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थर्मल राख से परेशान लोग गांव छोड़ शहरों की तरफ लगा रहे दौड़

दीन बंधू छोटूराम थर्मल पावर प्लांट की राख से इससे सटे गांवों के लोग इतने परेशान हैं कि कई परिवार शहर या फिर अन्य जगहों पर बस गए हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Feb 2020 07:15 PM (IST)Updated: Mon, 24 Feb 2020 06:18 AM (IST)
थर्मल राख से परेशान लोग गांव छोड़ शहरों की तरफ लगा रहे दौड़
थर्मल राख से परेशान लोग गांव छोड़ शहरों की तरफ लगा रहे दौड़

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : दीन बंधू छोटूराम थर्मल पावर प्लांट की राख से इससे सटे गांवों के लोग इतने परेशान हैं कि कई परिवार शहर या फिर अन्य जगहों पर बस गए हैं। कई गांव छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। गत छह वर्षो में थर्मल प्लांट से सटे चार गांवों के 24 परिवार गांव छोड़ कर यमुनानगर या फिर उत्तर प्रदेश में बस गए हैं। क्योंकि थर्मल की राख से गांव में एलर्जी, टीबी व आंखों के मरीज दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन थर्मल प्लांट व प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों के साथ-साथ जिला प्रशासन को इनकी बिल्कुल भी चिता नहीं है। थर्मल प्लांट का सबसे ज्यादा असर बच्चों व बुजुर्गों पर पड़ रहा है। थर्मल ने नरक बना दी जिदगी : जसबीर कौर

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इस्सरपुर गांव की सरपंच जसबीर कौर का कहना है कि उनका गांव थर्मल प्लांट की दीवार से सटा है। कुछ साल पहले तक गांव में खुशहाली थी। गांव के सभी लोग स्वस्थ जीवन जीते थे। परंतु अब ऐसा नहीं है। अब तो थर्मल प्लांट ने लोगों की जिदगी नरक बना दी है। हालात इतने खराब हैं कि गांव के लोग अपने ही घर के आंगन में बैठ कर खाना तक नहीं खा पाते। कुछ देर के लिए बाहर बैठे नहीं की पूरे शरीर पर थर्मल की राख गिर जाती है। घरों की छतें राख से काली हो चुकी हैं। अपने बच्चों का भविष्य देखते हुए आठ-दस परिवार थर्मल लगने के बाद से शहर में जाकर बस गए हैं। कई लोग किराये पर बाहर रहने लगे हैं। अधिकारी तो गांव में कभी आकर देखते ही नहीं। सारे लोग गांव छोड़ने को तैयार : अजीज

बड़ा लापरा गांव की सरपंच के पति अजीज ने बताया कि उनके गांव से सात-आठ परिवार शहरों में रहने लगे हैं। क्योंकि थर्मल की राख से उनके परिवार के कई सदस्य बीमार हो गए थे। तीन-चार परिवार उत्तर प्रदेश में रहने लगे हैं। थर्मल प्लांट की राख उनके गांव के पास ही गराई जा रही है। थर्मल से राख लाने वाले ट्रक व ट्रैक्टर-ट्रालियां गांव के बीच से होकर जाते हैं। सारी राख सड़कों पर गिरती है। बिना बरसात के भी सड़क पर हर समय राख से कीचड़ रहता है। 18 फरवरी को ही वे गांव की समस्या को लेकर थर्मल प्लांट के चीफ इंजीनियर से मिले थे लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ। राख से परेशान सभी लोग गांव छोड़ने को तैयार हैं लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं की वे दूसरी जगह घर बना सके। बच्चों की नजर हो रही कमजोर : जितेंद्र राणा

रतनपुरा गांव के पूर्व सरपंच जितेंद्र राणा ने बताया कि उनका गांव थर्मल के साथ बसा है। राख के कारण बच्चों की नजर कम उम्र में ही कमजोर होने लगी है। उसकी 12 साल की बेटी जैसमिन को दो साल से चश्मा लगा है। जब बच्चे घर से बाहर निकलते हैं तो राख आंखों में गिरती है। इसी तरह पड़ोस में रहने वाली 14 साल की तेजस्वनी को भी तीन साल से चश्मा लगा है। गांव के लोग राख के कारण दमा, टीबी का शिकार हो रहे हैं। राख वाला चारा खाने से गाय-भैंस बांझ होने लगी हैं। इसलिए लोग गांव से दूर शहरों में रहने लगे हैं। पहले थर्मल की तरफ से गांव में मेडिकल चेकअप कैंप लगाया जाता था लेकिन तीन साल से एक भी कैंप नहीं लगा। चीफ इंजीनियर से नहीं हुआ संपर्क :

दीन बंधू थर्मल पावर प्लांट के चीफ इंजीनियर एलएन दुआ से इस बारे संपर्क किया तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। अगले सप्ताह लगाएंगे कैंप : डॉ. दहिया

सिविल सर्जन डॉ. विजय दहिया ने बताया कि अगले सप्ताह ही थर्मल प्लांट से सटे गांवों में स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जांच शिविर लगाया जाएगा। जिसमें लोगों की जांच कर उन्हें दवाइयां दी जाएंगी।


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