किचन के कचरे से बना रहे बायोगैस
जेएमआइटी इंजीनिय¨रग कॉलेज में अब किचन के कचरे से बायोगैस तैयार कर खाना बनाया जाएगा। इससे अब कॉलेज में मौजूद किचन के कचरे का गैस के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। वहीं बायोगैस सिस्टम से निकलने वाले खाद का कॉलेज में पेड़ पौधों के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा।
संवाद सहयोगी , रादौर : जेएमआइटी इंजीनिय¨रग कॉलेज में अब किचन के कचरे से बायोगैस तैयार कर खाना बनाया जाएगा। इससे अब कॉलेज में मौजूद किचन के कचरे का गैस के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। वहीं बायोगैस सिस्टम से निकलने वाले खाद का कॉलेज में पेड़ पौधों के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा।
कॉलेज की ओर से डेढ़ लाख रुपए खर्च कर नई तकनीक का बायोगैस सिस्टम लगाया गया है। इस सिस्टम के तहत कॉलेज के हॉस्टल की मैस के किचन में मौजूद वेस्ट मैटेरियल से बायोगैस तैयार की जा रही है। इस बायोगैस से कॉलेज के बच्चों के लिए खाना तैयार किया जा रहा है। यदि यह विधि कामयाब रही तो मुकंदलाल संस्थान अपने दूसरे शिक्षण संस्थानों में बच्चों के लिए किचन के वेस्ट मेटिरियल से बायौगेस तैयार कर खाना बनाने की विधि को लागू करेगा।
संस्थान के निदेशक डॉ. एसके गर्ग ने बताया कि कॉलेज में प्लास्टिक माउलोडिड बायोगैस टेक्नोलॉजी से गैस तैयार की जा रही है। इस विधि से गैस तैयार करने के लिए गोबर या किचन के वेस्ट मैटेरियल की जरूरत पड़ती है। बायोगैस के इस सिस्टम के लिए 30 फुट का गड्ढा खोदा जाता है। जो 8 फुट चौड़ा होता है। इस पर बायोगैस बनाने का सिस्टम लगाया जाता है। वहीं साथ में एक पानी की टंकी वेस्ट मैटेरियल को गलाने के लिए लगाई जाती है। बायोगैस बनाने के लिए 80 से 100 किलो गोबर या 50 किलो किचन वेस्ट की जरूरत पड़ती है। वेस्ट मेटिरियल से उन्हें प्रतिदिन प्रति 8 किलो गैस प्राप्त हो रही है, जबकि उन्हें प्रतिदिन 16 किलो गैस की बच्चों के लिए खाना बनाने को लेकर आवश्यकता पड़ती है। कॉलेज में कचरे से गैस बनाने को लेकर लगाया गए बायोगैस सिस्टम की शहर के लोगों ने प्रशंसा की है।