भगवान शिव ने पांडवों को केदार में दर्शन देकर किया भ्रातृहत्या के पाप से मुक्त
श्री गौरी शंकर मंदिर में चल रही शिव महापुराण कथा के दौरान सहारनपुर से आए पंडित योगेश चंद्र गौनियाल ने ज्योतिर्लिग की उत्पति व केदारनाथ स्थापना के बारे में विस्तार से चर्चा की।
संवाद सहयोगी, जगाधरी: श्री गौरी शंकर मंदिर में चल रही शिव महापुराण कथा के दौरान सहारनपुर से आए पंडित योगेश चंद्र गौनियाल ने ज्योतिर्लिग की उत्पति व केदारनाथ स्थापना के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृ हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। जिसके लिए उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद चाहिए था। लेकिन शिव पांडवों से रुष्ट थे। जब पांडव काशी पहुंचे तो उन्हें शिव नहीं मिले। वे शिव को खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान होकर केदार में जा बसे। दूसरी ओर पांडव भी लगन के पक्के थे वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए।
भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंर्तध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ़ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।
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