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कामगारों को मिला काम तो रुक गए गांव की ओर बढ़ते पांव

पसीना बहाकर सूबे को विकास की राह पर ले जाने वाले कामगारों को अब रोजगार और थोड़ा प्यार मिला तो अपने घर की ओर बढ़ते उनके कदम ठिठक गए।

By JagranEdited By: Published: Wed, 03 Jun 2020 05:11 PM (IST)Updated: Wed, 03 Jun 2020 05:11 PM (IST)
कामगारों को मिला काम तो रुक गए गांव की ओर बढ़ते पांव
कामगारों को मिला काम तो रुक गए गांव की ओर बढ़ते पांव

जागरण संवाददाता, सोनीपत : पसीना बहाकर सूबे को विकास की राह पर ले जाने वाले कामगारों को अब रोजगार और थोड़ा प्यार मिला तो अपने घर की ओर बढ़ते उनके कदम ठिठक गए। अब खाली हाथ बदहाली में अपने गांव नहीं जाएंगे, वह दोबारा से मेहनत करेंगे और कुछ कमाई करके अगले त्योहार पर ही घर जाएंगे। कम श्रमिक रह जाने पर वह ज्यादा मेहनत से काम करेंगे और गांव लौट गए अपने साथियों से भी मनुहार करेंगे। यह कहना है रेलवे स्टेशन पर आरक्षण निरस्त कराने पहुंच रहे श्रमिकों का। अब उद्योग चलने लगे हैं। ऐसे में वह अपने रिजर्वेशन कैंसिल करा रहे हैं। उम्मीद है श्रमिकों के दिलों में आए बदलाव से अब विकास का पहिया चल निकलेगा और उसका लाभ उद्योगपति से लेकर श्रमिक और दूर गांव में बैठे उनके परिजनों को भी होगा।

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कोरोना संक्रमण की बदहाली के बीच विकास की नई किरण दिखने लगी है। रेलवे स्टेशन पर अपना आरक्षण निरस्त कराने को लाइनों में लगे श्रमिक, बता रहे हैं कि महामारी और बदहाली में उनके कदम डगमगाए थे, लेकिन निराश नहीं हुए हैं। अब वह दोगुनी क्षमता से उठेंगे और अपना पसीना लगाकर उद्योगों का सुखद भविष्य लौटा देंगे। रेलवे स्टेशन पर रोजाना करीब पांच सौ श्रमिक अपना आरक्षण निरस्त करा रहे हैं। उद्योग चल जाने और मालिकों का स्नेह मिलने से अब गांव लौटने का इरादा त्याग दिया है और लौट गए अपने साथियों को भी वापस आने को प्रोत्साहित कर रहे हैं। अब दोगुनी मेहनत करेंगे

उत्तरप्रदेश के मंडुवाडीह निवासी रामाशीष दिल्ली की एक स्टील कंपनी में काम करते थे। कंपनी बंद होने के बाद पहले महीने मालिक ने रुपये दिए थे, लेकिन उसके बाद सुध नहीं ली। कंपनी के ज्यादातर श्रमिक वापस लौट गए। अब वह आधे से भी कम श्रमिक रह गए हैं। अब मालिक ने कंपनी शुरू कर दी है। वह खर्चा भी दे रहे हैं और अन्य जरूरतों का पूरा ध्यान रखे हैं। ऐसे में घर जाकर ही क्या करेंगे। वहां रोजगार होता तो पहले ही यहां क्यों आते। अब रामाशीष ने अपना आरक्षण रद करा दिया है। उसने बताया कि हम आधे श्रमिक ही दोगुनी मेहनत करके फैक्ट्री को चलाएंगे। जल्द ही अपने घर गए साथी श्रमिक भी वापस आ जाएंगे। इतना कष्ट कभी नहीं झेला

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी निवासी राजेंद्र साहनी बहालगढ़ की एक फैक्ट्री में काम करते थे। उनका कहना है कि जीवन में इतना कष्ट कभी नहीं झेला, जितना लॉकडाउन के दौरान सहना पड़ा। मालिक तक का कुछ अता-पता नहीं था। अब फैक्ट्री में काम शुरू हो गया है। हमारी संख्या कम होने से ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है। अब घर नहीं जा रहे हैं। रिजर्वेशन कैंसिल करा दिया है। अपने घर गए श्रमिक भी महीने के आखिर तक वापस आ जाएंगे। अब हम यहीं पर काम करेंगे। जो श्रमिक घर जाना चाहते हैं, उनके जाने की व्यवस्था प्रशासन की ओर से की जा रही है। उद्योगों का संचालन होने से ज्यादातर श्रमिकों ने घर वापसी का इरादा छोड़ दिया है। वह काम करने लगे हैं। जल्द ही श्रमिकों का आना भी शुरू हो जाएगा। अब श्रमिकों का जीवन और उद्योगों का संचालन दोनों सामान्य हो जाएंगे।

- दिनेश यादव, एडीसी, सोनीपत


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