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खेतों में जलते फसल अवशेष कर रहे जमीन को बंजर, बढ़ रहा प्रदूषण

पराली नहीं जलाएंगे पर्यावरण बचाएंगे अभियान के तहत दैनिक जागरण की ओर से कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के कार्यालय में वर्कशॉप का आयोजन किया गया। इसमें किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के तरीकों और फायदे से अवगत कराया गया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 07:00 AM (IST)Updated: Fri, 01 Nov 2019 07:00 AM (IST)
खेतों में जलते फसल अवशेष कर रहे जमीन को बंजर, बढ़ रहा प्रदूषण
खेतों में जलते फसल अवशेष कर रहे जमीन को बंजर, बढ़ रहा प्रदूषण

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : पराली नहीं जलाएंगे, पर्यावरण बचाएंगे अभियान के तहत दैनिक जागरण की ओर से कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के कार्यालय में वर्कशॉप का आयोजन किया गया। इसमें किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के तरीकों और फायदे से अवगत कराया गया। धान के अवशेषों के प्रबंधन के लिए किसानों के समक्ष आ रही दिक्कतों से भी अधिकारियों को अवगत करवाया गया। विभाग के उप-निदेशक डॉ. सुरेंद्र यादव और एपीपीओ डॉ. राकेश जांगड़ा ने किसानों को अवशेष प्रबंधन के फायदे बताए।

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फोटो : 12

फसल अवशेषों के बीच करते गेहूं की बिजाई

नगावां जागीर के किसान सुरेश पाल का कहना है कि वह हर वर्ष तीन-चार एकड़ में धान लगाते हैं। कुछ हाथ से कटाई होती है तो कुछ को कंबाइन से कटवाते हैं। आज तक खेत में पराली नहीं जलाई है। कंबाइन से कटे धान के अवशेषों के बीच में ही गेहूं की बिजाई करते हैं। जब हमारे पास विकल्प है तो पराली को खेत में क्यों जलाएं? फोटो : 13

बेचते हैं पराली

नगावां जागीर के ही किसान जसवंत ने बताया कि इस बार उन्होंने करीब छह एकड़ में धान की रोपाई की थी। हर वर्ष हाथ से ही कटवाते हैं। पराली को हम जलाते नहीं बल्कि बेचते हैं। क्षेत्र में तीन से चार हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से पराली बिक जाती है। चारे के काम आती है। कंबाइन से धान कम कटवाते हैं। लेबर मिल जाती है।

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अवशेष जलाने की आवश्यकता नहीं

गोविदपुरी के किसान चतर सिंह का कहना है कि किसानों को फसल अवशेष जलाने की आवश्यकता ही नहीं है। वे इससे जैविक खाद तैयार कर सकते हैं। हम धान के अवशेषों को गड्ढे में इकट्ठा कर ढक देते हैं। हर बार ऐसा ही करते हैं। इससे खाद तैयार होती है। धान के अवशेष जलाने से पर्यावरण भी प्रदूषित होता है और भूमि की उर्वरा शक्ति भी घटती है। फोटो : 15

हैप्पी सीडर से करते गेहूं की बिजाई

दामला के किसान कुलभूषण का कहना है कि 14 एकड़ धान की फसल थी। एसएमएस लगी कंबाइन से कटवाई। धान के अवशेषों के बीच ही हैप्पी सीडर से गेहूं की बिजाई कर दी जाती है। ऐसे खेत में सब्जी की फसल तैयार करने में दिक्कत आती है। बुआई पर लागत बढ़ जाती है। सरकार इसके लिए अनुदान दे ताकि किसानों की आíथक सहायता हो सके। फोटो : 16

धान के अवशेषों को जलाएं नहीं बल्कि प्रबंधन करें। फसल अवशेष जलाने से मृदा की उर्वरा शक्ति लगातार घट रही है। मित्र कीट नष्ट हो रहे हैं। पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। कृषि अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से अनुदान पर कृषि यंत्र दिए हुए हैं। फसल अवशेष जलाने से पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। नाइट्रोजन, सल्फर और अन्य पोषक तत्वों में भी कमी आई है।

डॉ. सुरेंद्र यादव, उप-निदेशक, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग। फोटो : 17

खेतों में फसल अवशेष जलाने से प्रदूषण बढ़ रहा है। प्रदूषित कण शरीर के अंदर जाकर फेफड़ों में सूजन सहित इंफेक्शन, निमोनिया और हार्ट की बीमारियां का कारण बनते हैं। खांसी, अस्थमा, डाइबिटीज आदि के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। कृषि योग्य जमीन को बंजर हो रही है। फसल अवशेषों का खेत में ही प्रबंधन किया जा सकता है। सरकार भी इस पर विशेष रूप से ध्यान दे रही है। किसानों को भी आगे आना चाहिए।

डॉ. राकेश जांगड़ा, एपीपीओ, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग।


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