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कचरा उठाने वाले वाहनों में लगाया जीपीएस, 400 की बजाय 1500 लोगों पर एक सफाई कर्मचारी

शहर की सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए नगर निगम ने कचर

By JagranEdited By: Published: Sat, 21 Nov 2020 09:40 AM (IST)Updated: Sat, 21 Nov 2020 09:40 AM (IST)
कचरा उठाने वाले वाहनों में लगाया जीपीएस, 400 की बजाय 1500 लोगों पर एक सफाई कर्मचारी
कचरा उठाने वाले वाहनों में लगाया जीपीएस, 400 की बजाय 1500 लोगों पर एक सफाई कर्मचारी

जागरण संवाददाता, यमुनानगर :

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शहर की सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए नगर निगम ने कचरा उठाने वाले टिप्पर व अन्य वाहनों में जीपीएस लगाए हैं। अधिकारियों का तर्क था कि टिप्पर चलाने वाले काफी चालक अपनी ड्यूटी को लेकर गंभीर नहीं है। टिपर को यहां वहां खड़ा कर फरलो मारते हैं। अब जीपीएस लगने से कार्यालय में बैठ कर ही सभी चालकों पर नजर रखी जा सकेगी। हालांकि जीपीएस पहले भी सभी वाहनों में लगाया जा चुका है लेकिन इसने काम करना बंद कर दिया था। कहा तो ये जा रहा है कि चालकों ने इन्हें जानबूझ कर खराब कर दिया था ताकि अधिकारी उनकी लाइव लोकेशन न जान सके। बड़ा सवाल ये है कि क्या जीपीएस लगा देने से सफाई बेहतर हो पाएगी। जबकि सच्चाई तो ये है कि निगम के पास न तो कचरा उठाने के लिए पर्याप्त वाहन है और न ही सफाई कर्मचारी। रोज निकलता है 250 टन कचरा

साढ़े चार लाख आबादी वाले यमुनानगर-जगाधरी शहर में रोजाना 250 टन कचरा निकलता है। इसमें जैविक कचरा 170 टन, प्लास्टिक कचरा 10 क्विंटल, इलेक्ट्रानिक कचरा दो टन, ग्रेडेबल कचरा 20 टन, बायोमेडिकल वेस्ट चार क्विंटल निकलता है। नगर निगम द्वारा हर माह शहर की सफाई पर 60 से 65 लाख रुपये खर्च किए जाते हैं यानि सालभर में सात करोड़ रुपये से ज्यादा। इसके बावजूद शहर प्रदेश ही नहीं देशभर के सबसे गंदे शहरों में शुमार है। स्वच्छता सर्वेक्षण-2020 यमुनानगर का 147वां रैंक आया था। प्रदेश के 17 में से यमुनानगर नौवें स्थान पर आया था। यानि आठ शहर हमसे ज्यादा साफ सुथरे हैं। ऐसे में निगम अधिकारियों को स्वच्छ शहरों से सबक लेने की जरूरत है या फिर सफाई के लिए उनका फार्मूला अपनाना चाहिए। 943 कर्मचारी कर रहे सफाई :

इस वक्त शहर के 22 वार्डों में सफाई के लिए नगर निगम ने 943 कर्मचारी लगा रखे हैं। इनमें 153 कर्मचारी ठेकेदार के माध्यम से कार्यरत हैं। जबकि कचरा उठाने के लिए 60 टिप्पर हैं। सात डंपर प्लेसर, छोटे डस्टबिन उठाने के लिए छह रिफ्यूज कलेक्टर लगाए गए हैं। इन सभी वाहनों में निगम ने जीपीएस लगाया है। हालांकि कचरा उठाने के लिए वाहनों की संख्या पर्याप्त नहीं है। क्योंकि 60 में से 10 से 12 टिप्पर तो रोजाना मरम्मत या सर्विस के चलते खड़े रहते हैं। कर्मचारियों की संख्या भी काफी कम है। क्योंकि नियमानुसार 400 कर्मचारियों पर एक सफाई कर्मचारी होना चाहिए। जबकि इस वक्त 1500 लोगों पर एक कर्मचारी ही सफाई कर रहा है। प्लांट में लगे कचरे के पहाड़

तत्कालीन कांग्रेस सरकार में वर्ष 2012 में अंबाला मार्ग पर कैल गांव के नजदीक 18.74 करोड़ रुपये सॉलिड वेस्ट मैनजमेंट प्लांट का निर्माण किया गया था। इस प्लांट में शहर का कचरा वाहनों से ले जाया जाता है। शहर के आखिरी छोर से कचरा प्लांट की दूरी 15 किलोमीटर है। इस प्लांट में कचरे से खाद बनाई जानी थी। ताकि कचरे का निस्तारण भी हो जाए और यहां बनने वाली खाद को बेच कर मुनाफा कमाया जा सके। परंतु यह प्लांट राजनीति की भेंट चढ़ गया। कई साल से प्लांट बंद पड़ा है। प्लांट में पहाड़ों की तरह कचरे के ढेर लग गए हैं। वर्तमान में इसमें लाखों टन कचरा पड़ा है। जिससे आसपास के एरिया में बदबू का माहौल रहता है। जीपीएस लगाकर रूट चार्ट बनाया है : अनिल नैन

नगर निगम के चीफ सेनेटरी इंस्पेक्टर अनिल नैन का कहना है कि कचरा उठाने वाले सभी वाहनों में जीपीएस लगाया गया है। जिनमें पहले लगे थे उन्हें अपग्रेड किया गया है। वहीं वाहनों का रूट प्लांट बनाया गया है। ताकि कचरा उठाने का कार्य गंभीरता से हो सके। शहर को साफ सुथरा रखने के लिए लगातार सुधार किए जा रहे हैं।


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