फसल अवशेष प्रबंधन अपनाएं किसान, अच्छी होगी पैदावार : डॉ. यादव
प्रतिबंध के बावजूद खेतों में धान की फसल के अवशेष जल रहे हैं। नियमों और दुष्प्रभावों की परवाह किए बगैर कुछ किसान अवशेषों को आग के हवाले कर रहे हैं। हालांकि प्रशासनिक स्तर पर रोकथाम के लिए पूरे प्रयास किए जा रहे हैं। किसानों को विभिन्न माध्यमों से जागरूक भी किया जा रहा है। बावजूद इसके अब से पहले 175 जगह आग लगने के मामले सामने आ चुके हैं।
प्रतिबंध के बावजूद खेतों में धान की फसल के अवशेष जल रहे हैं। नियमों और दुष्प्रभावों की परवाह किए बगैर कुछ किसान अवशेषों को आग के हवाले कर रहे हैं। हालांकि प्रशासनिक स्तर पर रोकथाम के लिए पूरे प्रयास किए जा रहे हैं। किसानों को विभिन्न माध्यमों से जागरूक भी किया जा रहा है। बावजूद इसके अब से पहले 175 जगह आग लगने के मामले सामने आ चुके हैं। फसल अवशेषों को कैसे करें प्रबंधन, विभागीय स्तर पर क्या-क्या किए जा रहे प्रयास, इन पहलुओं को लेकर दैनिक जागरण संवाददाता संजीव कांबोज ने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के उप-निदेशक डॉ. सुरेंद्र यादव से बातचीत की। बातचीत के अंश इस प्रकार हैं।
प्रतिबंध के बावजूद फसल अवशेष जलाने के मामले सामने आ रहे हैं। इसका क्या कारण मानते हैं?
फसल अवशेष जलाने वालों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। कुछ किसान चोरी-छिपे अवशेष जला देते हैं। ऐसे किसानों के खिलाफ कार्रवाई तय है। किसान धान के अवशेषों को आग लगाने के बजाय विभाग की ओर से बताए समुचित प्रबंध करें। जो किसान अवशेषों को आग लगाएगा कार्रवाई के लिए उसकी जिम्मेदारी होगी।
किसानों को जागरूक करने के लिए क्या-क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
फसल अवशेष प्रबंधन के लिए प्रदेश सरकार कृषि यंत्रों पर सब्सिडी उपलब्ध करा रही है। कस्टम हियरिंग सेंटर खोलने की सरकार ने मंजूरी दी थी। इनमें से ज्यादातर खोले जा चुके हैं। इसमें आठ तरह के कृषि यंत्र उपलब्ध कराए जा रहे हैं। स्ट्राबेलर, रीपर, एसएमएस और कंबाइन जैसे उपकरणों की कीमत लगभग 10 लाख रुपये है। छोटे किसान इतने महंगे उपकरण खरीदने में सक्षम नहीं होते हैं।
खेतों में फसल अवशेष जलाने के क्या-क्या नुकसान हैं?
प्रशासन ने सख्त आदेश जारी किए हुए हैं कि फसल के अवशेष खेतों में न जलाए जाएं, क्योंकि ऐसा किए जाने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती है और भूमि के अंदर मौजूद मित्र कीट तपिश के कारण मर जाते हैं। इसके अतिरिक्त प्रदूषण बढ़ता जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। ऐसे किसानों को शायद यह मालूम नहीं मालूम है कि खेतों में फसल अवशेष जलाने से धरती अथवा वायुमंडल पर क्या खतरा पैदा होता है।
किसान फसल अवशेषों का प्रबंधन कैसे करें?
धान के अवशेष जलाने की जरूरत नहीं है। खेतों में ही जोताई कर दें। हैप्पी सीडर के माध्यम से गेहूं की बिजाई की जा सकती है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी और प्रदूषण भी नहीं होगा। इसको गड्ढे में इकट्ठा करके जैविक खाद तैयार की जा सकती है।
कुछ किसान कहते हैं कि फसल अवशेषों के प्रबंधन पर अतिरिक्त खर्च होता है?
कोई खास फर्क नहीं पड़ता। जोताई पर जैसा अतिरिक्त खर्च होता है, वैसा ही खेत में जैविक खाद भी तैयार होती है। आगामी फसल को इसका फायदा होता है। रासायनिक खाद का इस्तेमाल कम करना पड़ता है। भूमि की ताकत भी बनी रहती है।