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हजारों वर्षों के दौरान विभिन्न घटनाओं का गवाह रहा है सोनीपत

जागरण संवाददाता, सोनीपत सोनीपत का एक बहुत पुराना इतिहास है। महाभारत की अवधि में स्वर्णप्रस्थ (सोनीपत) का नाम भी उल्लेखित है। इस शहर का सबसे पुराना संदर्भ महाकाव्य महाभारत में आता है। उस समय यह हस्तीनापुर राज्य के बदले पांडवों द्वारा मांगे गए पांच गांवों में से एक था। सोनीपत ने 22 दिसंबर 1972 को रोहतक से अलग होकर अलग जिले का रूप लिया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 Oct 2018 06:46 PM (IST)Updated: Tue, 30 Oct 2018 06:46 PM (IST)
हजारों वर्षों के दौरान विभिन्न घटनाओं का गवाह रहा है सोनीपत
हजारों वर्षों के दौरान विभिन्न घटनाओं का गवाह रहा है सोनीपत

जागरण संवाददाता, सोनीपत: सोनीपत का एक बहुत पुराना इतिहास है। महाभारत की अवधि में स्वर्णप्रस्थ (सोनीपत) का नाम भी उल्लिखित है। इस शहर का सबसे पुराना संदर्भ महाकाव्य महाभारत में आता है। उस समय यह हस्तिनापुर राज्य के बदले पांडवों द्वारा मांगे गए पांच गांवों में से एक था। सोनीपत ने 22 दिसंबर, 1972 को रोहतक से अलग होकर अलग जिले का रूप लिया। फिलहाल जिले की कुल आबादी 13 लाख है जबकि क्षेत्रफल 2,260 वर्ग किलोमीटर है। यहां की साक्षरता दर 80.8 प्रतिशत है और राजधानी दिल्ली से 43 किलोमीटर उत्तर पश्चिम की तरफ बसे सोनीपत में कई ऐतिहासिक धरोहर हैं।

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बात अगर धार्मिकता से शुरू करें तो कामी रोड स्थित रामलीला ग्राउंड में महाकाली का एक प्राचीन मंदिर स्थित है जोकि लगभग 6000 वर्ष पुराना कहा जाता है। यह कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए जाने से पहले पांडवों ने यहां प्रार्थना की थी और उनकी जीत के लिए मां से आशीर्वाद लिया था। पांडवों ने इस मंदिर के पास एक कुएं का निर्माण किया था जिसे पांडव के वेल के नाम से जाना जाता है। वहीं उपमंडल गन्नौर के गांव खेड़ी गुज्जर स्थित सतकुंभा मंदिर का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। ऊंचे टीले पर की गई खुदाई के दौरान गुज्जर प्रतिहार कालीन 16 स्तंभ प्राप्त हुए हैं। सतकुंभा मंदिर के पीछे करीब 45 फुट गहरी कुआंनुमा सुरंग है। प्राचीन शिव मंदिर के उत्तर पश्चिम में अलग आकार की प्राचीन इंटें व प्राचीन स्तम्भ इतिहास के गवाह हैं। ग्रामीण सेठपाल छौक्कर ने बताया कि आज से करीब 3000 ईसा पूर्व में यह स्थान स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता था, जोकि आज भी आस्था का बड़ा केंद्र है।

इसी के साथ उपमंडल खरखौदा स्थित छपड़ेश्वर मंदिर उन दिनों का इतिहास अपने अंदर समेटे हुए है जब महाभारत काल में यहां स्थित खांडव वन में श्रीकृष्ण व अर्जुन आकर ठहरे थे। श्रीकृष्ण व अर्जुन ने यहां कुबेर मंदिर की स्थापना कर पूजा- अर्चना की थी। प्रदेश की पुरानी विरासत संजोए है खिज्र मकबरा

शहर में स्थित ख्वाजा खिज्र का मकबरा इब्राहिम लोदी ने अपने शासनकाल में बनवाया था। मकबरा उन चु¨नदा इमारतों में से है जो लाल बलुआ पत्थर के साथ-साथ कंकड़ के टुकड़ों से निर्मित है। यह एक चबूतरे पर निर्मित है और किनारों पर अतिरिक्त चौकोर बनावट से इसे मजबूती प्रदान की गई है। कब्र के दफनाने वाले भाग को अ‌र्द्ध चंद्राकार गुबंदों से घेरा गया है और ऊपर से उल्टे कमल के फूल के छत्र द्वारा खूबसूरती से ढका गया है। यह कब्र चार एकड़ के हरे-भरे बगीचे से घिरी है। इसे भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक के रूप में घोषित किया गया है। इसके अलावा शहर में स्थित मामा-भांजा की दरगाह इमाम नसीरुद्धीन व उनके भांजे इब्राहिम अब्दुल्ला की इकट्ठी मजारें स्थित है। वहीं गोहाना में स्थित पीर जमाल की मजार ¨हदू-मुस्लिम एकता की प्रतीक है। जिले के इतिहास का बखान करेगा संग्रहालय

जिला प्रशासन के सहयोग से सोसाइटी फॉर दी डेवलपमेंट एंड ब्यूटीफिकेशन ऑफ दी सोनीपत टाउन द्वारा शहर में स्वर्णप्रस्थ संग्रहालय बनाया गया है। हरियाणवी संस्कृति, अंग्रेजी हुकुमत से लेकर समय-समय पर आए बदलावों की झलक दिखाती 100 साल पुरानी वस्तुओं को इसमें सहेजने का कार्य चल रहा है।


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