कपालमोचन मेला में गर्म गुलाब जामुन से लेकर बर्फी तक का स्वाद चख रहे श्रद्धालु
यह शायद पहला ऐसा मेला है जिसमें हलवा खीर गर्म गुलाब जामुन से लेकर खोये से बनी बर्फी तक सब मिल रहा है लेकिन ये सामान मेले में लगी किसी दुकान पर नहीं बिक रहा बल्कि यहां लगे भंडारों में मिल रहा है। मेला में 75 से ज्यादा जगह लंगर चल रहे हैं।
जागरण संवाददाता, कपालमोचन : यह शायद पहला ऐसा मेला है, जिसमें हलवा, खीर, गर्म गुलाब जामुन से लेकर खोये से बनी बर्फी तक सब मिल रहा है, लेकिन ये सामान मेले में लगी किसी दुकान पर नहीं बिक रहा, बल्कि यहां लगे भंडारों में मिल रहा है। मेला में 75 से ज्यादा जगह लंगर चल रहे हैं। उनमें अच्छी खासी भीड़ भी जुट रही है। कुछ भंडारों में तो श्रद्धालुओं को शाही पनीर और दाल मखनी तक का स्वाद प्रसाद के रूप में चखने को मिल रहा है।
सबसे ज्यादा भीड़ बाबा बंसीवाला के भंडारे में
मेला परिसर में सबसे ज्यादा भीड़ बाबा बंसीवाला के भंडारे में देखने को मिल रही है। इस बार बाबा बंसीवाले का भंडारा गुर्जर धर्मशाला व क्षत्रिय धर्मशाला में चल रहा है। गुर्जर धर्मशाला में पहली बार श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन हुआ। भंडारे की रसोई इंचार्ज प्रमोद कुमार मित्तल ने बताया कि संत शिरोमणि बाबा बंसीवाले की कृपा से भंडारा कपालमोचन में सात दिन चलता है। भंडारे में दाल, सब्जी, पूरी, रोटी, बर्फी, बालूशाही, नमकीन मट्ठी, गर्म गुलाब जामुन, खीर, काले चने, हलवा, पकोड़ा दिया जा रहा है। पांच सौ क्विटल पतीसा पंजाब के धुरी से मंगवाया गया है। यह पतीसा आर्डर पर एडवांस में तैयार कराया गया था। इसके अलावा आठ सौ टीन रिफाइंड और आठ सौ टीन वनष्पति घी, सौ क्विटल आटा, तीन सौ क्विटल चीनी साथ लेकर आए थे। हरी सब्जी हर रोज मंडी से मंगवाई जाती है। एक दिन में 60 टीन घी से करीब 75 क्विटल हलवा बन रहा है। 150 क्विटल बर्फी, 80 क्विटल गुलाब जामुन, 30 क्विटल आटा से पूरी, 30 क्विटल खीर, 50 क्विटल बालूशाही रोजाना श्रद्धालुओं को दी जा रही है। शिवम चौधरी ने बताया कि हलवाई के इंचार्ज सेठपाल व राजू हैं, जो पूरा साल उनके साथ भंडारों में सामान बनाते हैं। बनाने से लेकर परोसने तक दो सौ कर्मचारियों का स्टॉफ लगा हुआ है। इसके अलावा एक लाख रुपये की दवाई मंगवाई गई जो श्रद्धालुओं को निश्शुल्क दी जा रही है।
मेले में नहीं खुलता एक भी ढाबा
करीब 110 एकड़ में लगने वाले मेला में एक भी ढाबा नहीं खुलता। जबकि अन्य जगह लगने वाले मेलों में अक्सर ढाबा और रेस्टोरेंट ज्यादा देखने को मिलते हैं। मेला में केवल चाय और पकौड़े ही बिकते हैं, लेकिन वे भी इतने बड़े स्तर पर नहीं, क्योंकि मेला में जगह-जगह पर इतने भंडारे चल रहे हैं कि बाहर से आने वाले श्रद्धालु इन्हीं में विभिन्न पकवानों का स्वाद लेते हैं। उन्हें दुकान पर जाकर कुछ खाने-पीने की जरूरत ही नहीं पड़ती। 24 घंटे चाय व पकौड़े का लंगर चल रहे हैं। दूसरा पंजाब से आने वाले लोग ट्रकों में सामान लाते हैं और फिर यहां पर लंगर लगाते हैं। मेला में जिन कर्मचारियों व पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगती है, वे भी इन्हीं भंडारों में ही भोजन करते हैं। अधिकारियों की तरफ से केवल प्रशासनिक खंड में ही भोजन की व्यवस्था की जाती है, लेकिन इसमें करीब 150 से 200 कर्मचारी ही भोजन कर पाते हैं।