2300 साल पुराना गौरव लौटा, यहां हुआ सबसे बड़ा अशोक चक्र स्थापित
यमुनानगर के टोपरा कलां गांव ने 2300 साल पुराना गौरव पुन: हासिल कर लिया। राज्यसभा सदस्य डॉ.सुभाष चंद्रा, मंत्री कविता जैन ने अशोक चक्र का अनावरण किया।
यमुनानगर [पोपीन पंवार]। जैसे ही 30 फीट ऊंचे सम्राट अशोक के धर्मचक्र से पर्दा हटा, यमुनानगर के टोपरा कलां गांव ने 2300 साल पुराना गौरव पुन: हासिल कर लिया। राज्यसभा सदस्य डॉ.सुभाष चंद्रा, प्रदेश की कैबिनेट मंत्री कविता जैन ने इसका अनावरण किया। अशोक चक्र को लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज कराने के लिए आवेदन किया गया है। गांव से इसका गौरव व पहचान 13वीं शताब्दी में फिरोजशाह तुगलक छीन ले गया था।
ये आयोजन इतिहास और वर्तमान की कड़ी है। इसके पीछे कई सारे तथ्य छिपे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि धर्म चक्र टोपरा में ही क्यों? इसे जानने के लिए हमें दो हजार पांच सौ साल पीछे जाना होगा। तब हम पाएंगे कि यह गांव एक जंक्शन है, जिसका इतिहास के साथ आध्यात्मिक महत्व भी है। इस गांव की सीमा कुरुक्षेत्र को छूती है, दूसरी यमुनानगर को। कुरुक्षेत्र, जहां श्री कृष्णा ने गीता का संदेश दिया, वहीं महात्मा बुद्ध ने अपने समय में भ्रमण किया था।
यहां सम्राट अशोक अपनी सात राज आज्ञाओं को प्रदर्शित करते हुए स्तंभ स्थापित करते हैं। ये स्तंभ पूरे अखंड भारत का एकमात्र स्तंभ था, जिस पर उनकी सातों राज आज्ञाएं थीं। 13वीं शताब्दी में फिरोजशाह तुगलक स्तंभ को अपने साथ दिल्ली ले गया। वहां नाम दिया मीनार ए जरीन, जिसका हिंदी में मतलब होता है, सोने का स्तंभ। ब्रिटिश काल में एक बार फिर से इस स्तंभ की महत्ता सामने आती है। अभी तक कोई भी इस पर लिखे अक्षरों को पढ़ नहीं पा रहा था। इस दौर में अंग्रेजी स्कॉलर जेम्स ङ्क्षप्रसेस ने सबसे पहली ब्राह्मी लिपि और प्राकृतिक भाषा को पढ़ा।
एक दिन बौद्धिस्ट फोरम के संस्थापक सिद्धार्थ इस खोज में लगते हैं। टोपरा के सरपंच मनीष कुमार समेत पूरी पंचायत ने उनका साथ दिया। फोरम के दूसरे संस्थापक एनआरआइ डॉ. सत्यदीप गौरी ने सिद्धार्थ को फंड उपलब्ध कराने का वादा किया। वह खुद भी ऑस्ट्रेलिया से लौटे। इस तरह गोल्डन रंग का देश का सबसे ऊंचा अशोक चक्र सामने आया। शनिवार को आयोजन में बर्मा से भी प्रतिनिधिमंडल पहुंचा।
मुख्य बातें
- 30 फीट का देश का सबसे बड़ा अशोक चक्र स्थापित हुआ
- 40 लाख रुपये की लागत आई
- 12 कारीगरों ने छह महीने में बनाया
- 06 टन लोहा और 3 टन अन्य सामग्री, यमुनानगर के ही लोगों ने बनाया