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भारतीय संस्कृति दुनिया में सर्वश्रेष्ठ : राहुल

फ्रैक्फर्ट (जर्मनी) में मजिस्ट्रेट ब्यूरो मेंबर के पद पर तैनात राहुल कुमार व जैसाबेला फेरेज, स्पीकर ऑफ स्टेट इन जर्मन का शनिवार को हरिओम शिवओम पब्लिक स्कूल व राजकीय स्कूल अलाहर में जोरदार अभिनंदन किया गया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 20 Oct 2018 05:45 PM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 11:08 PM (IST)
भारतीय संस्कृति दुनिया में सर्वश्रेष्ठ : राहुल
भारतीय संस्कृति दुनिया में सर्वश्रेष्ठ : राहुल

संवाद सहयोगी, रादौर : फ्रैक्फर्ट (जर्मनी) में मजिस्ट्रेट ब्यूरो मेंबर के पद पर तैनात राहुल कुमार व जैसाबेला फेरेज, स्पीकर ऑफ स्टेट इन जर्मन का शनिवार को हरिओम शिवओम पब्लिक स्कूल व राजकीय स्कूल अलाहर में जोरदार अभिनंदन किया गया। हरिओम पब्लिक स्कूल में पहुंचने पर मैनेजमेंट सदस्य सुरेंद्रपाल ¨सह, पंकज चमरोड़ी, विनोद शर्मा खेड़ी ने उनका फूल मालाओं से स्वागत किया। वहीं अलाहर में सरपंच गोपाल कृष्ण, कांग्रेस नेता मांगेराम मारूपुर व अन्य ग्रामीणों ने बैंड बाजों के साथ स्वागत किया गया। कार्यक्रमों में स्कूली बच्चों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम पेशकर समां बांधा। विधायक श्याम ¨सह राणा ने कहा कि राहुल कांबोज ने विदेशों में शोहरत हासिल कर देश का नाम रोशन किया है। ग्रामीण आंचल से उठकर बुलंदियों को छुआ है। जिससे देश का नाम रोशन हुआ है।

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मौके पर अप्रवासी भारतीय राजकुमार कांबोज, सुखबीर बकाना, राजेश अलाहर, प्रदीप कांबोज, र¨वद्र कांबोज, शिवकुमार संधाला, अरूण कुमार, मुकेश रोहिला, ¨प्रसिपल सुरेंद्र ¨सह, पवन कुमार, मनीश शर्मा, रीना, सुशील, सुनील, संजय, सुषमा, राजपाल, संदीप कुमार, संजीव कांबोज, शशि दुरेजा दामला, विजय अलाहर, पवन ग्रोवर, रामकुमार वर्मा मौजूद थे।

विदेशों में काम में व्यस्त रहते हैं लोग : राहुल

राहुल कांबोज ने कहा कि उन्हें जो प्यार व स्नेह अपनी मातृभुमि से मिला है, वह बहुमूल्य है। वह जर्मनी में एनजीओ चलाकर समाज के लोगों की सेवा कर रहे है। अब वे अपने संगठन का गांव में कार्यालय खोल कर यहां के जरूरतमंद बच्चों की सेवा करेंगे। यहां के लोगों को समाजसेवा से जुड़े कार्य करने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति दुनिया में सबसे श्रेष्ठ है। बड़ों की इज्जत व सत्कार करना हमारी संस्कृति ने हमें सिखाया है। उनका परिवार लंबे समय से जर्मनी में रह रहा है। इसके बावजूद कभी भी अपने संस्कृति का दामन नहीं छोड़ा। विदेशों में लोगों के पास अपने काम के अलावा किसी के लिए समय नहीं है। लेकिन भारत में लोग सुख-दुख में इकट्ठा रहते है। वे जब जर्मन गए तो उस समय मात्र 9 महीने के थे। पिता राजकुमार कांबोज ने उन्हें भारतीय संस्कृति से जोड़े रखा।


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