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अफसर लापरवाह, फैक्ट्रियों में नहीं सुरक्षा मानक, दम तोड़ रहे श्रमिक, जांच के नाम पर खानापूर्ति

विमल एल्युमिनियम प्राइवेट लिमिटेड में सिलेंडर लीकेज से कर्मचारियों के झुलसने की वजह से एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं। फैक्ट्रियों में आग या फिर अन्य हादसों की वजह से श्रमिकों की जान जा रही है या फिर जान जोखिम में हैं। जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति होती है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 18 Sep 2019 09:30 AM (IST)Updated: Wed, 18 Sep 2019 09:30 AM (IST)
अफसर लापरवाह, फैक्ट्रियों में नहीं सुरक्षा मानक, दम तोड़ रहे श्रमिक, जांच के नाम पर खानापूर्ति
अफसर लापरवाह, फैक्ट्रियों में नहीं सुरक्षा मानक, दम तोड़ रहे श्रमिक, जांच के नाम पर खानापूर्ति

अवनीश कुमार, यमुनानगर

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विमल एल्युमिनियम प्राइवेट लिमिटेड में सिलेंडर लीकेज से कर्मचारियों के झुलसने की वजह से एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं। फैक्ट्रियों में आग या फिर अन्य हादसों की वजह से श्रमिकों की जान जा रही है या फिर जान जोखिम में हैं। जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति होती है। अधिकतर मामलों में फैक्ट्री संचालकों की लापरवाही सामने आती है, लेकिन जिन विभागों पर सुरक्षा के इंतजाम कराने की जिम्मेदारी है, वे लापरवाह हैं। न तो समय-समय पर फैक्ट्रियों की विजिट की जाती है और न ही रिकॉर्ड जुटाया जाता है।

जिले में करीब चार हजार औद्योगिक इकाइयां हैं। इनमें करीब 19 हजार श्रमिक कार्य करते हैं। यह रिकॉर्ड में हैं। इसके अलावा करीब एक लाख श्रमिक यहां पर कार्य कर रहे हैं। इनका कोई रिकॉर्ड नहीं है। अधिकतर दूसरे राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के श्रमिक काम करते हैं। फैक्ट्रियों में अकसर हादसे होते हैं। श्रमिकों की जान जाती है, लेकिन बाहर से होने से कोई कार्रवाई नहीं हो पाती। कई बार श्रमिकों से समझौता कर मामला दबा दिया जाता है, तो कहीं पर श्रमिकों को ही डरा धमकाकर चुप करा दिया जाता है।

बिल्डिग से लेकर प्लांट तक नियमानुसार नहीं

अधिकतर औद्योगिक संस्थान नियमों को ताक पर रखकर चल रहे हैं। बिल्डिग से लेकर प्लांट तक नियमानुसार तैयार नहीं किए जाते। बावजूद यह धड़ल्ले से चल रहे हैं। हालात यह है कि हर माह दो से तीन हादसे इन फैक्ट्रियों में हो रहे हैं। छोटी घटनाएं तो फैक्ट्री के अंदर ही दबा दी जाती है।

ये हैं श्रम कानून

सामाजिक श्रमिक सुरक्षा योजना के तहत फैक्ट्री में दुर्घटना में मौत पर पांच लाख रुपये और घायल होने की प्रतिशत के आधार पर सरकार मुआवजा देती है। फैक्ट्री मालिकों को भी मुआवजा देना होगा, जो कर्मचारी की उम्र और उसकी सेलरी के हिसाब से देना होता है। इसके अलावा ईपीएफ व बीमा आदि से भी राशि उपलब्ध होती है। दुर्घटना किसकी गलती से भी हुई हो। फैक्ट्री एक्ट के तहत जुर्माना मालिक को ही भुगतना होगा। रिहायशी क्षेत्र में कोई फैक्ट्री नहीं चला सकते। फैक्ट्री के लिए एनओसी होनी जरूरी है और फैक्ट्री के अंदर आग नियंत्रण संबंधी यंत्र होने चाहिए।

अग्निशमन : इन्हें जांच करनी होती है कि फैक्ट्रियों के अंदर अग्निरोधक यंत्र हैं या नहीं। वह चालू स्थिति में हैं या नहीं और फैक्ट्री तक अग्निशमन विभाग की गाड़ी पहुंचने की क्या व्यवस्था है।

जवाब : दमकल अधिकारी प्रमोद दुग्गल का कहना है कि जिन फैक्ट्रियों में आग बुझाने के पुख्ता इंतजाम नहीं है, उनकी जांच के बाद नोटिस जारी किए जाते हैं। वहां पर अग्निशमन यंत्र लगवाए जाते हैं। विमल फैक्ट्री में भी बचाव के इंतजाम थे।

ईएसआइ : इन्हें फैक्ट्रियों के अंदर काम कर रहे मजदूरों की ईएसआइ कार्डों संबंधी जानकारी जुटानी है।

जवाब : ईपीएफओ कमिश्नर मयंक बंसल का कहना है कि फैक्ट्रियों से समय-समय पर श्रमिकों का रिकॉर्ड लिया जाता है। रिकॉर्ड के लिए 90 से ज्यादा संचालकों को भी नोटिस दिए गए हैं।

सेफ्टी एंड हेल्थ विग : इन्हें फैक्ट्रियों के अंदर जाकर वहां की बिल्डिग की स्थिति, मशीनों के हालात, उनके पैनल और मजदूरों की सुरक्षा संबंधी जांच करनी होती है। सुरक्षा मानकों की सबसे अधिक इस विभाग की है।

जवाब : सेफ्टी एंड हेल्थ विग के सहायक निदेशक सुमित साहनी का कहना है कि फैक्ट्रियों में समय-समय पर जांच की जाती है। कोई ऐसा रिकॉर्ड अभी नहीं बनाया है। जिसमें सेफ्टी नॉ‌र्म्स पूरे न करने वाली फैक्ट्रियों के नाम हों।

ये हो चुके बड़े हादसे

3 फरवरी, 2011 को दड़बा क्षेत्र में प्लाईवुड फैक्ट्री में बॉयलर फटने से एक बच्चे की मौत हो गई थी, जबकि कई लोग घायल हुए थे।

30 अक्टूबर, 2018 में जगाधरी की रघुनाथ मेटल फैक्ट्री में कार्य करते समय ऑपरेटर 22 वर्षीय कर्मचारी पवन की गर्दन में पत्ती लगने से मौत हो गई थी। 18 अगस्त, 2018 को जोड़ियो में प्लाईवुड फैक्टरी में करंट लगने से हमीदा निवासी बिहारी की मौत हो गई थी।

3 अक्टूबर, 2018 को दामला में विश्वनाथ प्लाईवुड फैक्ट्री में कार्य करते समय संतोष नाम की महिला की लिफ्टर चढ़ने से मौत हो गई थी।

--जोड़िया में एक फैक्ट्री में प्लाई के पत्ते के नीचे दबने से बच्ची की मौत हो गई थी।

--खजूरी रोड पर प्लाईवुड की फैक्ट्री में ही जॉन रॉय नाम के श्रमिक की पीलिग मशीन की चपेट में आने से मौत हो गई थी।

-गत दो माह में जगाधरी की अलग-अलग मेटल फैक्ट्रियों में तीन मौतें श्रमिकों को करंट लगने से हो चुकी हैं।


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