पर्यटन रूप में विकसित किया जाएगा अशोका इडिक्ट पार्क : पटेल
केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने शनिवार को टोपरा कलां गांव में बने अशोका इडिक्ट पार्क का दौरा किया। उन्होंने कहा कि इस पार्क को पर्यटन के रूप में विकसित किया जाएगा। जिससे यहां पर्यटन को बढ़ावा मिल सके। इस दौरान उनके साथ शिक्षा मंत्री कंवरपाल और पूर्व राज्यमंत्री कर्णदेव कंबोज साथ रहे।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने शनिवार को टोपरा कलां गांव में बने अशोका इडिक्ट पार्क का दौरा किया। उन्होंने कहा कि इस पार्क को पर्यटन के रूप में विकसित किया जाएगा। जिससे यहां पर्यटन को बढ़ावा मिल सके। इस दौरान उनके साथ शिक्षा मंत्री कंवरपाल और पूर्व राज्यमंत्री कर्णदेव कंबोज साथ रहे। इसके बाद वे पदमश्री दर्शन लाल जैन के घर उनका हालजान जानने पहुंचे। जैन ने पर्यटन मंत्री से सरस्वती नदी पर और काम कराने की बात रखी, ताकि जल्द से सरस्वती नदी में पवित्र जल प्रवाहित हो। आदिबद्री एरिया के विस्तार पर भी चर्चा हुई। द बौद्धिस्ट फोरम के अध्यक्ष सिद्धार्थ गौरी ने उनको अशोक चक्र व पार्क के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उनको बताया कि पांच एकड़ में दो करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया जा रहा है। साथ ही इतिहास से जुड़ी जानकारी देने के लिए अशोका अभिलेख भी यहां लिखे जाएंगे। उनके नाम पर सामुदायिक केंद्र बनाया गया है। गौरी ने उनको बताया कि गांव से जिस अशोक स्तंभ को फिरोजशाह तुगलक यमुनानगर से उठाकर दिल्ली ले गया था। उसको पुन: स्थापित की जाने की प्रक्रिया चल रही है। देश के सबसे बड़े अशोक चक्र के निर्माण पर इस पर 45 लाख का खर्च आया है। ये 30 फीट का है। इसमें 6 टन लोहा और 3 टन अन्य सामग्री लगी है। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए आवेदन किया हुआ है। मई में आ सकते हैं प्रधानमंत्री मोदी
केंद्रीय मंत्री को सिद्धार्थ ने बताया कि मई 2020 में टोपरा कला में राष्ट्रीय स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन प्रस्तावित है। उन्होंने मंत्री से मांग की है कि इस कार्यक्रम में मुख्यातिथि के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया जाए। इस पर उन्होंने भरोसा दिलाया कि वे उनकी बात को प्रधानमंत्री के समक्ष रखेंगे। स्तंभ पर लिखी जाएगी महत्वपूर्ण जानकारी
सम्राट अशोक अपनी सात राज आज्ञाओं को प्रदर्शित करते हुए स्तंभ स्थापित करते हैं। ये स्तंभ पूरे अखंड भारत का एकमात्र स्तंभ था, जिस पर उनकी सातों राज आज्ञाएं थीं। 13वीं शताब्दी में फिरोजशाह तुगलक स्तंभ को अपने साथ दिल्ली ले गया। वहां नाम दिया मीनार ए जरीन, जिसका हिदी में मतलब होता है, सोने का स्तंभ। ब्रिटिश काल में एक बार फिर से इस स्तंभ की महत्ता सामने आती है। इस तरह दिल्ली ले गया था स्तंभ
टोपरा से यमुना नदी तक इसे ले जाने के लिए 42 पहियों की गाड़ी तैयार की गई थी, जिसे आठ हजार लोगों ने खींचा था। 18वीं शताब्दी में सबसे पहले एलेग्जेंडर किनघम ने साबित किया था कि यह स्तंभ टोपरा कलां से लाया गया है। उसके सहकर्मी जेम्स प्रिसेप ने पहली बार ब्राह्माी लिपी में लिखे संदेश को पढ़ा था।