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पेट्रोल के लाइसेंस पर डीजल वाहनों की जांच, फर्जीवाड़े पर नहीं किसी का ध्यान

वाहनों का प्रदूषण जांचने के नाम पर फर्जीवाड़ा हो रहा है। जांच के नाम पर लोगों को फर्जी प्रमाणपत्र दिए जा रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Apr 2021 07:25 AM (IST)Updated: Mon, 19 Apr 2021 07:25 AM (IST)
पेट्रोल के लाइसेंस पर डीजल वाहनों की जांच, फर्जीवाड़े पर नहीं किसी का ध्यान
पेट्रोल के लाइसेंस पर डीजल वाहनों की जांच, फर्जीवाड़े पर नहीं किसी का ध्यान

जागरण संवाददाता, यमुनानगर :

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वाहनों का प्रदूषण जांचने के नाम पर फर्जीवाड़ा हो रहा है। जो प्रदूषण जांच केंद्र केवल डीजल वाहनों की जांच के लिए अधिकृत है वह पेट्रोल के वाहनों की भी जांच कर रहा है। इसी तरह पेट्रोल जांच का लाइसेंस लेकर डीजल के भी वाहनों की जांच अवैध रूप से की जा रही है। यह आरोप कोई ओर नहीं बल्कि प्रदूषण जांच केंद्र चलाने वाले लोग ही लगा रहे हैं। विभागीय कार्रवाई से बचने के लिए वह खुलकर सामने नहीं आ रहे। यदि इन आरोपों में सच्चाई है तो बड़ा फर्जीवाड़ा है। क्योंकि पेट्रोल, डीजल वाहनों की जांच के लिए अलग-अलग लाइसेंस लेना होता है। परंतु लाइसेंस फीस व मशीनरी का खर्च बचाने के लिए वह एक ही लाइसेंस पर दोनों तरह के वाहनों की जांच कर रहे हैं। प्रदूषण जांच केंद्र चलाने वाले तो आम आदमी अज्ञानता का फायदा उठा ही रहे हैं, साथ में अधिकारियों की आंखों में भी धूल झोंकी जा रही है। आरटीए कार्यालय के अधिकारियों का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है। यदि अधिकारी इसकी जांच करवाए तो कई खामियां उजागर हो सकती हैं। केंद्रीय मंत्री भी दे चुके हैं जांच के आदेश

दो माह पहले जब केंद्रीय जल राज्य मंत्री रतन लाल कटारिया ने रोड सेफ्टी की मीटिग ली थी तो उन्होंने भी प्रदूषण जांच केंद्रों पर कई तरह के सवाल खड़े किए थे। उन्होंने कहा था कि कभी अधिकारियों ने किसी प्रदूषण जांच केंद्र की जांच की है या नहीं। क्योंकि सड़कों पर उन्होंने खुद वाहनों को काला धुंआ फेंकते हुए देखा है। कटारिया ने कहा था कि इनके द्वारा सड़कों पर केबिन रख कर वाहनों की जांच की जा रही है। किसी के पास जगह तक नहीं है। इसलिए इनकी जांच कर कार्रवाई होनी चाहिए। क्योंकि लोग प्रदूषण की जांच कराने के लिए सड़क पर ही वाहन खड़ा कर देते हैं। इससे हादसा होने की संभावना रहती है। सख्ती के बाद वाहनों की भीड़ बढ़ी

वर्ष 2019 से प्रदू्षण प्रमाण पत्र लेने वाले लोगों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। क्योंकि अब प्रदूषण प्रमाण पत्र नहीं होने पर 10 हजार रुपये जुर्माना देना पड़ता है। जबकि पहले यह जुर्माना मात्र एक हजार रुपये था। 10 हजार रुपये न देना पड़े इसलिए 80 रुपये में छह माह से एक साल तक का प्रदूषण प्रमाण पत्र बनवाया जा सकता है। इसे जुर्माने का ही डर कहेंगे कि रोजाना सैकड़ों की संख्या में प्रदूषण प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे हैं। मामले की जांच कराएंगे : गौरी मिड्डा

यमुनानगर आरटीए सचिव का अतिरिक्त कार्यभार देख रहीं गौरी मिड्डा का कहना है कि पेट्रोल के लाइसेंस पर डीजल वाहनों का प्रदूषण प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा सकता। वह इस मामले की जांच कराएंगी।


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