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हिंदू हों या मुसलमान, संतान की चाह में दुदाधारी की समाधि पर मत्था टेकती हैं महिलाएं

सूरजकुंड सरोवर के तट पर बनी दुदाधारी महाराज की समाधि आस्था का केंद्र है। यहां संतान प्राप्ति की कामना को लेकर हर धर्म के लोग माथा टेकने आते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 03 Nov 2017 11:11 AM (IST)Updated: Fri, 03 Nov 2017 11:11 AM (IST)
हिंदू हों या मुसलमान, संतान की चाह में दुदाधारी की समाधि पर मत्था टेकती हैं महिलाएं
हिंदू हों या मुसलमान, संतान की चाह में दुदाधारी की समाधि पर मत्था टेकती हैं महिलाएं

जेएनएन, कपालमोचन (यमुनानगर)। तीर्थराज कपालमोचन में पहुंचे काफी श्रद्धालु सूरजकुंड सरोवर के तट पर बनी दुदाधारी महाराज की समाधि आस्था का केंद्र है। यहां न सिर्फ हिंदू बल्कि सिख व मुसलमान भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मन्नत पूर्ण होती है। इस स्थान पर माता कुंती ने सूर्य देव की तपस्या की, जिस कारण उन्हें पुत्र कर्ण की प्राप्ति हुई। संतान प्राप्ति की चाह में भक्त यहां माथा टेकते हैं।

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मान्यता है कि अकबर के शासनकाल यहां केवल जंगल था और यहां एक टीले पर झाड़ी के नीचे दुदाधारी बाबा केश्वदास तपस्या करते थे। एक दिन अकबर साम्राज्य के परगना सढौरा के काजी फिमूदीन शिकार खेलते हुए पानी की तलाश में यहां आए। वह जैसे ही तपस्या में लीन बाबा के पास गए तो अंधे हो गए। इस पर बाबा ने उन्हें दूर हटकर बात करने को कहा।

तब काजी पीछे हटे तो उन्हे पुन: दिखाई देने लगा और उन्होंने संतान की कामना की। इस पर केशवदास ने उन्हे एक वर्ष बाद अपनी बेगम सहित आने को कहा। इसी अवधि में काजी के घर लड़का पैदा हुआ और एक वर्ष बाद काजी ने सपरिवार यहां आकर बाबा केशवदास को जमीन देकर भगवान श्रीराम जी मंदिर बनवाया, जिसके ऊपर रोजाना चिराग जलाया जाता था। काजी हर शाम चिराग देखकर ही खाना खाते थे। उन्हीं के वंशज के रूप मे सढौरा में आज भी काजी मोहल्ला आबाद है। इस कारण हिंदू व सिखों के अलावा मुसलमान भी कपाल मोचन तीर्थ एवं मेला के प्रति श्रद्धा रखते हैं।

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