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अहोई अष्टमी पर माताओं ने व्रत रखकर की संतान की दीर्घायु की कामना

माताओं ने अपनी संतान के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रख दीर्घायु की कामना की। इस दिन माता पार्वती की पूजा का विधान है। माना जाता है कि जो भी महिला पूरे मन से इस व्रत को रखती है उसके ब'चे दीर्घायु होते हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 31 Oct 2018 05:40 PM (IST)Updated: Wed, 31 Oct 2018 10:50 PM (IST)
अहोई अष्टमी पर माताओं ने व्रत रखकर की संतान की दीर्घायु की कामना
अहोई अष्टमी पर माताओं ने व्रत रखकर की संतान की दीर्घायु की कामना

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : माताओं ने अपनी संतान के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रख दीर्घायु की कामना की। इस दिन माता पार्वती की पूजा का विधान है। माना जाता है कि जो भी महिला पूरे मन से इस व्रत को रखती है उसके बच्चे दीर्घायु होते हैं। ये भी मान्यता है कि इस व्रत के प्रताप से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पूजन सामग्री की खरीदारी के लिए बाजार में भीड़ रही। फलों व गन्ने की अधिक मांग रही। एक गन्ना 10 रुपये में बेचा गया।

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पेपर मिल के नजदीक बाजार में खरीदारी करने आई रामपुरा कॉलोनी की संगीता ने बताया कि उनके पास बेटा है। वह उसकी लंबी आयु की कामना को लेकर अहोई का व्रत रखती हैं। शाम की पूजा के लिए सामग्री खरीदने आई हैं। इसी तरह भाटिया नगर से आई सुनीता ने बताया कि उन्होंने भी अपनी संतान के लिए व्रत रखा है। तारों को अ‌र्घ्य देकर पूरा करेगी। विक्रेता राम ¨सह ने बताया कि गन्ने लेकर मंडी से आया है। गन्ना, ¨सघाड़े की अच्छी मांग रही। साथ ही केला व सेब की खरीदारी की गई।

ये है व्रत का महत्व

दुर्गेश्वरी मंदिर बूड़िया के पुजारी पंडित संजय चतुर्वेदी ने बताया कि अहोई यानी के'अनहोनी से बचाना'। किसी भी अमंगल या अनिष्ट से अपने बच्चों की रक्षा करने के लिए महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं। यही नहीं संतान की कामना के लिए भी यह व्रत रखा जाता है। महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं। पूरे दिन पानी की बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं। दिन भर के व्रत के बाद शाम को तारों को अ‌र्घ्य दिया जाता है। हालांकि चंद्रमा के दर्शन करके भी यह व्रत पूरा किया जा सकता है, लेकिन इस दौरान चंद्रोदय काफी देर से होता है। इसलिए तारों को ही अ‌र्घ्य दे दिया जाता है।

ये सुनी जाती है कथा

चतुर्वेदी ने बताया कि इस माताएं ये कहानी सुनती हैं। प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं। साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गईं तो ननद भी उनके साथ चली गई। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहू (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली, मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी। स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती रही कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा, पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। सुरही सेवा से प्रसन्न होती है। छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है। स्याहू के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा-भरा हो जाता है।


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