सफेदा, पॉपुलर को एग्रीकल्चर प्रोडक्ट से बाहर करने पर व्यापारियों ने दी कोर्ट में चुनौती, चार सप्ताह में मांगा जवाब
पॉपुलर व सफेदा को एग्रीकल्चर प्रोडक्ट की लिस्ट से बाहर किए जाने पर व्यापारियों ने कोर्ट में चुनौती दी है।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर :
पॉपुलर व सफेदा को एग्रीकल्चर प्रोडक्ट की लिस्ट से बाहर किए जाने पर हरियाणा प्लाईवुड मैन्यूफेक्चर्स एसोसिएशन कोर्ट पहुंच गई है। न्यायाधीश अजय तिवारी व जसगुरप्रीत सिंह पुरी की अदालत में उनकी याचिका स्वीकार कर ली है। इस पर सुनवाई करते हुए एडिशनल एडवोकेट जनरल से चार सप्ताह में तर्क संगत जवाब मांगा है। 100 पर बढ़ रहे हैं 24 रुपये
सफेदे व पॉपुलर की लकड़ी पर दो फीसद मार्केट फीस, चार फीसद मंडी फीस और 18 फीसद जीएसटी है। व्यापारियों का कहना है कि कृषि उत्पादक पर 24 फीसद का टैक्स लिया जा रहा है। यदि मंडी में पॉपुलर व सफेदा 800 रुपये क्विटल बिकेगा तो खरीददारों को 192 रुपये अधिक देने होंगे। इसी का विरोध किया जा रहा है।
सरकार को भी लिखी थी चिट्ठी
एग्रीकल्चर प्रोडक्ट से सफेदा व पॉपुलर को बाहर किए जाने के विरोध में प्लाईवुड मेन्युफेक्चरिग एसोसिएशन ने इस बारे में सरकार को भी चिट्ठी लिखी थी। परंतु सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। प्लाईवुड के जिला प्रधान जेके बियानी ने बताया कि सरकार केवल अपनी फीस देख रही है। दो मंडियों में होती है लकड़ी की खरीद
जिले में लकड़ी खरीद के लिए यमुनानगर के मंडोली व जगाधरी के मानकपुर में दो मंडियां हैं। दोनों में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से रोज दो लाख क्विटल पॉपुलर व सफेदे की लकड़ी आती है। अब केंद्र के कानून को न मानते हुए अधिकारी जबरदस्ती लकड़ी से भरी ट्रॉलियों को मंडी में लेकर जा रहे हैं। जिले में बोर्ड से जुड़ी 1040 (बोर्ड प्रेस, पीलिग, चिप्परव आरा मशीन) ईकाइयां हैं। डेढ़ लाख लोग सीधे तौर पर इस व्यापार से जड़े हैं। कारोबार पर असर पड़ेगा :
प्रधान जेके बियानी ने बताया कि यदि सरकार दो फीसद के हिसाब से मंडी फीस लेती है तो इसका सीधा असर प्लाईवुड फैक्ट्री संचालकों पर पड़ेगा। इसलिए एसोसिएशन ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। किसान व व्यापारी को बचाए सरकार
प्लाईबोर्ड के ऑल इंडिया प्रधान देवेंद्र चावला का कहना है कि पॉपुलर व सफेदा को किसान पैदा करता है और किसान ही मंडी में बेचने के लिए आता है। यह कृषि प्रोडेक्ट है। हरियाणा एग्रीकल्चर प्रोडेक्ट मार्केट एक्ट 1961 में भी इसको कृषि उत्पादक माना हुआ है। उसके बाद भी सरकार मनमानी कर रही है।