्रिज न होने के कारण 20 मिनट क्रॉसिग का इंतजार किया। एक ट्रक की आड लेकर मुश्किल से क्रॉस किया। वाहनों की धुल का सामना करते हुए यहां से करीब 10 किलोमीटर दूर व यमुना नदी के किनारे स्थित 15 हजार की आबादी वाले जठलाना गांव में पहुंचे।

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बस स्टैंड से पहले ही लाला विनोद कुमार की दुकान पर बाइक रोकी। यहां बुजुर्ग जय प्रकाश, लाला उमेश कुमार, विनोद कुमार, ईश्वर दयाल और हरपाल कांबोज सहित सत्ता और विपक्ष से जुड़े चार लोग पहले से ही बैठे हुए थे। सियासी चर्चा से माहौल थोड़ा गर्म था। सत्ता पक्ष के नेताओं के समर्थक अपनी पार्टी का गुणगान कर रहे थे। वहीं, विपक्ष में बैठे नेताओं में आस्था जता चुके अपनी पार्टी के शासन में विकास होने की बात कह रहे थे। बातचीत के दौरान काफी रोचक पहलू सामने आए। 1967 में विधायक चांद राम ने बनवाई थी पहली सड़क

यमुनानगर से खजूरी गांव तक सड़क थी, लेकिन आगे रास्ता कच्चा था। उस दौरान जठलाना बाबैन हलके का हिस्सा था। वर्ष 1967 में कांग्रेस से विधायक बने चांद राम ने खजूरी से लेकर जठलाना गांव तक पक्की सड़क बनवाई और बस की सुविधा भी मुहैया कराई। ग्रामीण बहुत खुश हुए। आखिर हो भी क्यों नहीं। क्षेत्र में पहली पक्की सड़क जो बनीं। इस दौरान गांव के ही डॉक्टर मुकंदी लाल ने सरकारी स्कूल के लिए प्रयास किए। ग्रामीणों के मुताबिक चांदराम ने ही जठलाना में स्कूल मंजूर करवाया था। इसका लाभ क्षेत्र के दर्जन भर से अधिक गांवों को हुआ। बाजार में लगती थी पीठ

उप्र के सरसावा की तर्ज पर जठलाना में भी पीठ (बाजार) लगती थी। क्षेत्र के लोग अनाज लेकर आते थे। बदले में सामान ले जाते थे, लेकिन बाद में यह बंद हो गई थी। ग्रामीणों के मुताबिक सैकड़ों वर्ष पुराने यहां के बाजार में खातियां (अनाज रखने की जगह) भी हुआ करती थी। इनमें व्यापारी अनाज जमा करके रखते थे। बताया जा रहा है कि यहां वैश्य समाज के लोग दान भी खूब करते थे। समय की करवट के साथ ये खातियां बंद हो गई। पुराने बाजार से दुकानदारों की संख्या कम हो गई। अनाज मंडी भी यहां वर्ष 1981 में बनीं। फायदा न केवल क्षेत्र बल्कि उप्र के किसानों को भी हुआ। ..जब चार गांवों को लेनी पड़ी शरण

उप्र और हरियाणा के बीच बह रही यमुना नदी यहां से करीब एक किलोमीटर बह रही है। करीब सात दशक पूर्व यमुना में आई भयंकर बाढ़ से किनारे पर बसे आधा दर्जन से अधिक गांव बेचिराग हो गए थे। रामगढ़, नकुंभ, ढाकवाला व बुच्चाबांस के लोगों को सरकार ने जठलाना गांव में बसाया था। नगला-नगली और रेतगढ़ के लोग संधाला व संधाली में रह रहे हैं। नहीं मिल पाई बुनियादी सुविधाएं

ग्रामीणों ने बताया कि राजनीतिक तौर पर यह एरिया अनदेखी का शिकार रहा है। यहां से सांसद रहे राजकुमार सैनी ने भी ग्रामीणों की सुध नहीं ली। 100 बेड का अस्पताल बनाए जाने की मांग लंबे समय की जा रही है। केवल आश्वासन मिले। लड़कियों के लिए कॉलेज नहीं बन पाया। यहां तक कि बस स्टैंड की भी सुविधा नहीं है। ग्रामीण हर वर्ष बाढ़ का दंश झेल रहे हैं। बचाव के लिए पुख्ता प्रबंध आज तक नहीं हुए। 15 हजार की आबादी वाले गांव की सफाई का जिम्मा चार कर्मचारियों पर है। नाले गंदगी से अटे पड़े हैं।


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