शिवालिक की पहाड़ियों में बसे आदिबद्री में तैयार किए जा रहे विद्वान
शिवालिक की पहाड़ियों में बसे आदिबद्री में प्राचीन काल की पद्धति से बच्चों को शिक्षित किया जाता है। वैदिक मंत्रों के उच्चारण सिखाए जाते हैं। यहां के जंगलों में गुरुकुल चल रहा है। विद्यार्थियों को शस्त्र विद्या के साथ आत्मरक्षा करने में दक्ष भी किया जाता है। जब तक बच्चे यहां रहते हैं इनको अपने घर जाने की इजाजत नहीं होती। इनके माता-पिता को भी मिलने नहीं दिया जाता
नितिन शर्मा, यमुनानगर
शिवालिक की पहाड़ियों में बसे आदिबद्री में प्राचीन काल की पद्धति से बच्चों को शिक्षित किया जाता है। वैदिक मंत्रों के उच्चारण सिखाए जाते हैं। यहां के जंगलों में गुरुकुल चल रहा है। विद्यार्थियों को शस्त्र विद्या के साथ आत्मरक्षा करने में दक्ष भी किया जाता है। जब तक बच्चे यहां रहते हैं इनको अपने घर जाने की इजाजत नहीं होती। इनके माता-पिता को भी मिलने नहीं दिया जाता। इसके लिए पहले ही परिवार को बता दिया जाता है। शर्त मानने वालों को ही दाखिला दिया जाता है।
16 तरह की दी जाती है शिक्षा
ब्रह्माचर्य का पालने करवाते हुए यहां पर विद्वान तैयार किए जा रहे हैं। सनातन पद्धति पर आधारित इस गुरुकुल में 30 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। दस वर्ष की आयु में गुरुकुल में शिक्षा लेने के लिए बच्चा आता है और वह 18 वर्ष की आयु तक शिक्षा लेता है। शिक्षा में उन्हें सोढ संस्कार (16 तरह की शिक्षा) के साथ-साथ क्रम कांड, वेद ज्ञान, ज्योतिष और व्याकरण का ज्ञान दिया जाता है।
दंडी स्वामी श्रीकृष्णा आश्रम ने की थी शुरू
आदिबद्री के जंगल में 1960 में गुरुकुल परंपरा के तहत शिक्षा दंडी स्वामी श्रीकृष्णा आश्रम ने शुरू की। बिना सरकारी मदद के यह गुरुकुल युवा में संस्कृति का बीज रोपण का कार्य कर रहा है। इसमें प्रदेश के साथ उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश के बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
पर्यावरण शुद्ध रखने के लिए कराते अर्थवेद का अध्ययन
गुरुकुल की व्यवस्था देख रहे ब्रह्माचारी विनय स्वरूप महाराज ने बताया कि चारों वेदों का ज्ञान भी दिया जाता है। पर्यावरण को कैसे शुद्ध रखे इसके लिए अर्थवेद का गहन अध्ययन कराया जाता है। हाल में ही विस अध्यक्ष कंवरपाल ने एक लाख रुपये का अनुदान गुरुकुल में दिया। इससे बच्चों को छाया मिली।
इसके साथ ही जिस भी बच्चे का एडमिशन गुरुकुल में होता है पहले उसके मां-बाप को बता दिया जाता है कि न तो बच्चे से वे यहां पर आकर मिल सकते हैं, न ही बच्चे अपने घर जा सकते हैं। गर्मियों की छुट्टियों में ही बच्चे डेढ़ माह के लिए घर जाते हैं। यहां पर जो भी बच्चा गुरुकुल में पढ़ता है उसे गोसेवा भी करनी पड़ती है।