अब हनीट्रैप में फंसाकर होगा कीटों का खात्मा
फसलों से कीटों से बचाने के लिए किसान अब हनीट्रैप का सहारा लेंगे। इसके लिए कृषि केंद्रों पर ल्योर(कीटों के हारमोंस जैसी गंध वाला जैव पदार्थ) उपलब्ध कराया जाएगा। मादा कीट को इससे नर की और नर कीट को मादा की मोहक गंध का अहसास होगा।
डीपी आर्य, सोनीपत
फसलों से कीटों से बचाने के लिए किसान अब हनीट्रैप का सहारा लेंगे। इसके लिए कृषि केंद्रों पर ल्योर (कीटों के हारमोंस जैसी गंध वाला जैव पदार्थ) उपलब्ध कराया जाएगा। मादा कीट को इससे नर की और नर कीट को मादा की मोहक गंध का अहसास होगा। इसके आकर्षण में आकर कीट ट्रैप के अंदर जाएगा और वहीं पर शहद जैसे चिपचिपे पदार्थ में चिपक जाएगा। इसके बाद कीट ट्रैप से बाहर नहीं आ सकते। इनसे फसलों को जहरीला बनाए बिना ही कीट नियंत्रण हो जाएगा। सरकार ने ट्रैप योजना को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है।
हनी ट्रैप में कई लोग फंस चुके हैं। अब इसी तर्ज पर फसलों में भी कीट नियंत्रण किया जाएगा। विशेषज्ञों ने कीटों को हनी ट्रैप जैसे ही झांसे में फंसाकर मारने की योजना तैयार की है। विशेषज्ञों के अनुसार अभी तक लाइट और चिपचिपे पदार्थ वाले ट्रैप ज्यादा प्रचलन में थे। अब किसानों को हनी ट्रैप लगाकर ज्यादा सफलता मिल सकेगी। हनी ट्रैप में किसानों को एक तरह का जैव हारमोन ल्योर लेना होगा। यह अलग-अलग कीट के लिए अलग-अलग होगा। माहू, फली छेदक, पत्ती छेदक, तना छेदक, टॉप बोरर, फल छेदक, ग्रास हॉपर और फूलों को कुतरने वाले कीटों के ल्योर तैयार कर लिए गए हैं।
किसानों को नर और मादा कीटों के ल्योर अलग-अलग उपलब्ध होंगे। खेत की दोनों दिशा में ट्रैप लगाए जाएंगे। एक ओर के ट्रैप में नर कीट का और दूसरी दिशा के ट्रैप में मादा कीट का ल्योर रुई में भिगोकर जरा सा रख दिया जाएगा। कीट विपरीत लिग की मादक गंध से मोहित होकर ट्रैप में प्रवेश कर जाएंगे। ट्रैप में शहद जैसा चिपचिपा पदार्थ नीचे की ओर फिजिकल ऑब्जेक्ट में लगा होगा। कीट ट्रैप में नीचे गिरकर उसमें फंस जाएगा।
इस तरह एक ओर नर कीट और दूसरी ओर मादा कीट की मौत हो जाएगी। इससे बिना रसायनों के ही कीटों को नियंत्रित कर लिया जाएगा। कीट नियंत्रण को आकर्षण और विपरीत लिग की मादकता के सहारे ट्रैप तक लाया जाएगा। उसके साथ ही कीट को अंदर फांसकर मार दिया जाएगा। इससे बिना रसायनों का प्रयोग किए, कीट को हनीट्रैप के आकर्षण से खत्म कर दिया जाएगा। यह सबसे सुविधाजनक और सस्ती विधि है, जिसको प्रयोग में लाया जाएगा।
- डॉ. अनिल कुमार सहरावत, उप निदेशक कृषि