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चिटाने वाली माता को अपने पास रखने के लिए हो रहे दावे

चिटाने वाली माता का विवाद अभी थमने का नाम नहीं ले रहा है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 11 Oct 2019 06:16 PM (IST)Updated: Sat, 12 Oct 2019 06:16 AM (IST)
चिटाने वाली माता को अपने पास रखने के लिए हो रहे दावे
चिटाने वाली माता को अपने पास रखने के लिए हो रहे दावे

जागरण संवाददाता, सोनीपत :

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चिटाने वाली माता के मंदिर का विवाद अभी थमने का नाम नहीं ले रहा है। समझौता नहीं होने पर अब दोनों पक्षों ने अपनी तरह से प्रयास शुरू कर दिए हैं। कानूनी कार्रवाई और सामाजिक संगठनों को अपने पक्ष में किया जा रहा है। इसके साथ ही अब माता के आशिर्वाद को अपने-अपने पक्ष में बताकर दूसरे पक्ष को शांत करने की कोशिश हो रही हैं। दोनों पक्ष एक बात पर एकमत हैं कि माता की इच्छा और आदेश के विरुद्ध कार्य हुआ तो अनिष्ट होना तय है। वह इस बात को एक-दूसरे को समझाने का प्रयास कर रहे हैं।

चिटाने वाली माता को शहर के मंदिर से हटाकर चिटाना गांव के मंदिर में स्थापित करने का मामला अभी तूल पकड़ रहा है। शहर और गांव की कमेटी के लोग एक-दूसरे की बात मानने को तैयार नहीं हैं। शहर कमेटी के लोगों का दावा है कि 300 साल पुरानी परंपरा नहीं टूटनी चाहिए। माता को शहर के मंदिर में ही आसन देने की जरूरत है। इसके लिए उन्होंने कानूनी कार्रवाई करने की तैयारी कर ली है। एसडीएम को दस लोगों के नाम सौंप दिए गए हैं। ग्रामीण कमेटी के लोगों को भी मनाने का प्रयास किया जा रहा है कि माता सभी की हैं, उनको गांव के मंदिर में न रखा जाए। लोगों का कहना है कि करीब सवा सौ साल पहले ग्रामीणों ने मूर्ति को गांव में ही रोक लिया था। उस समय बड़ा अनिष्ट हुआ था। गांव पर आपदा आने लगी थी। उसके बाद माता ने सपने में दर्शन देकर शहर के मंदिर में आसन की मांग की थी। मूर्ति को शहर के मंदिर में लाने के बाद ही हालात सामान्य हो पाए थे।

वहीं गांव की कमेटी के लोगों का कहना है कि मूर्ति को पहले शहर के एक ब्राह्मण परिवार ने अपने पास रखा था। उस समय मंदिर नहीं था। मूर्ति रखने के बाद से ब्राह्मण का परिवार संकट में फंस गया। उसने मूर्ति गांव वालों को सौंप दी और अपने घर को मंदिर बनाने को दान कर दिया। आजकल शहर में माता का मंदिर उसी जमीन पर है। तब गांव के लोगों ने माता से प्रार्थना की थी कि अपना मंदिर बनने तक वह शहर के मंदिर में आसन ग्रहण कर लें। मंदिर बनने पर उनको वापस लाया जाएगा। अब माता का अपना घर बन गया है तो वह शहर के किराए के घर में नहीं रहेंगी। यदि जबरदस्ती की गई तो शहर में अनिष्ट होने लगेगा।

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माता दर्शन देकर अपने ही घर शहर के मंदिर में रहने की बात कह चुकी हैं। ग्रामीणों को समझदारी से काम लेने की जरूरत है, वरना अनिष्ट होना शुरू हो जाएगा। 300 साल की परंपरा एकाएक नहीं तोड़ी जाती है।

- महेंद्र गोयल, सचिव शहर समिति।

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माता ने गांव में ही अपने घर में रहने का आदेश सपने में भक्तों को दिया है। माता के आदेश का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। उनको शहर ले जाया गया तो वहां के लोग परेशानी झेलेंगे। माता अपने घर में चैन से हैं।

- शशिकांत भारद्वाज, अध्यक्ष ग्रामीण समिति।


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