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डिलीवरी के बाद जच्चा-बच्चा को आसानी से नहीं मिलती एंबुलेंस

गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी से पहले व बाद में स्वास्थ्य विभाग की तरफ से एंबुलेंस की सुविधा निश्शुल्क दी जाती है। डिलीवरी के बाद घर जाने के लिए महिलाओं को एंबुलेंस मिलेगी या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है। महिला के परिजन एंबुलेंस के कंट्रोल रूम में फोन करते हैं तो उन्हें साफ साफ शब्दों में बोल दिया जाता है कि अभी गाड़ी नहीं है। जब आएगी तो उन्हें फोन कर दिया जाएगा। इसकी वजह कुछ ओर नहीं बल्कि एंबुलेंस की कमी है। मजबूरी में लोगों को प्राइवेट एंबुलेंस या फिर निजी वाहन में महिलाओं को घर ले जाना पड़ रहा है। मुफ्त सेवा होते हुए भी लोगों को एक से डेढ़ हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। 28 में से केवल 12 एंबुलेंस चल रही

By JagranEdited By: Published: Thu, 17 Jan 2019 12:55 AM (IST)Updated: Thu, 17 Jan 2019 12:55 AM (IST)
डिलीवरी के बाद जच्चा-बच्चा को आसानी से नहीं मिलती एंबुलेंस
डिलीवरी के बाद जच्चा-बच्चा को आसानी से नहीं मिलती एंबुलेंस

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी से पहले व बाद में स्वास्थ्य विभाग की तरफ से एंबुलेंस की सुविधा निश्शुल्क दी जाती है। डिलीवरी के बाद घर जाने के लिए महिलाओं को एंबुलेंस मिलेगी या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है। महिला के परिजन एंबुलेंस के कंट्रोल रूम में फोन करते हैं तो उन्हें साफ साफ शब्दों में बोल दिया जाता है कि अभी गाड़ी नहीं है। जब आएगी तो उन्हें फोन कर दिया जाएगा। इसकी वजह कुछ ओर नहीं बल्कि एंबुलेंस की कमी है। मजबूरी में लोगों को प्राइवेट एंबुलेंस या फिर निजी वाहन में महिलाओं को घर ले जाना पड़ रहा है। मुफ्त सेवा होते हुए भी लोगों को एक से डेढ़ हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।

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28 में से केवल 12 एंबुलेंस चल रही

जिला की आबादी 14 लाख को पार कर चुकी है। परंतु आबादी के हिसाब से स्वास्थ्य विभाग के पास एंबुलेंस की बहुत कमी है। नियमानुसार 50 हजार की आबादी पर एक एंबुलेंस होनी चाहिए परंतु ऐसा नहीं हो रहा। जिला में केवल 12 ही सरकारी एंबुलेंस हैं। इनमें से भी चार एंबुलेंस कंडम हो चुकी हैं। एक एंबुलेंस कोर्ट केस के कारण ऐसे ही खड़ी है। जबकि तीन-चार एंबुलेंस को कंडम करने की तैयारी हो रही है। जिला में 28 से ज्यादा एंबुलेंस की जरूरत है। 15 से 20 एंबुलेंस भी मिल जाएं तो स्वास्थ्य विभाग की गाड़ी पटरी पर आ सकती है। केस वन :

गाड़ी वाले को दिए 800 रुपये : लीलावती

बिलासपुर निवासी लीलावती ने बताया कि उसकी पुत्रवधु की डिलीवरी सिविल अस्पताल में हुई थी। छुट्टी मिलने के बाद उन्हें घर जाना था। बेटे ने 108 नंबर पर फोन किया तो जवाब मिला की अभी कोई गाड़ी नहीं है। अभी गाड़ी एक्सीडेंट में घायल को लेने गई हुई है। वहां से आते ही आपको फोन कर दिया जाएगा। कई घंटे तक भी एंबुलेंस नहीं आई तो 800 रुपये में प्राइवेट गाड़ी करनी पड़ी।

काफी देर बाद एंबुलेंस आई : नरेंद्र ¨सह

मुस्तफाबाद निवासी नरेंद्र ¨सह ने बताया कि उसकी पत्नी की डिलीवरी सिविल अस्पताल जगाधरी में हुई थी। छुट्टी के बाद घर जाने के लिए एंबुलेंस के कंट्रोल रूम में फोन किया तो उसे बताया गया कि एंबुलेंस मिलने में अभी समय लगेगा। दोबारा फोन किया तब भी यही जवाब मिला। छुट्टी मिलने के सवा दो घंटे बाद उसे एंबुलेंस मिली। इसलिए सरकार को चाहिए कि एंबुलेंस की संख्या बढ़ाई जाए ताकि लोगों को किसी तरह की परेशानी न उठानी पड़े।

अस्पताल में खड़ी रहती है प्राइवेट एंबुलेंस

प्राइवेट एंबुलेंस चालक स्वास्थ्य विभाग की इस मजबूरी का खूब फायदा उठा रहे हैं। जब काफी देर तक सरकारी एंबुलेंस नहीं मिलती तो उन्हें प्राइवेट में जाना पड़ता है। इसलिए सिविल अस्पताल परिसर में ट्रामा सेंटर के आसपास व गेट के बाहर प्राइवेट एंबुलेंस खड़ी रहती हैं। दैनिक जागरण संवाददाता ने बिना अपना परिचय दिए यहां खड़ी रेडक्रॉस की एंबुलेंस चालक से बात की। उसे बताया गया कि डिलीवरी के बाद महिला को मुस्तफाबाद ले जाना है। चालक ने बताया कि 10 रुपये किलोमीटर के हिसाब से चार्ज लगेगा। करीब 450 रुपये लगेंगे। इसकी रसीद काट कर दी जाएगी। यहीं खड़ी एक अन्य प्राइवेट एंबुलेंस चालक से यही सवाल किया तो उसने कहा कि वैसे तो 800 रुपये लगते हैं। आप बताओ कितने बजे चलना है थोड़ा ओर एडजस्ट कर लेंगे।


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