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मातृभूमि का कभी नहीं चुका सकते कर्ज : राहुल

फ्रैक्फर्ट (जर्मनी) में मजिस्ट्रेट ब्यूरो मेंबर के पद पर तैनात राहुल कुमार व जैसाबेला फेरेज, स्पीकर ऑफ स्टेट इन जर्मन का हरिओम शिवओम पब्लिक स्कूल में पहुंचने पर फूलमालाओं से जोरदार स्वागत किया गया। हरिओम पब्लिक स्कूल के ब'चों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम पेशकर समा बांधा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 21 Oct 2018 11:10 PM (IST)Updated: Sun, 21 Oct 2018 11:10 PM (IST)
मातृभूमि का कभी नहीं चुका सकते कर्ज : राहुल
मातृभूमि का कभी नहीं चुका सकते कर्ज : राहुल

संवाद सहयोगी, रादौर : फ्रैक्फर्ट (जर्मनी) में मजिस्ट्रेट ब्यूरो मेंबर के पद पर तैनात राहुल कुमार व जैसाबेला फेरेज, स्पीकर ऑफ स्टेट इन जर्मन का हरिओम शिवओम पब्लिक स्कूल में पहुंचने पर फूलमालाओं से जोरदार स्वागत किया गया। हरिओम पब्लिक स्कूल के बच्चों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम पेशकर समा बांधा।

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प्रबंधन समिति सदस्य पंकज ने कहा कि राहुल ने विदेशों में शोहरत हासिल कर देश का नाम रोशन किया है। इसके लिए राहुल व उसके परिवार के सदस्य बधाई के पात्र है। ग्रामीण आंचल से उठकर राहुल ने बुलंदियों को छुआ है, जिससे देश का नाम रोशन हुआ है। उनकी कामयाबी पूरे गांव व क्षेत्र की कामयाबी है। उन्हें जो प्यार व स्नेह अपनी मातृभूमि से मिला है, वह बहुमूल्य है। अपने गांव व क्षेत्र में आकर वह गर्व महसूस कर रहे है। वह जर्मनी में एनजीओ चलाकर समाज के लोगों की सेवा कर रहे है। अब वह अपने संगठन का गांव में कार्यालय खोलकर यहां के जरूरतमंद बच्चों की सेवा करेंगे। वह अपने मातृभूमि का कर्ज कभी नहीं चुका सकते। वह यहां के लोगों के लिए अधिक से अधिक समाजसेवा से जुडे़ कार्य करने की कोशिश करेंगे।

भारतीय संस्कृति दुनिया में सबसे अलग : राहुल

राहुल कुमार ने कहा कि भारतीय संस्कृति दुनिया में सबसे अलग है, जिसकी प्राचीनकाल से एक अलग पहचान बनी हुई है। उन्हें अपनी सभ्यता व संस्कृति से जो संस्कार मिले है, वह उन्हें दुनियाभर में फैलाने का काम कर रहे हेै। उनकी इच्छा है कि वह हर वर्ष अपने क्षेत्र में आकर यहां के बच्चों के लिए अधिक से अधिक कार्य करें। जब भी उन्हें समय मिलेगा तो वह यहां के बच्चों के लिए बेहतर से बेहतर कार्य करने की कोशिश करेंगे। बड़ों की इज्जत व सत्कार करना हमारी संस्कृति ने हमें सिखाया है। उनका परिवार लंबे समय से जर्मनी में रह रहा है। इसके बावजूद उनके परिवार ने कभी भी अपने संस्कृति का दामन नहीं छोड़ा। वह जब जर्मन गए तो उस समय मात्र 9 महीने के थे। उनके पिता राजकुमार कांबोज ने उन्हें भारतीय संस्कृति से जोड़े रखा। हमें हमारी मातृभूमि के संस्कार दिए।


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